भेल पुरी, पानी पुरी, पनीर मसाला, कांदा भजिया – ये सारे नाम पढ़कर आपको ज़रूर लग रहा होगा कि यह भारत में किसी रेस्तरां का मेन्यू है। लेकिन यहां कहानी थोड़ी अलग है। ऐसे लजीज़ खाने का स्वाद आप लंदन के ‘Manju’s’ नाम के एक रेस्तरां में भी उठा सकते हैं। लंदन में गुजराती रेस्टोरेंट ‘मंजूज़’ को 85 साल की महिला, मंजू चलाती हैं।
मंजूज़ के मेन्यू में तरह-तरह के स्वादिष्ट गुजराती व्यंजन शामिल हैं। वह हर सुबह 7 बजे आती हैं, अपने शेफ की टोपी और एप्रन पहनती हैं और स्वादिष्ट चीज़ें तैयार करने में लग जाती हैं। इस उम्र में मंजू को काम करता देख मन में एक सवाल उठना स्वभाविक है। उम्र के इस पड़ाव पर जब ज्यादातर लोग काम से छुट्टी लेकर आराम करना चाहते हैं, तो क्या मंजू का मन आराम करने का नहीं करता?
द बेटर इंडिया के साथ बातचीत करते हुए इस सवाल के जवाब में मंजू कहती हैं, “नहीं ऐसा नहीं है। इस उम्र में भी व्यस्त रहना शानदार अनुभव है! भारतीय खाना कितना अच्छा है, यह दिखाना हमारा काम है और अपने काम के प्रति हमेशा ईमानदार रहना चाहिए।”
हालांकि, उनके लिए यहां तक पहुंच पाना काफी कठिन रहा है। मंजू के धैर्य और दृढ़ संकल्प की कहानी की शुरुआत होती है 1936 से।
14 साल की उम्र में हर रोज़ तैयार करती थीं 35 टिफिन
गुजराती रिवाज़ के अनुसार किसी भी महिला के पहले बच्चे का जन्म उसकी मां के यहां होता है। इसी रिवाज़ का पालन करते हुए 1936 में मंजू की मां, अपने बच्चे के जन्म के लिए युगांडा से गुजरात आई थीं। गुजरात में मंजू का जन्म हुआ और फिर वह अपने माता-पिता के साथ युगांडा वापस चली गईं।
मंजू जब केवल 12 वर्ष की थीं, तो उनके पिता की मृत्यु हो गई। इस घटना ने उन्हें झंकझोर कर रख दिया। चंचल और मासूमियत से भरपूर मंजू पर जल्द ही जिम्मेदारियों का बोझ आ गया। उन्हें शुरुआत से ही खाना बनाना काफी पसंद था। पिता की मौत के बाद, घर चलाने की ज़िम्मेदारी उन पर ही थी। ऐसे में उन्होंने खाना बनाकर पैसे कमाने और घर चलाने का फैसला किया।
अपनी मां की सलाह से बनाए गए व्यंजनों ने उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। 14 साल की उम्र में वह हर दिन करीब 35 टिफिन बनाकर तैयार करती थीं। उनके हाथों का बना खाना युगांडा के ऑफिस जाने वाले कर्मचारियों को काफी पंसद आता था।
वहां के लोगों ने चना दाल का स्वाद चखा और खूब सराहा। इस बीच मंजू का गुजराती व्यंजनों के स्वाद से रिश्ता और गहरा होता चला गया। उन दिनों को याद करते हुए मंजू कहती हैं कि वह अपनी मां की शुक्रगुज़ार हैं। मंजू ने बताया, “पारंपरिक गुजराती व्यंजनों के साथ, मेरी माँ ने हमें अनुशासन के मूल्यों और काम करने की नैतिकता भी सिखाई, जिन पर मैं अब भी चलती हूं।”
लंदन में गुजराती रेस्टोरेंट से पहले, 65 साल की उम्र तक की नौकरी
धीरे-धीरे समय बीतता गया। मंजू की शादी हुई और उनके दो बेटे, नईमेश और जैमिन हुए। मंजू के दूसरे बेटे के जन्म के दो साल बाद, 1972 में राष्ट्रपति ईदी अमीन ने युगांडा पर अधिकार कर लिया। वह स्वभाव से एक तानाशाह था। उसने एक कानून पारित किया और एशियाई सहित कई अन्य परिवारों को निष्कासित कर दिया गया।
मंजू के पास युगांडा छोड़ बाहर जाने के लिए काफी कम विकल्प थे। यूके में उनके एक रिश्तेदार थे, जो उनकी मदद कर सकते थे। सबसे सुरक्षित विकल्प देखते हुए मंजू, यूनाइटेड किंगडम आ गईं।
