आज ज्यादातर घरों में मॉडर्न किचन के साथ खाना पकाने के नए-नए साधन भी उपलब्ध हैं। मिट्टी के बर्तन तो मुश्किल से किसी किचन में देखने को मिलते हैं। कुछ घरों में पीने के पानी के लिए मिट्टी का घड़ा तो फिर भी दिख जाता है। हालांकि परम्परिक बर्तनों और साधनों से बने खाने की बात ही कुछ और होती है। ना सिर्फ स्वाद, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।
बाजार में इनकी मांग कम होने के कारण, कई कुम्हारों ने भी इन्हें बनाना बंद कर दिया है। लेकिन गुजरात के छोटा उदयपुर जिले के सुरतान भाई ने अपनी कला को नए रूप में ढालकर रोजगार का नया अवसर खोज निकाला है।
सुरतान भाई का पूरा परिवार सालों से मिट्टी के बर्तन बनाता आ रहा है। हालांकि वह स्कूल कभी नहीं गए, लेकिन मिट्टी के बर्तन बनाने की कला में माहिर हैं। छोटा उदयपुर के वन क्षेत्र में अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहने वाले सुरतान भाई पिछड़े आदिवासी हैं। इस कला से ही उनका और परिवार का गुजारा होता था। लेकिन जैसे-जैसे मिट्टी के बर्तनों की मांग कम होने लगी, उनका काम भी कम होने लगा।
मिट्टी के बर्तनों को दिया नया रूप
सुरतान भाई के सामने एक समय ऐसा आ गया था, जब उन्होंने अपने पारंपरिक काम को छोड़कर मजदूरी करनी शुरू कर दी। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताते हैं, “चूँकि मैंने बचपन से बस मिट्टी के बर्तन ही बनाए हैं, इसलिए किसी और काम को करने में मेरा मन नहीं लगता था। मैं हमेशा सोचता रहता की ऐसा क्या किया जाए, जिससे लोगों का मिट्टी के बर्तन के प्रति रुझान बढ़े।”
पढ़े-लिखे न होने के कारण, उन्हें कुछ भी नया सीखने में काफी दिक्क़ते आती थीं। उन्होंने बाजार और लोगों की जरूरतों को समझते हुए, कुछ नए प्रयोग करना शुरू किया। उन्होंने देखा की बाजार में स्टील और एल्युमिनियम के अलावा, नॉनस्टिक बर्तन लोगों को काफी पसंद आ रहे हैं।
सुरतान भाई की पत्नी कहती हैं कि हमने सोचा की अगर हम मिट्टी के बर्तनों को नॉनस्टिक बना दें तो लोग इसे जरूर खरीदेंगे। जिसके बाद वे घर पर उपलब्ध सामानों के साथ ही अलग-अलग प्रयोग करने लगे, और आख़िरकार एक दिन उन्हें सफलता मिल ही गई।
तेल और लाख का इस्तेमाल करके बनाते हैं नॉनस्टिक बर्तन
उन्होंने मिट्टी के बर्तनों को बिल्कुल प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल करके नॉनस्टिक बनाया। वह बताते हैं, “हम मिट्टी के बर्तनों को बनने के बाद, एक पूरा दिन उसे तेल में डूबा कर रखते हैं। जिसके बाद उसपर लाख की पॉलिश चढ़ाई जाती हैं। इससे बर्तन मजबूत भी बनते हैं, और नॉनस्टिक भी हो जाते हैं।” उन्होंने देखा की इसमें बने खाने में मिट्टी के बर्तन का स्वाद भी रहता है और खाना चिपकता भी नहीं है।
दोनों पति-पत्नी मिलकर मिट्टी का नॉनस्टिक तवा, कढ़ाई जैसे बर्तन बनाने लगे। इसी दौरान अहमदाबाद की सृष्टि संस्था को उनके इस काम का पता चला। यह संस्था पिछड़े इलाकों में बसे लोगों के अविष्कार और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करती है। संस्था के सम्पर्क में आने के बाद उन्हें काफी फ़ायदा हुआ। सृष्टि की ओर से आयोजित ‘किसान हाट’ में उन्हें अपने बनाए बर्तन बेचने का मौका मिला।
वह कहते हैं, “सामान्य मिट्टी का तवा, जो हम मात्र 20 से 30 रुपये में बेचा करते थे। वहीं, नॉनस्टिक तवा 100 से 200 रुपये में बिकता है।”
गांव में लोगों को बड़े बर्तन की जरूरत होती है, जबकि उन्होंने देखा कि शहरों में लोग छोटी-छोटी कढ़ाई और तवा ज्यादा पसंद करते हैं। इसके बाद उन्होंने विशेषकर शहरी ग्राहकों के लिए छोटे-छोटे बर्तन बनाना शुरू किया। पिछड़े गांव में रहने के कारण, उनके लिए अपना बनाया सामान शहरों में बेचना बेहद मुश्किल काम है।
वे इसके लिए सालभर शहरों में लगने वाले अलग-अलग मेलों आदि का इंतजार करते हैं। हालांकि कोरोना के कारण किसान हाट और दूसरे मेले में वह अपना सामान नहीं बेच पा रहे हैं। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही सब सामान्य होने के बाद वह अलग-अलग शहरों में लगने वाले मेलों में भाग ले पाएंगे। फ़िलहाल, वह अपने नॉनस्टिक तवा और कढ़ाई 70 से 200 रुपये तक में बेच रहे हैं। सुरतान भाई खुश हैं कि वह अपने खानदानी काम से आज भी जुड़े हुए हैं।
सुरतान भाई के बने बर्तनों के बारे में ज्यादा जानने या खरीदने के लिए 8140168009 पर सम्पर्क करें।
संपादन-अर्चना दुबे
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