Site icon The Better India – Hindi

साउथ अफ्रीका से शुरू हुआ इस स्वदेशी चाय का सफ़र, ब्रिटिश राज में लड़ी नस्लभेद के खिलाफ लड़ाई

कटिंग चाय, मसाला चाय, कहवा, लाल चाय और न जाने कितने ही विभिन्न प्रकार के चाय। भारत में, चाय केवल एक पेय नहीं है बल्कि यह एक भावना है। सुबह सूर्योदय के साथ आलस भगाने से लेकर सूर्य अस्त होने के साथ शाम को शरीर को ऊर्जा देने तक, चाय हमारी ज़िंदगी में अहम भूमिका निभाता है। 

ऐसा इसलिए है क्योंकि अन्य ऊर्जा पेय या पेय पदार्थों के विपरीत, चाय हमारे शरीर के भीतर अकेले नहीं जाता है। यह हमेशा बिस्कुट या नमकीन से भरी प्लेट और  इत्मीनान से होने वाली गप्प या महत्पूर्ण बातचीत के साथ जाता है। यही कारण है कि, ‘अड्डा’ शब्द ( जिसका अर्थ बातचीत है) अब चाय पीने के अनुभव के साथ महत्वपूर्ण रुप से जुड़ गया है। इसका प्रमाण देश के किसी भी हिस्से या कह सकते हैं कि करीब हर कोने में पाया जा सकता है।

एक ऐसे देश में जहाँ हर किसी की एक अलग पहचान और विचारधारा है, वहाँ विविधताएं और मतभेद बस एक कप चाय के प्याले के साथ शांत हो जाती हैं। इसी विचार के साथ भारत के सबसे प्रतिष्ठित चाय ब्रांडों में से एक वाघ बकरी चाय अस्तित्व में आया था।

मतभेद की लड़ाई

नरनदास देसी व कालूपुर गुजरात में उनका पहला स्टोर (बायें से दायें) source

वाघ-बकरी चाय की शुरुआत एक भारतीय उद्यमी, नरदास देसाई ने की थी और इस चाय का सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई का एक लंबा इतिहास है।

बात 1892 की है, जब देसाई ने दक्षिण अफ्रीका के डरबन में 500 एकड़ चाय एस्टेट के साथ अपना चाय व्यवसाय शुरु किया। उस समय, भारत की तरह, दक्षिण अफ्रीका भी औपनिवेशिक शासन के अधीन था और देसाई को भी कई बार नस्लीय भेदभाव की घटना का सामना करना पड़ा था। उनकी सफलता और नस्लीय भेदभाव की घटनाएं, दोनों एक साथ बढ़ रही थी। और फिर क्षेत्र में राजनीतिक अशांति ने उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर किया। कुछ कीमती सामान और अपने आदर्श, महात्मा गाँधी द्वारा रेकमंडेश्न सर्टिफिकेट के साथ एक नई शुरुआत के लिए 1915 में वह भारत वापस आए।

12 फरवरी, 1915 को उन्हें दिए गए प्रमाण पत्र, कहा गया, “मैं दक्षिण अफ्रीका में श्री नरेंद्रदास देसाई को जानता था, जहाँ वे कई वर्षों तक एक सफल चाय बागान के मालिक थे।” यह प्रमाण पत्र उनके वापस घर आने के लिए काफी मददगार था। 

गाँधी के समर्थन से उन्होंने 1919 में अहमदाबाद में गुजरात चाय डिपो की स्थापना की।

गाँधी जी की और से संस्तुति पत्र (बायें ),वाघ बकरी चाय का लोगो(दायें)

