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टेलर से बेकार कतरन लेकर शुरू किया बिज़नेस, आज है खुद का फैशन हाउस

क्या आपने कभी सोचा है कि कपड़े की फैक्ट्री या फिर बुटिक हाउस से कचरे के रूप में निकलने वाले कपड़ों से पर्यावरण को कितना अधिक नुकसान पहुँचता है? आज हम आपको ओडिशा के भुवनेश्वर में फैशन ब्रांड चलानेवाली एक ऐसी युवती से मिलवाने जा रहे हैं, जो शहरभर के टेलर, बुटीक हाउस और कपड़ा फैक्ट्री में बचने वाले कपड़ों के सभी तरह के कचरे को इकट्ठा करके नए-नए प्रोडक्ट बनाती हैं। उनके बनाए सस्टेनेबल प्रोडक्ट जैसे बैग, ज्वेलरी, ड्रेस, कुशन कवर आदि की शहर में खूब मांग है।

अपना खुद का फैशन ब्रांड, ‘Lady Ben‘ चलानेवाली 28 वर्षीया बेनोरिटा दाश ने द बेटर इंडिया को अपने पूरे सफर के बारे में विस्तार से बताया।

बेनोरिटा कहती हैं, “मैं हमेशा से ही कुछ चीजों के प्रति बहुत संवेदनशील रही हूँ। जैसे खाना वेस्ट करना मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं। न ही मुझे प्लास्टिक की चीजों में ज्यादा दिलचस्पी रही है। मैं हमेशा से ही मिट्टी या कांच की चीजें खरीदती हूँ। इसके अलावा, बात अगर कपड़ों की आए तो मैंने हमेशा अपने घर की महिलाओं को कपड़े के छोटे से छोटे कपड़े को भी इस्तेमाल में लेते हुए देखा है। स्कूल के समय से ही सिलाई का शौक मुझे चढ़ गया था और मैंने ठान लिया था कि फैशन डिजाइनिंग में ही आगे बढ़ूंगी।” 

बचपन से रही चीजों के प्रति संवेदनशील

Benorita Dash

फैशन डिजाइनिंग में ग्रैजुएशन करने के बाद, बेनोरिटा ने ‘सस्टेनेबल फैशन’ में मास्टर्स डिग्री की और इसके बाद, उन्होंने एक फैशन कॉलेज में बतौर शिक्षिका भी काम किया। उन्होंने कहा कि कुछ समय तक पढ़ाने के बाद उन्हें लगा कि उन्हें इंडस्ट्री में काम करना चाहिए। इसलिए वह एक डिजाइनिंग फर्म के साथ जुड़ गईं। लेकिन उनका यह अनुभव बहुत ही अलग था। वह बताती हैं कि इस इंडस्ट्री में सबसे अधिक कचरा जमा होता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। 

साल 2018 में नौकरी छोड़कर वह अपने शहर वापस लौट आई। उन्होंने कहा, “मैंने फैसला किया कि अब मैं अपना ब्रांड शुरू करुँगी, लेकिन यह पूरी तरह से सस्टेनेबल ब्रांड होगा। इसलिए मैंने इंडस्ट्री में बचने वाले वेस्ट (कतरन) को रॉ मटीरियल की तरह इस्तेमाल करने का फैसला किया। मैंने अपने मास्टर्स के दौरान ही, अपना ब्रांड नाम ‘Lady Ben’ रजिस्टर कराया था। उसी के अंतर्गत काम शुरू किया। मेरे पास पहले से जो कपड़े बचे थे, उसी से अपना पहला उत्पाद बनाया।” 

उन्होंने अपना काम ‘जीरो इन्वेस्टमेंट’ से शुरू किया। उन्होंने नए उत्पाद तैयार करने के लिए अपने पास पहले से उपलब्ध चीजों को उपयोग में लिया। वह बताती हैं कि लगभग दो महीने तक उन्होंने सिर्फ अलग-अलग तरह के प्रयोग करके ‘वेस्ट’ कपड़ों से चीजें बनाई। पहले उन्होंने सिलाई के साथ ‘फेविकोल’ का सहारा लिया। लेकिन फिर उन्हें लगा कि चीजों को आकर्षक बनाने के लिए कशीदाकारी का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे उनके उत्पादों की खूबसूरती बढ़ गयी। बेनोरिटा बताती हैं कि उन्होंने शहर के ‘डिस्ट्रिक्ट इंडस्ट्रीज सेंटर’ में सम्पर्क किया। 

Their Stall

“सेंटर के अधिकारियों ने मुझे अपने उत्पादों को मार्किट तक पहुंचाने में मदद की। उन्होंने मुझे सरकारी आयोजनों में स्टॉल लगाने की अनुमति दी और वहां से मुझे ग्राहक मिलने लगे। इससे पहले तक मेरे साथ सिर्फ एक लड़की काम कर रही थी और उन्होंने भी लगभग दो महीने मुफ्त में काम किया। लेकिन जब हमारी बिक्री शुरू हुई तो मैंने उनकी सैलरी दी और साथ ही, एक अलग जगह पर वर्कशॉप भी ले ली,” उन्होंने कहा। 

