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जानिए कैसे एक बिना दांत वाले नवाब की वजह से भारत को मिला कबाब, जो है बेहद लाजवाब!

कबाब बनाना एक मुश्किल काम है और अगर कहें कि कबाब थोड़ा मनमौजी होता है तो शायद गलत नहीं होगा। अगर जायफल या कचरी (कच्चा पपीता) की मात्रा चुटकी भर भी ज़्यादा हो जाए तो समझ लीजिए कि कबाब सही नहीं बनेंगे। ये तेल में डालते ही टूट जाएंगे। 

खैर, यह कितना भी मनमौजी हो लेकिन मुँह में घुल जाने वाला यह स्वादिष्ट व्यंजन पूरे विश्व में लोकप्रिय है। कबाब केवल मांसाहारी ही नहीं होता बल्कि शाकाहरी (वेगन) भी बताया जाता है। इसकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में भारत में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान यह सबसे ज़्यादा मंगवाया जाने वाला व्यंजन था। 

मसालों के साथ मीट कीमा ( या सब्जियों का कीमा ) को तेल में धीमी आँच पर पकाए जाने वाले इस डिश की बात ही कुछ और होती है। कोयले की मादक सुगंध सीधे दिल तक जाती है जबकि कटे प्याज़ और टमाटर के साथ परोसे जाने वाली कबाब में इस्तेमाल मसालों की खुशबू से मुँह पानी से भर जाता है। 

कबाब कई तरह के होते हैं, इनमें शामी, नार्गिसी, सीक, गलौटी, टुनडे, काकोरी, शिखमपुरी सबसे ज़्यादा मशहूर हैं। हर रेसिपी में अलग-अलग तरह के मसालों का इस्तेमाल होता है और कुछ-एक तो 160 तरह के मसालों के साथ बनाए जाते हैं। 

मिडिल-ईस्ट में धीमी आँच पर मीट कीमा को पकाए जाने वाली यह डिश आखिर भारत तक पहुँची कैसे? इन व्यंजनों के नाम किसने दिए? इनमें किन मसालों का इस्तेमाल किया जाता है? इन सवालों के मुझे बेहद दिलचस्प जवाब मिले। कुछ जवाब में तो एक हाथ वाला रसोईया, बिना दांतों वाला नवाब, एक अपमानित मेजबान और तलवारों तक का ज़िक्र है। 

कब हुआ भारत में कबाब का प्रवेश

कहा जाता है कि कुछ तरह के कबाब बनाने में 160 मसालों का इस्तेमाल होता है।

एक तरह से कबाब आग पर भुना हुआ मांस होता है। कबाब कई तरह से बनाए जाते हैं जैसे छोटे टुकड़ों में काटे हुए, चपटा कर बनाए गए, कीमा बनाए गए, अलग तरह के आकार दिए गए और हड्डी के साथ। यदि कोई इस परिभाषा को माने तो वास्तव में कबाब एक प्राचीन व्यंजन है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल के लोग आग पर भुने हुए मांस के टुकड़े खाते थे। चलिए थोड़ा आगे चलते हैं। 

महाभारत में भी भुने हुए मांस का उल्लेख है और साथ ही 11 वीं शताब्दी में कल्याणी चालुक्य राजा सोमेश्वरा तृतीय द्वारा संस्कृत ग्रंथ मानसोलासा में आग पर भुने हुए मांस के टुकड़ों की बात की गई है। हम जानते हैं कि कबाब भारत में मध्य पूर्व से तुर्क और मैत्रीपूर्ण दूतों द्वारा लाया गया था। 

इस शब्द की जड़ें अरबी शब्द कबाब में हैं, जिसका अर्थ है भुना हुआ मांस। यह मांस पकाने के लिए सबसे आसान तरीकों में से एक है। सैनिक अपने रास्ते पर जानवरों का शिकार करते थे, उन्हें अपनी तलवारों से काटते थे और उन्हें खुली आग पर भून देते थे। 

अब जब हमारे पास एटमालजी और इतिहास हैं, तो हम भारत में कबाबों की बात करते हैं। बेहद पसंद किया जाने वाला भुना हुआ कबाब (या सीक कबाब) सेनाओं के साथ उपमहाद्वीप में मध्य एशिया से पहुंचा। रसोईयों ने इन विदेशी व्यंजनों को सही बनाने की कोशिश की और अपने मालिकों को खुश करने के लिए उनकी पसंद के मसालों का इस्तेमाल करना शुरू किया। 