लेकिन देसाई पर गाँधी के प्रभाव का मतलब केवल स्वदेशी कंपनी चलाना नहीं था, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा था। यह एक सकारात्मक आंदोलन का आग़ाज़ था जो चाय और सामाजिक सद्भाव के संबंध में योगदान करने के लिए चला। उस समय प्रतिष्ठित वाघ बकरी लोगो के माध्यम से समानता का संदेश दिया गया। वाघ की तस्वीर या एक ही कप में वाघ और बकरी के साथ-साथ चाय पीने की तस्वीर वाले नए लोगो के माध्यम से कंपनी ने भारत में जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी और समानता को बढ़ावा दिया। इस लोगो के साथ, गुजरात चाय डिपो ने 1934 में वाघ बकरी चाय ब्रांड लॉन्च किया।

1980 तक, कंपनी ने, थोक और खुदरा, दोनों दुकानों में खुली चाय बेचना जारी रखा। लेकिन कंपनी जीवित रहने और उस समय समान व्यवसायों से अलग खड़े होने के लिए, नए नाम, गुजरात टी प्रोसेसर्स एंड पैकर्स लिमिटेड के तहत बोर्ड ने उद्यम को संशोधित करने और पैकेज्ड चाय बेचने का फैसला किया।

1978 में वाघ बकरी चाय का एक ऐड(दायें)

गुजरात भर में सफलता पाने के बाद, अगले कुछ वर्षों में कंपनी ने देश भर में विस्तार करना शुरू कर दिया। 2003 से 2009 के बीच, ब्रांड का कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान, यूपी, आदि तक विस्तार हुआ। 

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, वाघ बकरी टी ग्रुप के कार्यकारी निदेशक और चौथी पीढ़ी के उद्यमी, पराग देसाई का कहना है, “कुछ साल पहले, वाघ बकरी ब्रांड नाम को समझने में भारत के अन्य क्षेत्रों के उपभोक्ताओं को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। हालांकि कॉन्सेप्ट और लोगो से काफी उत्सुकता उत्पन्न हुई, और सुगंध और स्वाद हमारे ब्रांड की सफलता के लिए एक रीढ़ साबित हुआ।”

यह कंपनी अपने बराबरी और समानता के संदेश पर कायम रही है। हाल ही में, 2002 में सीईओ, पीयूष देसाई ने उल्लेख किया था कि कंपनी एक मुस्लिम व्यक्ति की मदद के बिना संभव नहीं हो पाती जिन्होंने उनके दादा की एक बड़ा लोन देकर मदद की थी। उस समय उन्होंने सवाल किया कि “क्या उस ऋण को चुकाया जा सकता है?”, जैसा कि मार्था नुसबम की किताब, द क्लैश विदइन: डेमोक्रेसी, रिलिजियस वायलेंस एंड इंडियाज़ फ्यूचर में उल्लेख किया गया है।

सामाजिक न्याय के क्षेत्र में ब्रांड की महत्वपूर्ण भूमिका और गाँधी से प्रेरित सार्थक मार्किंग के महत्व को अमेरिकी मार्केटिंग पंडित, फिलिप कोटलर ने 2013 में अपनी किताब मार्केटिंग मैनेजमेंट के 14 वें संस्करण में मान्यता दी थी। अमूल और मूव जैसे अन्य भारतीय ब्रांडों के साथ, कोटलर ने मीनिंगफुल मार्केटिंग डेवलप्मेंट के लिए वाघ-बकरी चाय के केस स्टडी पर प्रकाश डाला।

आज, यह ब्रांड 1,500 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार और 40 मिलियन किलोग्राम से अधिक के वितरण के साथ भारत के टॉप चाय ब्रांडों में से एक बन गया है। राजस्थान, गोवा से लेकर कर्नाटक तक, पूरे भारत में, वाघ बकरी एक घरेलू नाम बन गया है।

फीचर्ड इमेज स्रोत: वाघ बकरी / फेसबुक

मूल लेख- ANANYA BARUA

यह भी पढ़ें- इस स्वदेशी कंपनी ने दिया था सुनिया को पहला वेजीटेरियन साबुन, गुरुदेव ने किया था प्रचार

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

Exit mobile version