18वीं शताब्दी के प्रसिद्ध गणितिज्ञ लियोनार्ड ओयलर ने साल 1782 में गणित की एक अनोखी पहेली बनाई, जिसका हल कोई गणितज्ञ, यहाँ तक कि खुद ओयलर भी नहीं ढूंढ पाए। पर इस पहेली को 177 साल बाद हल किया एक भारतीय गणितज्ञ ने और उनकी इस उपलब्धि को न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने फ्रंटपेज पर छापा!
आदिकाल से ही भारत विख्यात गणितज्ञों की जन्मभूमि रहा है। आर्यभट्ट का नाम तो यहाँ का बच्चा-बच्चाः जानता है पर आज हम आपको देश के एक और महान गणितज्ञ से मिलवा रहे हैं, जिनका नाम है शरदचंद्र शंकर श्रीखंडे। श्रीखंडे ने ही ओयलर की मुश्किल पहेली का हल दिया था, लेकिन आखिर क्या थी वह पहेली?
आइये जानते हैं:
मान लीजिये कि छह अलग-अलग मिलिटरी रेजिमेंट में 36 अधिकारी हैं, और हर रेजिमेंट में विभिन्न रैंक के 6 अधिकारी हैं। इसे एक वर्ग में किस प्रकार व्यवस्थित किया जाये ताकि हर पंक्ति व कॉलम में 6-6 अधिकारी हों, और किसी भी पंक्ति या कॉलम में कोई रैंक या रेजिमेंट एक बार से अधिक न आए?
जब ओयलर ने इस पहेली को बनाया, तब उन्होंने बहुत हद तक इसे लैटिन स्क्वायर (Latin Square) की मदद से हल कर लिया था पर वह इसे पूरा नहीं कर पाये। इसके बाद उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इस पहेली का कोई हल हो ही नहीं सकता। 1901 में फ़्रांस के गणितिज्ञ गैस्तों टैरी ने इसे सुलझाने का प्रयास किया और वह असफल रहे। उन्होंने भी मान लिया कि इस सवाल को हल करना नामुमकिन है।
काफी अरसे तक कई गणितज्ञ इस सवाल का हल खोजते रहे और अंत में साल 1959 में भारतीय गणितज्ञ शरदचंद्र शंकर श्रीखंडे और उनके गुरु, आर. सी. बोस ने ओयलर के अनुमान को गलत सिद्ध किया और इस पहेली को हल करने में वे कामयाब रहे।
भारतीय गणितज्ञ व ओयलर की पहेली
ओयलर ने अपने कैरियर के दौरान प्रकाशिकी (Optics), ध्वानिकी (Acoustics), चंद्रगति (Lunar Motion), कलन (Calculus), ज्यामिती (Geometry), बीजगणित (Algebra) व संख्या सिद्धांत (Number Theory) जैसे विषयों पर करीब 900 पुस्तकें लिखीं।
हालांकि, गणित के इस सम्राट ने अपने करियर के शुरूआती दिनों में ही देखने की क्षमता खो दी थी। लेकिन कभी भी उनकी प्रतिभा व मेहनत पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा।
साल 1959 में श्रीखंडे व बोस ने अपने एक और साथी ई. टी. पार्कर के साथ मिल कर ओयलर की पहेली को हल किया। उस समय श्रीखंडे और बोस, दोनों ही चैपल हिल में उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के गणितीय सांख्यिकी विभाग (Department of Mathematical Statistics) में थे। श्रीखंडे यहाँ पर पीएचडी कर रहे थे, तो वहीं बोस साल 1949 से वहां शिक्षक के तौर पर कार्यरत थे।
न्यूयॉर्क टाइम्स में उनके बारे में छपने पर श्रीखंडे ने कहा था, “बोस, एर्नी (पार्कर) और मुझे अपने कार्य को न्यूयॉर्क टाइम्स के रविवार संकलन के मुख्यपृष्ठ पर देखने का दुर्लभ मौका मिला।”
“Major Mathematical Conjecture Propounded 177 Years Ago Is Disproved; 3 MATHEMATICIANS SOLVE OLD PUZZLE“– 26 अप्रैल 1959 के न्यूयॉर्क टाइम्स की यह हेडलाइन पूरी दुनिया को इन भारतीयों की उपलब्धि की गाथा सुना रही थी।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इन तीनों गणितज्ञों को उनके सहयोगियों के बीच ‘ओयलर्स स्पॉइलर’ के नाम से जाना जाता है यानी कि जिन्होंने ओयलर की थ्योरी को बिगाड़ दिया। साल 1959 में न्यूयॉर्क में आयोजित अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी की वार्षिक सभा में भी उनके इस कार्य के बारे में बताया गया।
श्रीखंडे व उनका जीवन
श्रीखंडे का जन्म 19 अक्टूबर 1917 में मध्यप्रदेश में हुआ। वे दस भाई-बहन थे और उनके पिता सागर जिले में एक आटा चक्की पर नौकरी करते थे। पर ज़रा-सी आमदनी में बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा बड़ी चुनौती थी। श्रीखंडे बचपन से ही मेधावी छात्र रहे और इस वजह से उन्हें लगातार स्कॉलरशिप मिलती रही, जिसके सहारे उन्होंने नागपुर के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ साइंस से बीएससी आनर्स की पढ़ाई पूरी की। यहाँ उन्हें न सिर्फ़ रैंक मिली बल्कि उन्हें गोल्ड मेडल से भी नवाज़ा गया।
नौकरी मिलना उनके लिए कभी भी आसान नहीं रहा, लेकिन फिर भी दिन-रात मेहनत करने के बाद उन्हें भारतीय सांख्यिकी संस्थान में नौकरी मिल गयी। इस नौकरी से उनकी ज़िंदगी थोड़ी संवर गयी और स्थिर हुई। यहीं पर उनकी मुलाक़ात आर. सी बोस से हुई और उन्होंने श्रीखंडे को सांख्यिकी डिजाईन के सिद्धान्त से परिचित कराया। इसी ज्ञान से आगे चल कर उन्होंने उस कठिन पहेली को हल किया।
इसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए उस कॉलेज में पढ़ाया, जहाँ से वे खुद पढ़े थे।
फिर स्कॉलरशिप मिलने पर श्रीखंडे ने उत्तरी कैरोलिना के विश्विद्यालय में पीएचडी करने के लिए दाखिला लिया। जल्द ही, उनकी पत्नी शकुंतला व बच्चे भी वहां शिफ्ट हो गए। श्रीखंडे का परिवार साल 1953 में भारत लौटा और 1958 तक नागपूर में रहा। इसके बाद, उन्होंने चैपल हिल में एक विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में काम किया।
साल 1963 में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय में काम करना शुरू किया और साल 1978 में रिटायरमेंट ली।
1983-86 के बीच वे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के मेहता रिसर्च इंस्टिट्यूट में निदेशक के रूप में कार्यरत थे। पर साल 1988 में अपनी पत्नी शकुंतला के निधन के बाद श्रीखंडे अपने बच्चों के पास अमेरिका चले गए।
वहां से वे साल 2009 में भारत लौटे और विजयवाड़ा में अपनी एक पोती के ससुराल वालों द्वारा गरीब लड़कियों के लिए चलाये जा रहे आश्रम में ही बस गये।
ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। जिन दिग्गजों ने विश्व में भारत को यह पहचान दिलाई है, उनमें शरदचंद्र शंकर श्रीखंडे का भी नाम आता है!
द बेटर इंडिया, भारत के इस अनमोल रत्न को सलाम करता है!
संपादन: निशा डागर
मूल लेख: अंगारिका गोगोई