मुगल युग के रसोईयों ने इसमें जोड़ा अपना जादू 

Şişkebap source

इतिहास पर नज़र डालें तो पता चलता है कि मुगलों को मांस कीमा से बनाया हुआ व्यंजन बहुत पसंद था। लेकिन कबाब ज़्यादा चबा कर खाना पड़ता था क्योंकि तुर्कों को वैसा ही पसंद था। 

समय के साथ, भारतीय रसोइयों ने सीक कबाब के रूप को बदला और इसे गोल पैटी के रूप में तराशा। यहां, शामी कबाब की कहानी के बारे में बताना ज़रूरी है। 

1775-1797 तक, आसफ़-उद-दौला अवध के नवाब वज़ीर थे। वह अच्छे भोजन के काफी शौकीन थे, लेकिन इस शौक ने उनके शरीर की चर्बी बढ़ा दी थी। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और जल्द ही मुंह के सारे दांत गिर गए। 

लेकिन बगैर दांतों वाले, मांस खाने के शौकीन नवाब को खुश करना भी था। 

शाही रसोइयों ( रक़बदारों ) ने पहले ही खाना पकाने की ‘दम’ विधि पर पकड़ हासिल कर ली थी और ज़्यादा सुंगध और स्वाद के साथ भोजन परोस रहे थे। और अब, उन्हें कुछ ऐसा करना था, जिसे नवाब बिना चबाए खा सके। 

इतिहासकार लिजी कोलिंघम ने अपनी किताब ‘करी: ए टेल ऑफ़ कुक्स एंड कोन्कर्स’ में लिखती हैं, “ऐसा माना जाता है कि शामी कबाब को इस समस्या को हल करने के लिए बनाया गया है। उन्हें बारीक कटे हुए मांस से बनाया जाता था जिसे कीमा कहा जाता है। इस कीमे को पीस कर महीन पेस्ट बनाया जाता था और फिर अदरक और लहसुन, खसखस ​​और विभिन्न मसालों को मिलाकर इसे गोल या रोल के आकर का बनाया जाता था, उन्हें एक सींकचा पर रखा जाता और फिर आग पर भूना जाता। और फिर ऐसी डिश बनती जो बाहर से कुरकुरी और अंदर से इतनी मुलायम और नरम होती थी कि आसफ-उद-दौला जैसे बिना दांत वाले नवाब भी खुशी से खाया करते थे।”

और फिर हाजी मुराद अली इन कबाबों को और बेहतर स्वाद के साथ ले कर आए। हाजी मुराद वो रसोईये हैं, जिन्होंने मशहूर टुंडे कबाब का इजाद किया था। 

प्रतिष्ठित 115 वर्षीय लखनऊ प्रतिष्ठान, टुंडे कबाब के वर्तमान वारिस, मुहम्मद उस्मान कहते हैं, “छत पर पतंग उड़ाते समय मेरे दादा की बांह टूट गई थी। ठीक से इलाज ना होने के कारण उनके एक हाथ ने काम करना बंद कर दिया था। लेकिन उन्हें खाना पकाना बहुत पसंद था। और यहां तक कि अपने साथ काम करने वालों के मुकाबले वह एक हाथ से ही काफी तेज़ी से प्याज़ काट सकते थे। वह मांस को इतना बारीक काटते थे कि मसाले पूरी तरह से उसमें मिल जाएं।”

प्रसिद्ध सीक कबाब जिन्हें कोयले में रोस्ट किया जाता है source

जब नवाब वाजिद-अली-शाह ने घी में पकाए गए, मुंह में घुलने वाले कबाब को चखा तो उन्होंने इसे बनाने वाले के बारे में पूछा। एक हाथ वाले रसोई का ज़िक्र करते हुए उन्हें बताया गया कि यह टुंडे कबाब हैं। 

द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए उस्मान बताते हैं, “कबाब बनाने की रेसपी आज भी वही है। हम मांस को पकाने के लिए कई मसाले, विशेष रूप से कचरी (कच्चा पपीता) मिलाते हैं। यह पाचन के लिए भी अच्छा है और कुछ पुराने हकीमों (डॉक्टरों) ने मेरे दादाजी को इसके पाचन गुणों के लिए मांस में जोड़ने के लिए कहा था।”

कबाब के कई रिश्तेदार – नरगिस, काकोरी और डोनर!

