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‘परमवीर चक्र’: कौन थी वह विदेशी महिला, जिसने डिज़ाइन किया भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान

Paramveer Chakra, India highest medal was designed by Savitribai Khonalkar

परमवीर चक्र, भारत का एक सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। युद्ध के दौरान, बहादुरी व शौर्य का परिचय देने वाले सैनिकों को परमवीर चक्र से नवाजा जाता है। अब तक भारत में कुल 21 वीर योद्धाओं को परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) से सम्मानित किया गया है। लेकिन क्या आपको पता है कि इसका डिजाइन किसने तैयार किया था? आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि देश के इस सर्वोच्च सैन्य सम्मान का डिजाइन एक विदेशी महिला ने तैयार किया था।

परमवीर चक्र को बैंगनी रंग की रिबन की पट्टी (32 mm) और एक पीतल की धातु के गोल आकार से डिज़ाइन किया गया है। इसके चारों तरफ वज्र के चार चिह्न बनाए गए हैं और पदक के बीचो-बीच अशोक चिह्न बना हुआ है। परमवीर चक्र के दूसरी ओर कमल का चिह्न भी है, जिसमें हिंदी और अंग्रेजी में ‘परमवीर चक्र’ लिखा गया है। इसकी ऊपरी सतह पर संक्षिप्त नाम पीवीसी लिखा गया है।

परमवीर चक्र का प्रारूप (Design Of Param Vir Chakra), साल 1913 में जन्मी स्विट्जरलैंड की एक महिला ‘इवा योन्ने मैडे डीमारोस’ (Eve Yvonne Maday de Maros) ने तैयार किया था।

Param Vir Chakra (Source: Twitter)

एक सैन्य अधिकारी से शादी कर, बदल लिया था अपना नाम

इवा छोटी सी उम्र में ही भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत से परिचित हो चुकी थीं। धीरे-धीरे उनकी रुचि भारत के तरफ बढ़ती चली गई। जब वह बड़ी हुईं, तब उनकी मुलाकात महाराष्ट्र के विक्रम खानोलकर से हुई, जो सेना में अधिकारी थे। वह ब्रिटेन के राष्ट्रीय मिलिट्री अकादमी में प्रशिक्षण ले रहे थे। इवा को किशोरावस्था में ही विक्रम से प्यार हो गया और फिर दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद वर्ष 1932 में, इवा ने अपना नाम बदलकर सावित्री बाई कर लिया और विक्रम खानोलकर के साथ महाराष्ट्र में रहने लगीं।

भारतीय इतिहास और परंपरा में थी सावित्रीबाई की गहन रुचि

सावित्री बाई खानोलकर जल्द ही भारतीय इतिहास से वाकिफ हो गई थीं। उन्हें पुराने योद्धाओं की कहानियों, परंपरा और धार्मिक दस्तावेजों को पढ़ने की आदत हो गई थी। साथ ही, भारत की कला, संगीत, नृत्य और भाषा विज्ञान में भी उनकी रुचि थी। जल्द ही उनका यह समर्पण और शिक्षा, देश के काम आ गए। क्योंकि उस समय भारत का विद्वान वर्ग देश की पहचान को फिर से स्थापित करने के लिए ज्ञान का उपयोग कर रहा था।

उस समय देश को मिली आजादी का जश्न मनाया जा रहा था और कोशिश की जा रही थी कि ब्रिटिशों से जो कुछ भी विरासत में मिला है, उसे हटाकर देश में जो कुछ भी है, उसके इस्तेमाल पर ध्यान दिया जाए।

एड्जुटेंट जनरल हीरा लाल अटल को ब्रिटिश विक्टोरिया क्रॉस की जगह, उसके बराबरी का ही भारतीय मेडल बनाने का काम सौंपा गया। तब उन्होंने, देश के बारे में गहन ज्ञान रखनेवाली सावित्रीबाई को विश्वास में लिया। इसके बाद ही, भारत के प्रतिष्ठित वीरता पदक को डिजाइन करने की प्रक्रिया शुरू हुई। यह प्रारूप (डिजाइन), उन सैनिकों के शक्ति और बलिदान के प्रदर्शन का प्रतिनिधित्व करने के लिए था, जिन्होंने देश व देशवासियों की सुरक्षा के लिए आपनी जान न्यौछावर कर दी।

Savitri Bai & Vikram Khanolkar

छत्रपति शिवाजी से प्रेरित था मेडल का प्रारूप

इस वीरता पुरस्कार के बारे में सावित्रीबाई खानोलकर ने कहा था कि महान योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के अलावा, कोई भी योद्धा इसका (परमवीर चक्र) प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। शिवाजी महाराज आज भी अपनी शक्ति और सामरिक रक्षा नीति के लिए याद किए जाते हैं। शक्तिशाली शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की ढाल में वज्र के साथ तलवार हुआ करती थी, जिसे भवानी कहा जाता था। पौराणिक कथाओं की मानें, तो ऋषि की हड्डी से बने हथियार को बुराई पर अच्छाई की उद्देश्य से शत्रुओं को मारने के लिए उपयोग किया जाता था।

पहला परमवीर चक्र सम्मान, सन् 1950 में मनाए गए देश के पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रदान किया गया था। पहली बार यह सम्मान, सावित्रीबाई खानोलकर के दामाद के भाई मेजर सोमनाथ शर्मा को दिया गया था।

मूल लेख- रिया गुप्ता

संपादन- जी एन झा

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