दो युवा लड़कों और हाथों में केवल 12 पाउंड के साथ, मंजु और उनका परिवार जानता था कि कठिन समय उनका इंतजार कर रहा है। कुछ समय बाद, मंजू को एक कारखाने में काम मिला, जहां बिजली के प्लग सॉकेट बनाए जाते थे। इस नौकरी में वह 65 साल की उम्र में रिटायर होने तक रहीं।
लेकिन मंजू के अंदर अब भी कहीं न कहीं खाना पकाने का शौक़ जिंदा था। वह अक्सर अपने लड़कों को प्रसिद्ध कढ़ी, आलू की सब्जी, दाल ढोकली, उंधू, थेपला, खांडवी और ऐसे ही अन्य स्वादिष्ट व्यंजन खिलाया करती थीं।
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लंदन में गुजराती रेस्टोरेंट खोल बच्चों ने दिया बेहतरीन सरप्राइज़
यूके में मंजू और उनके परिवार का शुरुआती जीवन काफी कठिन रहा। उन्हें कई बार अपना घर बदलना पड़ता था। ऐसा इसलिए क्योंकि मंजू, लोगों के घरों में किराए पर कमरे लेती थीं। काफी समय तक ऐसा ही चलता रहा। उनके बेटे नईमेश कहते हैं कि साल 1979 में उनकी मां ने लंदन में उनकी खुद की जगह खरीदी थी।
वह आगे कहते हैं, “उन्होंने हमारे सपनों को साकार किया। हम भी उनके सपने को पूरा करना चाहते थे। हम एक ऐसी जगह चाहते थे, जिसमें संस्कृतियों का संगम हो।” तीन साल की तलाश के बाद, 2017 में, मंजू के दोनों बेटों को आखिरकार एक ऐसी जगह मिल गई, जहां उन्हें लगा कि उनकी मां अपने खाना पकाने का बिज़नेस शुरू कर सकती हैं। उन्होंने अपने बिज़नेस की बचत से ब्राइटन में जगह खरीदी।
उस दिन को याद करते हुए मंजू कहती हैं कि जिस दिन उन्हें सरप्राइज़ मिला, वह उनके जीवन के सबसे खुशी के दिनों में से एक था। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता था कि मेरे लड़के क्या कर रहे थे! एक बार तैयार होने के बाद, वे मुझे रेस्तरां में ले गए और जब मुझे एहसास हुआ कि उन्होंने क्या किया है, तो मैं फूट-फूटकर रो पड़ी!”
उस समय मंजू की उम्र 80 साल थी, लेकिन उनके जीवन भर का सपना आखिरकार सच हो गया था। वह अपने जीवन के अगले अध्याय को शुरू करने के लिए तैयार थीं।
यूके में फैलाया गुजराती स्वाद और खुशबू
नाइमेश कहते हैं, “एक जगह जो अंग्रेजी कैफे था, उसे भारतीय स्वाद के अनुसार बदल देना, यह एक कठिन काम था।” लेकिन तीन महीने में उन्होंने यह कर दिखाया। आज, मंजू के दोनों बेटे रेस्तरां चलाने के काम में पूरी तरह से शामिल हो गए हैं। दोनों रेस्तंरा में अपने मेहमानों का अभिवादन करते और ऑर्डर लेते हैं। उनकी मां और उनकी दोनों बहुएं दीपाली और किट्टी, रसोई में मंजू की मदद करती हैं।
एक बार शुरू हो जाने के बाद, न तो COVID महामारी, न ही बरसात और न ही लॉकडाउन कोई भी इस काम को रोक नहीं सका। मंजू एक भी दिन की छुट्टी नहीं लेती हैं। वह कहती हैं, “मैं लोगों को भूखा नहीं देख सकती। मेरा मानना है कि हर किसी के पास पर्याप्त खाना-पीना और घर होना चाहिए।”
वह आगे कहती हैं कि ब्राइटन भोजन प्रेमियों के लिए स्वर्ग है और इसलिए उन्हें कभी भी मेहमानों की कमी नहीं दिखती। वह कहती हैं, “यहां आने वाले ज्यादातर लोग यहां के विभिन्न व्यंजनों को आजमाते है। इसके अलावा, ब्राइटन, यूके की विगन कैपिटल भी है, इसलिए गुजराती भोजन बहुत पसंद किया जाता है।”
ब्रिटेन में मंजू की यात्रा में भारतीय भोजन के प्रति लोगों की धारणा में बदलाव लाने की कोशिश की गई है। वह कहती हैं, “दुर्भाग्य से, कुछ लोगों को लगता है कि भारतीय खाने का मतलब विंदालू और चिकन टिक्का मसाला है। लेकिन यह उससे कहीं अधिक है।”
कब से कब तक खुलता है यह रेस्तरां?
