मध्यप्रदेश के दमोह से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए भोपाल (मध्य प्रदेश) आए अनुराग असाटी, जब इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे, तब एक दिन घर का कबाड़ और कुछ पुराने पेपर बेचने के लिए उन्हें कई कोशिशों के बाद भी कबाड़ीवाले भैया नहीं मिले। उस समय यह उन्हें इतनी बड़ी समस्या लगी कि वह इसका हल ढूंढने में लग गए। उन्होंने अपने एक सीनियर मित्र कवीन्द्र रघुवंशी से बात की और कबाड़ को बिज़नेस (The Kabadiwala) में बदलने के बारे में सोचा।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए अनुराग कहते हैं, “यह क्षेत्र काफी अव्यवस्थित है। कई दिनों तक लोगों को कबाड़ बेचने के लिए कबाड़ी वाले का इंतजार करना पड़ता है। ऐसे में मुझे लगा कि इस काम को एक प्रोफेशनल टीम करे, तो काफी हद तक समस्या कम हो सकती है।”
हालांकि, उनका आइडिया अच्छा तो था लेकिन उस समय न तो लोग स्टार्टअप के बारे में सोचते थे और न ही कुछ हटकर बिज़नेस करने का ख्याल उनके मन आता था। खैर, अपने दोस्त की मदद से अनुराग ने साल 2013 में एक ऐप बनाया और लोगों को अपने इस आइडिया के बारे में बताना शुरू किया। लेकिन एक आम इंजीनियरिंग ग्रेजुएट की तरह ही उनपर भी पढ़ाई के बाद, नौकरी करने का दबाव था।
ऐसे में स्टार्टअप का आइडिया धरा का धरा रह गया और उन्होंने नौकरी करनी शुरू कर दी। लेकिन इस दौरान, अनुराग के मन से अपना काम शुरू करने का ख्याल गया नहीं। आख़िरकार साल 2015 में उन्होंने नौकरी छोड़कर अपने आइडिया पर काम करने का फैसला लिया।
शुरुआत में किन परेशानियों का करना पड़ा सामना?
वह कहते हैं, “शुरुआत में परिवार वालों को भी समझाना मुश्किल था। कई लोग मेरे पिता से पूछते थे कि यह क्या कबाड़ का काम कर रहा है आपका बेटा? लेकिन जब मेरे पिता ने देखा कि हम कुछ हटकर कर रहे हैं और बड़े स्तर पर काम करना चाहते हैं, तो उन्होंने मेरा साथ दिया। मेरे शुरुआती निवेशक भी मेरे पिता ही थे।”
जब नौकरी छोड़कर अनुराग और उनके दोस्त कवीन्द्र ने ‘द कबाड़ीवाला (The Kabadiwala)’ नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत कर, कबाड़ कलेक्शन का काम शुरू किया, तब उन्हें रीसायकल कंपनी के बारे में कुछ नहीं पता था। उनके पास सिर्फ टेक्निकल ज्ञान था, इसलिए उन्होंने ऐप और ऑनलाइन वेबसाइट तो आराम से बना ली।
अपने पहले ऑर्डर का एक किस्सा बताते हुए अनुराग कहते हैं, “मेरे ऐप के माध्यम से मेरे एक जूनियर ने ही हमें पहला ऑर्डर दिया था। तब हमारे पास कोई टीम नहीं थी, इसलिए मैं अपने दोस्त के साथ बाइक पर ही कबाड़ लेने चला गया। उस समय मुझे पता भी नहीं था कि इसे कैसे लेकर आना है? किस कबाड़ को कहा देना है? मेरे जूनियर ने भी मुझे सलाह दी कि ये सब क्या कर रहे हैं सर, इससे अच्छा नौकरी कर लो? लेकिन मुझे तकलीफों और चुनौतियों के बारे में ज्यादा पता नहीं था, इसलिए मैं सीखते हुए ही आगे बढ़ पाया।”
गलतियों से सीखकर बढ़े आगे
अनुराग ने शुरुआत में कई गलतियां कीं और उन्हीं गलतियों से उन्होंने बहुत कुछ सीखा भी, क्योंकि यह एक अव्यवस्थित काम है, इसलिए उन्हें काम सिखाने वाला कोई नहीं था।
दूसरी समस्या थी लोगों के व्यवहार को बदलने की, ज्यादातर लोग कबाड़ीवाले को ज्यादा इज्जत नहीं देते। न ही उनके काम को सम्मान मिलता है, लेकिन हमने प्रोफेशनल टीम बनाई, लोगों को कबाड़ को अलग-अलग जमा करने के बारे में बताया, जिससे उनमें जागरूकता भी आई और उनका हमारे प्रति नज़रिया भी बदला है।
कैसे काम करती है ‘द कबाड़ीवाला (The Kabadiwala)‘ कंपनी?
