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JOHNY HOT DOG: तय किया 8 रुपये से 3 करोड़ तक का सफर, KFC और McD को भी छोड़ा पीछे

60 साल के विजय सिंह राठौर का बचपन काफी संघर्षपूर्ण रहा। वह उन दिनों को याद करते हैं, जब उनके परिवार को खाली पेट सोना पड़ता था। उनके पिता मजदूरी और रसोईये का काम किया करते थे। सात भाई-बहनों के साथ विजय इंदौर में एक छोटे से घर में रहते थे। हालात ऐसे थे कि रोजमर्रा की जरुरतें भी मुश्किल से पूरी होती थी। पाँच बहनों की शादी होने के बाद, विजय और उनके दो बड़े भाईयों ने परिवार के लिए कमाना शुरु कर दिया। कुछ सालों तक विजय ने चाय पिलाने का काम किया, जिससे वह 5 से 8 रुपये महीना तक कमाया करते थे। 1978 में उन्होंने इंदौर की छप्पन दुकान गली पर ‘जॉनी हॉट डॉग’ (Johny Hot Dog) नाम से एक फूड स्टॉल शुरू किया। और 40 साल बाद, आज उसी छोटी सी दुकान और वहाँ बिकने वाले महशूर ’हॉट डॉग’ से, उन्होंने 3 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है। इतना ही नहीं, UberEats, India की तरफ से उन्हें इनाम भी दिया गया है। 

द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए विजय ने अपनी यात्रा की कहानी साझा की है। उन्होंने अपनी सफलता के पीछे की कड़ी मेहनत और धैर्य के बारे में विस्तार से बात की।

टेबल पर कुछ अलग लाना

विजय के पास किसी तरह की स्कूली शिक्षा नहीं थी। मात्र 8 साल की उम्र में उन्होंने इंदौर के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज में एक कैंटीन में काम करना शुरू कर दिया। वह दिन भर छात्रों को चाय, ब्रेड और ऑमलेट परोसते थे। लेकिन काम करते हुए वह कभी थकते नहीं थे।

विजय ने वहाँ करीब डेढ़ साल तक काम किया। वह बताते हैं, “छात्र इस देश का उज्ज्वल भविष्य हैं। भोजन वह ऊर्जा है, जो उन्हें अध्ययन करने में मदद करेगी, इसलिए मैंने यह सुनिश्चित किया कि जो भी कैंटिन के अंदर आए वह पेट भर कर ही बाहर जाए। मेरी ब्रेड ऑमलेट छात्रों के बीच लोकप्रिय थी, क्योंकि कभी-कभी, मैं पाव में अंडे डाल कर देता था, तो कभी ब्रेड में डाल कर देता था। इसलिए, कुछ छात्रों ने उस डिश का नाम बैंजो रख दिया और तब से यह नाम मेरे दिमाग में अटक गया।”

11 साल की उम्र में, विजय ने अपना खुद का फूड स्टॉल शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी बचत से और अपनी माँ से कर्ज लेकर 4,500 रुपये इकट्ठा किए। इस राशि के साथ, उन्होंने छप्पन दुकान स्ट्रीट पर, 120 वर्ग फुट जगह में एक फूड आउटलेट खरीदा।

विजय कुछ अलग करना चाहते थे। वह शहर के कई अन्य स्टॉल की तरह समोसे और कचौड़ी नहीं बेचना चाहते थे।

विजय बताते हैं कि इसके दो कारण थे। वह कहते हैं, “पहला कारण यह था कि मैं कुछ ऐसा बेचना चाहता था, जो भीड़ से अलग हो। दूसरा समोसा या कचौरी बनाने की निवेश लागत अधिक थी। इसलिए, मैंने अपनी माँ से फिर से मदद ली। माँ ने मुझे आलू टिक्की बनाना सिखाया। मैंने आगे इस पर काम किया और इसे ब्रेड के बीच भर दिया। अंत में, मैंने सैंडविच को घी में पकाया।”

ग्राहकों के बीच उत्सुकता पैदा करने के लिए, उन्होंने उस डिश को ‘हॉट डॉग’ कहने का फैसला किया।

विजय बताते हैं कि आज तक उन्होंने मूल हॉटडॉग का स्वाद नहीं चखा है। वह कहते हैं, “मुझे हॉट डॉग नामक एक व्यंजन के बारे में पता था, क्योंकि हमारे शहर में एक थिएटर था, जहाँ केवल अंग्रेजी फिल्में दिखाई जाती थी। उनकी कैंटीन में, हॉटडॉग नाम का स्नैक्स मिलता था। लेकिन 70 के दशक में थिएटर बंद हो गया, और इसके साथ, हॉट डॉग भी चले गए।”

इस सरल विचार के साथ, उन्होंने चिकन और मटन से बनी दो अन्य किस्मों को तैयार किया। उन्होंने अपने बाकी निवेश का इस्तेमाल पैटीज़ को तलने के लिए एक बड़ा पैन खरीदने, मिश्रण बनाने के लिए कटोरे और कुछ कटलरी खरीदने के लिए किया। और इसके साथ ही, 50 पैसे में वेज हॉट डॉग और नॉन-वेज हॉटडॉग 75 पैसे में बेचना शुरु किया।