अगर आप लंदन में गुजराती रेस्टोरेंट ‘मंजूज़’ जाने की सोच रहे हैं, तो पहले से ही टेबल बुक करा लेना अक्लमंदी होगी। मंजू की बहु और रेस्तरां की मुख्य रसोईया, दीपाली कहती हैं, “दिन काफी व्यस्त होते हैं और काम बहुत जल्दी शुरू हो जाता है। हम सबसे पहले उन प्रोडक्ट्स की जांच करते हैं, जो हमारे सप्लायर हमें देते हैं। हम एक सहज प्रक्रिया सुनिश्चित करते हैं और फिर तैयारी करते हैं। दोपहर के भोजन के समय, जैसे ही दिन के पहले मेहमान आते हैं, किचन हरकत में आ जाता है और तब से यह नॉन-स्टॉप चलता है।”
यह रेस्तरां गुरुवार से शनिवार तक दोपहर के भोजन के लिए दोपहर 12 बजे से दोपहर 2 बजे तक (केवल शनिवार को) और रात के खाने के लिए शाम 6 बजे से 10 बजे तक चलता है। यहां एक दिन में करीब 48 लोग आते हैं। एक ग्रूप में ज्यादा से ज्यादा चार मेहमान आते हैं। दीपाली कहती हैं, “छोटे मेन्यू और छोटे ग्रूप कारण हमें बेहतर और स्वादिष्ट खाना बनाने में मदद मिलती है।”
इस रेस्तरां में आप कभी भी चले जाएं, मेन्यू में कम से कम 12 व्यंजन तो ज़रूर होंगे, जो मौसमी सब्जियों के आधार पर लगातार बदलते रहते हैं। यहां हर डिश की कीमत लगभग 5 पाउंड है। मंजू और उनके बेटों का कहना है कि 2017 में जब से रेस्तरां ने जनता के लिए अपने दरवाजे खोले हैं, लोगों की प्रतिक्रिया शानदार रही है।
“सपने सच होते हैं”
नईमेश कहते हैं, “लोगों के दिलों में रेस्तरां का एक बहुत ही खास स्थान है।” हालांकि, उनका मुख्य उद्देश्य हमेशा लोगों को खुश करना था, लेकिन भारत को ब्राइटन तक ले आने की उनकी यात्रा अविश्वसनीय रही है। ग्राहकों का रिव्यू भी यही कहता है: ‘ बेहतरीन फ्लेवर और स्वाद’, ‘स्वादिष्ट भारतीय भोजन जो मैंने कभी नहीं चखा’, ‘एक दोस्ताना और सुकून भरा माहौल’।
हालांकि, हर बिज़नेस के साथ चुनौतियां आती हैं और मंजू का लंदन में गुजराती रेस्टोरेंट बिज़नेस भी अलग नहीं है। दीपाली कहती हैं, ”बढ़ती लागत एक चुनौती रही है, लेकिन बिज़नेस को सही तरीके से चलाने के लिए परिवार एक साथ आता है। रेस्तरां चलाना कठिन है, लेकिन जब तक लोग हमारे काम से प्यार करते हैं, हमारी मेहनत सार्थक है।”
जब कभी मंजू को खाना पकाने से कुछ समय का ब्रेक और अपने गुजराती रेस्तरां में लोगों को आते हुए देखने का समय मिलता है, तो वह गर्व से भर जाती हैं। वह कहती हैं कि परिवार का पालन-पोषण करने के लिए, अपने सपनों को ठंडे बस्ते में डाल दिया था, लेकिन अब उन्हें अपने जुनून को सच में बदलने का अवसर मिला है, जिसके लिए वह धन्य हैं।
अंत में होठों पर मुस्कान लिए वह कहती हैं कि, “सपने सच होते हैं।”
मूल लेखः कृष्टल डिसूजा
संपादनः अर्चना दुबे
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