अपनी सादगी, अपने व्यवहार और सोच से करोड़ों लोगों का दिल जीतने वाले सबसे अमीर लोगों में से एक, रतन टाटा (Ratan Tata) ने एक और जीत अपने नाम कर ली। इसके बाद एक ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा, “वेलकम बैक, एयर इंडिया।” जी हां! बिल्कुल सही समझा आपने। रतन टाटा ने इस ट्वीट के साथ, टाटा समूह के एयर इंडिया (Air India) के लिए बोली जीतने की खबर की घोषणा की।
यह रतन टाटा (Ratan Tata) के लिए भावनात्मक और गर्व का क्षण है। उन्होंने उस समय को भी याद किया, जब जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा के सक्षम नेतृत्व में एयरलाइन की स्थापना और प्रबंधन किया गया था।
एयर इंडिया (Air India) के लिए Tata Sons ने 18,000 करोड़ रुपये की विजयी बोली लगाई थी। टाटा समूह के साथ, स्पाइसजेट के प्रमोटर अजय सिंह ने भी वित्तीय बोली लगाई थी। Tata Sons के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने एयर इंडिया (Air India) के अधिग्रहण के लिए सफलतापूर्वक बोली जीतने के बाद, इसे “ऐतिहासिक क्षण” बताया। चंद्रशेखरन ने कहा, “यह एक ऐतिहासिक क्षण है और हमारे समूह के लिए देश की ध्वजवाहक एयरलाइन (Airline) का स्वामित्व और संचालन करना एक दुर्लभ विशेषाधिकार होगा।”
एयर इंडिया से जुड़ी अहम बातें, जो बहुत कम लोग ही जानते हैं:
- जे आर डी टाटा ने सन् 1932 में टाटा एयर सर्विसेज (Tata Air Services) एयरलाइन की स्थापना की। यह भारत में मेल और यात्रियों को ट्रांसपोर्ट करनेवाला पहला भारतीय कमर्शियल वाहक था। उचित सुविधाओं के अभाव में, फर्म को बॉम्बे (अब मुंबई) की जुहू हवाई पट्टी पर छप्पर की छत वाली एक छोटी सी झोपड़ी में शुरू किया गया था।
- अपने संचालन के पहले ही साल में, टाटा एयर सर्विसेज ने 2,57,495 किमी की उड़ान भरी, 155 यात्रियों को अपनी मंज़िल तक पहुँचाया और 10 टन से ज़्यादा मेल भी पहुंचाए। उसी वर्ष, इसने अपनी सबसे लंबी घरेलू उड़ान – बॉम्बे से त्रिवेंद्रम के लिए छह-सीटर माइल्स मर्लिन मोनोप्लेन को लॉन्च किया। चूंकि, ये हवाई जहाज छोटे थे, इसलिए कभी-कभार यात्रियों को मेल बैग के ऊपर बैठकर यात्रा करनी पड़ती थी।
भारत में अपनी तरह की पहली सार्वजनिक-निजी भागीदारी
- छह साल बाद, 1938 में, एयरलाइन का नाम बदल दिया गया और इसे टाटा एयरलाइंस (Tata Airlines) के रूप में जाना जाने लगा। इसके बाद, 1946 में, Tata Sons के विमानन प्रभाग (Aviation Division) को Air India के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। फिर 1948 में, एयर इंडिया इंटरनेशनल को यूरोप की उड़ानों के लिए लॉन्च किया गया था।
- यह भारत में अपनी तरह की पहली सार्वजनिक-निजी भागीदारी थी। भारत सरकार के पास 49% हिस्सेदारी थी, जबकि टाटा संस के पास 25% शेयर थे। बाकी शेयर्स सार्वजनिक निवेशकों के पास थे।
- 1953 में, एयरलाइन का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। लेकिन, अब एक फिर टाटा संस ने बोली जीतकर इसे अपने नाम कर लिया है।
- पिछले एक दशक से, काफी ज्यादा कर्ज में डूबे होने के कारण, Air India करदाताओं के पैसे पर चल रही थी।
- दिसंबर 2020 में, एयर इंडिया के 219 कर्मचारियों ने एयरलाइन के नियंत्रण के लिए बोली लगाने में अपनी रुचि जताई थी। कॉर्पोरेट इतिहास में यह पहली बार था, जब किसी सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने बोली प्रक्रिया का हिस्सा बनने का फैसला किया।
- टाटा संस, अब शायद अपने सभी विमानन निवेशों को और मजबूत करने पर विचार करेगी। दरअसल, टाटा संस की ‘विस्तारा’ में 51 फीसदी और ‘एयर एशिया इंडिया’ में 84 फीसदी हिस्सेदारी है। लगता है यह समूह अब विमानन क्षेत्र को संभालने के लिए पूरी तरह तैयार है।
मूल लेखः विद्या राजा
(Featured Image)
संपादन – मानबी कटोच
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