दर्जियों से इकट्ठा किये कतरन

बेनोरिटा कहती हैं कि कपड़ों की कतरन के लिए उन्होंने शहर में दर्जियों की दुकान पर जाना शुरू किया। वह उनसे जाकर कतरन मांगती थी। जिसे सभी दर्जी ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें दे देते थे क्योंकि उनके लिए इन कतरन का सही प्रबंधन करना बहुत मुश्किल काम था। टेलरों के अलावा, उन्होंने शहर में ही तीन-चार छोटी फैक्टरियों के कतरन भी लेना शुरू कर दिया। वह कहती हैं कि हर हफ्ते उनके यहां लगभग पांच से छह बोरे भरकर कतरन आती है। इन कतरन को पहले कपडे के हिसाब से जैसे सूती, साटन, सिंथेटिक आदि को अलग-अलग किया जाता है। 

कपड़ों को अलग-अलग करने के बाद, इन्हें रंग के आधार पर बांटा जाता है। इसके बाद, जरूरत के हिसाब से कतरन को आपस में जोड़कर बड़ा कपड़ा बनाया जाता है और फिर उत्पाद तैयार होते हैं। इसी प्रक्रिया से आज वह लगभग 25 तरह के उत्पाद बना रहे हैं जैसे बैग्स, ज्वेलरी, ड्रेस, परदे, बैडशीट आदि। अपने उत्पादों की बिक्री के लिए अलग-अलग शहरों में आयोजित होने वाले मेलों और प्रदर्शनियों में स्टॉल लगाने के साथ-साथ, उन्होंने दिल्ली और भुवनेश्वर में अपना स्टोर भी खोला हुआ है। 

Products made out of waste clothes

इसके अलावा, बहुत से लोग अब उन्हें अपने घरों से निकलने वाले पुराने कपड़े भी डोनेट करने लगे हैं। वहीं, बहुत से लोग उन्हें पुराने कपड़े देकर अपने घरों के लिए खूबसूरत चीजें बनवाते हैं। उनकी एक ग्राहक, मुस्कान दुआ कहती हैं, “बेनोरिटा के सभी डिज़ाइन बहुत खूबसूरत होते हैं। साथ ही, उनकी ब्रांड पर्यावरण के अनुकूल काम कर रही है, जो हमारी संस्कृति का हिस्सा है।” वहीं एक अन्य ग्राहक, आदित्य साहू कहते हैं, “बेनोरिटा कमाल की डिज़ाइनर हैं जो कचरे से कमाल कर रही हैं। उनके काम की जितनी सराहना की जाए उतनी कम है।” 

ऑफलाइन से ऑनलाइन

पिछले साल तक बेनोरिटा और उनकी टीम ऑफलाइन ही काम कर रहे थे। आज उनकी टीम में 16 लोग शामिल हो चुके हैं और जीरो इन्वेस्टमेंट से शुरू हुए बिज़नेस का सालाना टर्नओवर 10 लाख रुपए से ज्यादा है। साथ ही, वह फैशन कोर्स के छात्रों को इंटर्नशिप भी दे रही हैं।  वह बताती हैं कि पिछले साल तक वह ऑफलाइन ही काम कर रही थी। साथ ही, लॉकडाउन के दौरान उन्होंने देखा कि कैसे मिट्टी के बर्तन और अन्य हेंडीक्राफ्ट बनाने वाले लोगों के रोजगार पर काफी बुरा असर पड़ा है। इसलिए उन्होंने अपनी ब्रांड के तहत दो कुम्हार परिवारों के बनाए उत्पाद भी लॉन्च किए। 

उनकी इस पहल को काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। उन्होंने कहा, “पिछले साल जैसे ही लॉकडाउन खुला तो हमारे टेराकोटा उत्पादों को काफी सराहा गया और अच्छी बिक्री भी हुई। लेकिन मुझे यह भी समझ में आने लगा कि हमें अब ऑनलाइन मार्किट में काम करना होगा। इससे पहले तक हमने कभी अपनी खुद की वेबसाइट के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन अब हम अपनी वेबसाइट पर काम कर रहे हैं। जल्द ही वेबसाइट को लॉन्च किया जाएगा। पिछले एक साल में हम सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हुए हैं।” 

वह कहती हैं, “यदि कोई हमारे उत्पाद देखना या खरीदना चाहता है तो हमारे इंस्टाग्राम पेज पर संपर्क कर सकता है। इसके अलावा, फिलहाल हमारी कोशिश यही है कि कोरोना माहमारी और लॉकडाउन के कारण हुए नुकसान की भरपाई की जाए।” 

आगे उनकी योजना न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी अपने स्टोर खोलने की है। द बेटर इंडिया बेनोरिटा के जज्बे को सलाम करता है और हमें उम्मीद है कि वह अपने क्षेत्र में नई ऊंचाई को हासिल करेंगी। 

संपादन- जी एन झा

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