कबाड़ीवाला अलग-अलग शहरों से, 40 से भी ज्यादा तरह के कबाड़ इकट्ठा करने का काम करता है, जिसे देश की कई रीसायक्लिंग कंपनियों के पास भेजा जाता है। अनुराग ने बताया, “आज हमारा करीब 23 प्रतिशत मेटल वेस्ट ही रीसायकल किया जा रहा है, जबकि 77 प्रतिशत लैंडफिल में जाता है। ऐसे में एक सही चेन के माध्यम से हम ज्यादा से ज्यादा इस वेस्ट को रीसायकल करें, तो लैंडफिल तो सुरक्षित करेंगे ही साथ में नए प्रोडक्ट्स बनाने में रॉ चीजों की जरूरत भी कम लगेगी, जिससे प्राकृतिक संसाधन बच पाएंगे।”
इसके अलावा, वह भोपाल नगरपालिका के सूखे कचरे जैसे कागज, प्लास्टिक, मेटल, ई-वेस्ट आदि को भी सही जगह पर रीसायक्लिंग के लिए भेजते हैं।
इसके साथ ही तीसरा बड़ा काम जो कबाड़ीवाला करता है, वह है पांच शहरों की 500 से ज्यादा बड़ी कंपनियों व स्टोर्स से कबाड़ इकट्ठा करना। वह कई बड़े रेस्टोरेंट चेन, ऑफिस और बैंको से भी वेस्ट जमा करते हैं। फिलहाल, वह 100 से ज्यादा रीसायक्लिंग कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
अनुराग ने बताया कि रीसायकल करने के अलावा, लोगों में जागरूकता लाने और उनके वेस्ट को अलग करने तक का सारा काम उनकी कंपनी करती है। चूंकि उनका सारा काम ऑनलाइन है। इसलिए सभी तरह के कबाड़ का सही दाम और ऑनलाइन पिकअप सर्विस सबकुछ ग्राहकों को पहले से ही पता चल जाता है।
कबाड़ से करोड़ों का टर्नओवर
कबाड़ीवाला, कबाड़ के सिर्फ पैसे ही नहीं लेता, बल्कि इससे जुड़ी हर जानकारी अपने ग्राहकों को देता है। जो उनके काम को और भी खास बनाता है। अनुराग बताते हैं, “हम हमारे हर एक ग्राहक का ट्रैक रखते हैं। किसने कितना कबाड़ बेचा? इसके जरिए उन्होंने कितने पेड़ कटने से बचाए? उनके इस प्रयास से पर्यावरण को कितना फायदा होगा? कबाड़ीवाला उन्हें एक सर्टिफिकेट भी भेजता है कि उनके प्रयास से लैंडफिल में कितना कचरा जाने से बच पाया।”
अनुराग और उनकी टीम के ये छोटे-छोटे प्रयास ही उन्हें दूसरों से अलग बनाते हैं और यही वजह है कि समय के साथ कई लोग उनसे जुड़ते गए। साल 2019 में उनकी कंपनी को एक तीन करोड़ रुपये की फंडिंग भी मिली थी, जिससे उन्हें अपने काम को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिली।
उनकी कंपनी के साथ 700 लोग जुड़े हैं। अनुराग कहते हैं कि एक समय था, जब उनकी कंपनी साल के चार से पांच लाख ही सालाना टर्नओवर बना पाती थी। लेकिन आज उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 10 करोड़ से ज्यादा का है।
कबाड़ीवाला (Kabadiwala) का आगे क्या है प्लान?
कोरोना के बाद, उन्होंने लखनऊ और कानपुर से भी कबाड़ लेना शुरू किया। अनुराग कहते हैं कि आने वाले दिनों में वह अहमदाबाद, हैदराबाद, पुणे और मुंबई सहित कई और शहरों से भी कबाड़ लेने वाले हैं। उन्होंने छोटे शहर से शुरुआत की थी और समय के साथ वह मेट्रो सिटी में भी काम करने वाले हैं।
जिस तरह एक समस्या के समाधान के रूप में कबाड़ीवाला की टीम काम कर रही है, वह वाकई कबील-ए-तारीफ है। उन्होंने अपने इस काम के ज़रिए युवाओं के लिए न सिर्फ एक नए बिज़नेस मॉडल की नींव रखी है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मदद कर रहे हैं।
आप उनके बारे में ज्यादा जानने के लिए उनकी वेबसाइट पर उनसे सम्पर्क कर सकते हैं।
संपादन: अर्चना दुबे
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