कबाब तुर्की और ग्रीक से आगे एक लंबा सफर तय कर चुके हैं। डोनर और शीश कबाब को शामी कबाब का विदेशी रिश्तेदार कहा जा सकता है। यह कम मसालेदार होते हैं और खाने के लिए ज़्यादा चबाना पड़ता है।

ओमान के मस्कट में तुर्की रेस्तरां, अल-अजीज के प्रमुख शेफ बैरीस शेरेफोग्लु मुस्कुराते हुए बताते हैं, “डोनर में मांस की चपटी परतें होती हैं, जिसे एक शंक्वाकार आकार में रखा जाता है और धीमी आंच पर पकाया जाता है। हम बाहरी परतों को काट देते हैं, जिससे श्वरमा बनता है। सीक कोयले पर भुना हुआ मांस होता है। भारतीय और तुर्की सीक कबाब में अंतर यह है कि हम मांस को पीसते समय लाल शिमला मिर्च का उपयोग करते हैं। और यह कम मसालेदार भी है।”

काकोरी कबाब, भारतीय कबाब का ही एक प्रकार है। यह बारीक कटे मांस के कीमे से बनाया जाता है जिसे मलिहाबादी आम मिला कर नरम बनाया जाता है। काकोरी कबाब लखनऊ के काकोरी जिले के स्थानीय अभिजात वर्ग के नवाब सैयद मोहम्मद हैदर काज़मी की वजह से अस्तित्व में आया था।

कहा जाता है कि जब एक ब्रिटिश गवर्नर को आम के मौसम का आनंद लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, तब उन्होंने नवाब के दस्तरख्वान में परोसे गए कबाब के खुरदुरेपन पर विरोधात्मक टिप्पणी की। टिप्पणी से दुखी नवाब ने सभी रकाबदरों और खानसामाओं को बुलाया और उन्हें बेतहर तरीके से बनाए गए सीक कबाब परोसने के लिए कहा। और इस तरह नवाब की रसोई में काकोरी कबाब अस्तित्व में आया।

नर्गीसी कबाब (उबले हुए अंडे को चारो चरफ से कीमे से ढक कर तेल में तल कर बनाया गया) को जब आप काटते हैं तो मांस की परत के नीचे का सफेद और पीला रंग, नर्गीस फूल की तरह दिखता है। 

गलौटी कबाब

कबाब से जुड़ी कई कहानियाँ और रेसिपीज हैं। हैदराबाद का शिकामपुरी (दही से भरा हुआ मांस), पथर का गोश्त (अंगारों पर गर्म ग्रेनाइट पत्थर पर पकाया जाने वाला मांस), कश्मीर की तख़्त माज़ (दूध में पकाई गई और फिर तेल में तली हुई) और राजस्थान की मास का सुला (अंगारों पर पकाया गया मांस), यह लिस्ट काफी लंबी और प्रभावशाली है।

मेरी माँ की गलौटी कबाब की रेसिपी

कबाब कई तरह से बनाए जाते हैं स्वाद के लिए अनगिनत मसालों का इस्तेमाल किया जाता है। कई प्रकार के मांस उपलब्ध हैं – चिकन, मटन, लैंब।

तो, चलिए एक रेसिपी आजमाते हैं जिसमें मेरी माँ ने कई परीक्षणों और कमियों के बाद पारंगत हुई हैं।

नोट: इस रेसिपी के लिए आधा किलो बारीक मटन कीमा इस्तेमाल करें

सामग्री:

मसाला मिश्रण (ज्यादातर कबाब / मीट करी के लिए इस्तेमाल होता है)

(मसालों को सुखाकर एक बार ठंडा होने पर भूनें)

मेरीनेड   

चारकोल सुगंध के लिए:

गर्म कोयले: 3 छोटे

लौंग: 4 छोटी

घी: दो चम्मच

स्टील का कटोरा, एक ढक्कन

आम तौर पर, रसोइये मसाला मिश्रणों के साथ गलौटी कबाब में खुशबू जोड़ते हैं, इसलिए इसमें हरी पत्तियां जैसे कि धनिया, मिर्च या पुदीना नहीं मिलाएं ( ये शामी के लिए हैं)

तरीका:

अब पकाते हैं कबाब

मूल लेख- SAIQUA SULTAN

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