वायु सेना में ‘फाइव स्टार’ रैंक स्तर तक पहुँचने वाले एकमात्र अधिकारी, अर्जन सिंह ने 31 साल तक देश की सेवा की थी।
19 साल की छोटी सी उम्र में पायलट ऑफिसर के रूप में वे वायु सेना में दाखिल हुए थे। और 1965 के युद्ध में उन्होंने देश के पहले वायु सेनाध्यक्ष के रूप में भारतीय वायु सेना का नेतृत्व किया। उनके इस सफ़र में उन्होंने ऐसे-ऐसे कारनामे कर दिखाए थे, जिनके लिए वे सदियों तक याद किये जायेंगे!
आईये इस महान योद्धा के जीवन के कुछ प्रेरक क्षणों पर एक नज़र डालें –
1. 15 अप्रैल 1919 को लायलपुर में जन्मे, अर्जन सिंह औलख, सेना अधिकारीयों के परिवार से ही थे। वह केवल 19 वर्ष के थे, जब उन्हें रॉयल एयर फोर्स (RAF), क्रैनवेल में एम्पायर पायलट ट्रेनिंग कोर्स के लिए चुना गया।
2. कमीशनिंग के बाद उनकी पहली पोस्टिंग नंबर 1 IAF स्क्वाड्रन में हुई, जहाँ उन्होंने नॉर्थ वेस्टर्न फ्रंटियर प्रोविंस में वेस्टलैंड वेपिटी बाइप्लेन से उड़ान भरी।
3. 1942-43 में उन्होंने अराकन अभियान के दौरान और 1944 में इम्फाल अभियान के दौरान जापानियों के खिलाफ़ स्क्वाड्रन का नेतृत्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
4. इस दौरान अपने धैर्य और वीरता के लिए, उन्हें 1944 में डिसटिंगुइश्ड फ्लाइंग क्रॉस (डीएफसी) की पदवी दी गयी।
5. 15 अगस्त, 1947 को आजादी के जश्न के दौरान, लाल किले के ऊपर उड़ान भरने वाले फ्लाईपास्ट का नेतृत्व करने वाले पहले ऑफिसर अर्जन सिंह ही थे।
6. 1949 में उन्हें एयर कमांडर के पद पर पदोन्नत किया गया और ऑपरेशनल कमांड के एयर ऑफिसर कमांडिंग (AOC) के रूप में उन्होंने पदभार संभाला, जो बाद में वेस्टर्न एयर कमांड बन गया।
सेना में ऑपरेटिव कमांड के एओसी के रूप में सबसे लंबे समय तक सेवा देने का सौभाग्य भी अर्जन सिंह को ही प्राप्त है।
7. 1964 में 44 साल की उम्र में अर्जन सिंह ने वायु सेना प्रमुख के रूप में पदभार संभाला।
8. अर्जन सिंह, उन गिन-चुने पायलटों में से एक थें, जिनके पास 60 से भी ज़्यादा अलग-अलग प्रकार के एयरक्राफ्ट्स को उड़ाने का अनुभव था। इनमें विश्व युद्ध- 2 से भी पहले इस्तेमाल किये जानेवाले बायप्लेंस से लेकर, आज के Gnats और Vampires भी शामिल हैं।
9. 1965 का भारत-पाक युद्ध कैप्टेन अर्जन सिंह के लिए परीक्षा की घड़ी लेकर आया। रिपोर्ट्स के मुताबिक़, जब पाकिस्तान ने अपना ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया, तो अर्जन सिंह को हवाई सहायता देने का अनुरोध करते हुए, रक्षा मंत्री के कार्यालय में बुलाया गया। हमेशा से कम से कम शब्दों का सहारा लेने वाले, अर्जन सिंह का जवाब था, “बस! एक घंटे में”।
10. इसके ठीक एक घंटे बाद अर्जन सिंह की हवाई टुकड़ी पाकिस्तानी सेना के खिलाफ़ डट कर खड़ी थी। अगर भारतीय वायुसेना और भारतीय सेना के बीच की यह अतुलनीय साझेदारी नहीं होती, तो शायद ही भारत इस युद्ध को जीत पाता।
11. उनके उत्कृष्ट नेतृत्व कौशल और वीरता के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। आने वाले समय में, युद्ध में सेनाओं के योगदान को ध्यान में रखते हुए, सीएएस के रैंक को एयर चीफ मार्शल के रूप में अपग्रेड कर दिया गया, और अर्जन सिंह भारतीय वायु सेना के पहले एयर चीफ मार्शल बन गए।
12. 1970 में स्वेच्छा से रिटायर होने के बाद, अर्जन सिंह को 1971 में स्विट्जरलैंड और वेटिकन में भारतीय राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया। बाद में उन्होंने 1974 से 1977 तक केन्या के उच्चायुक्त के रूप में काम किया और 1975 से 1981 तक वे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य रहे ।
13. सेवानिवृत्ति के बाद भी राष्ट्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को देखते हुए, उन्हें 1989 से 1990 तक दिल्ली के उपराज्यपाल के तौर पर चुना गया।
14. उनकी सेवाओं का आदर करते हुए, अर्जन सिंह को जनवरी 2002 में वायु सेना के मार्शल के पद से सम्मानित किया गया, जिससे वे भारतीय वायुसेना के पहले और एकमात्र ‘फाइव स्टार’ रैंक के अधिकारी बन गए।
15. 28 जुलाई 2015 के दिन, 96 वर्षीय अर्जन सिंह, उन कई गणमान्य व्यक्तियों में से एक थे, जो पूर्व राष्ट्रपति डॉ० एपीजे अब्दुल कलाम को पालम हवाई अड्डे पर अंतिम विदाई देने पहुंचे थे।
16. 14 अप्रैल, 2016 को उनके 97 वें जन्मदिन के अवसर पर, पश्चिम बंगाल के पनागर में एक एयर बेस का नाम उनके नाम पर रखा गया।
16 सितम्बर 2017 को इस महान व्यक्तित्व ने इस दुनिया से विदा ले ली, पर आज भी उनके जोश और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल वायु सेना के लिए एक प्रेरणा है!