अलग नाम

विजय के अनुसार, उन दिनों में, ज्यादातर दुकान के मालिक अपने उपनाम पर अपनी दुकानों का नाम रखते थे। वहाँ जैन मिठाई की दुकानें, सिंह समोसा स्टॉल और बहुत कुछ था। वह जानते थे कि ‘राठौर हॉट डॉग’ नाम आकर्षक नहीं होगा। इसके अलावा, वह जानते थे कि उनका परिवार भी यह स्वीकार नहीं करेगा, क्योंकि उन्होंने परिवार के नाम के तहत अंडा और मांस बेचने पर आपत्ति जताई थी।

एक बार फिर एक अंग्रेजी फिल्म के पोस्टर से प्रेरणा लेते हुए, उन्होंने अपने स्टॉल का नाम जॉनी हॉट डॉग (Johny Hot Dog) तय किया। कई ग्राहक उन्हें जॉनी भाई भी कहते थे, लेकिन वह दादू के नाम से लोकप्रिय हैं।

विजय बताते हैं कि शुरुआत में एक भी दिन ऐसा नहीं गया, जब उन्होंने दुकान बंद करने की ना सोची हो। वह कहते हैं, “पहले कुछ महीनों में, मुझे केवल 15 या उससे भी कम ग्राहक मिलते थे। लेकिन, कुछ अवसरों पर, 30 ग्राहक हो जाते थे। पहले साल में, मैंने केवल 500 रुपये कमाए और यह सिलसिला अगले कुछ वर्षों तक जारी रहा। हालांकि, मुझे कोई लाभ नहीं हुआ, लेकिन रोजर्मरा की ज़रुरतों को पूरा करने के लिए मैंने अपना पैसा बुद्धिमानी से खर्च किया। ”

यहाँ तक कि अगर उन्हें नुकसान भी होता, तो वह अगले दिन वापस जाते और ग्राहकों का धैर्यपूर्वक इंतजार करते थे।

विजय ने छप्पन दुकान गली में अपनी छोटी सी दुकान से वही तीन सामान बेचना जारी रखा। 2005 तक, उनके व्यवसाय ने रफ्तार पकड़ी। सुबह 11 बजे से रात 11 बजे तक, ग्राहक उनके स्टोर के बाहर इंतजार करते थे, और विजय हर दिन 100 से अधिक हॉट डॉग्स बेचते थे। वह टिक्कियों को गर्म तवे पर तलते थे और उनके कुछ मददगार सब्जियां काटने और बर्तन धोने का काम कर देते।

जो ग्राहक दुकान पर आते थे, वह विजय से हमेशा कहा करते थे कि उन्होंने ऐसा स्वाद कभी नहीं चखा है। कुछ ने यह भी कहा कि यह McDonalds या KFC जैसे रेस्तरां में परोसे जाने वाले डिश से भी बेहतर है।

ऑनलाइन बेचना

2018 में, जॉनी हॉट डॉग (Johny Hot Dog) की यात्रा ने एक और मोड़ लिया, जब विजय के सबसे छोटे बेटे, हेमेंद्र सिंह राठौड़ ने व्यवसाय में शामिल होने का फैसला किया। 34 वर्षीय हेमेंद्र मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रैजुएट हैं। हेमेंद्र ने देखा था कि उनके पिता ने अपने परिवार, बच्चों की शिक्षा और अपनी बड़ी बहनों की शादी कराने के लिए हर दिन कितनी मेहनत की है।

हेमेंद्र खाने के ऑनलाइन ऑर्डर और डिलिवरी की ज़िम्मेदारी सँभालते हैं। वह कहते हैं, “मैं उनके व्यवसाय के विस्तार में मदद करना चाहता था और उन्हें इस पीढ़ी के नए ट्रेंड के साथ अपडेट रखना चाहता था। चूंकि कई लोगों ने ऑनलाइन खाना ऑर्डर करना शुरू कर दिया था, इसलिए मैंने उन्हें UberEats के तहत फूड स्टॉल रजिस्टर करने में मदद की।”

कुछ दिनों के भीतर, व्यवसाय ने रफ्तार पकड़ी और ‘जॉनी हॉट डॉग’ (Johny Hot Dog) को हर दिन न्यूनतम 100 ऑर्डर मिलने लगे। जल्द ही, विजय हर दिन 4,000 हॉट डॉग बेचने लगे और प्रत्येक हॉटडॉग की कीमत 30 रुपए तक हो गई।

2019 में, जॉनी हॉट डॉग (Johny Hot Dog) ने 3 करोड़ रुपये का कारोबार किया, और उनके शाकाहारी हॉट डॉग को UberEats पर सबसे अधिक ऑर्डर किया जाने वाले डिश का दर्जा दिया गया। पुरस्कार प्राप्त करने के लिए विजय ने हांगकांग भी गए।

हालांकि, COVID-19 लॉकडाउन के बाद से, जॉनी हॉट डॉग (Johny Hot Dog) की बिक्री धीमी हो गई है। हेमेंद्र का कहना है कि इसके बावजूद भी कुछ ग्राहक स्टोर से सामान लेते हैं और कुछ Zomato और Swiggy से। 

मूल लेख- रौशनी मुथुकुमार

संपादन- जी एन झा

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