Site icon The Better India – Hindi

छोले भटूरे ने कैसे तय किया इतिहास का सफर?

दिल्ली और छोले भटूरे के बीच एक ऐसा रोमांस है, जो शायद कहीं और देखने को नहीं मिल सकता। हर साल, जैसे ही राजधानी में कड़ाके की ठंड पड़ती है, सैकड़ों लोग खुद को गर्म रखने के लिए अपने पसंदीदा मसालेदार छोले के कटोरे और तली हुई पूरियों की ओर रुख करते हैं।

छोले भटूरे के हमारे यहां तक पहुंचने से जुड़े कई किस्से व कहानियां हैं और हर प्रेम कहानी की तरह इस कहानी में भी कई उतार चढ़ाव हैं।

लेकिन इससे पहले कि हम उन कहानियों की चर्चा करें, जो नहीं जानते वे जान लें कि आखिर छोले भटूरे है क्या?

दिल्ली के हर गली-सड़क में छोले-भटूरे बिकते दिख जाएंगे। इस स्वादिष्ट व्यंजन का मज़ा लेने के लिए हर रोज़ सैकड़ों लोग कतार में खड़े होते हैं और अपनी बारी का इंतजार करते हैं। इस व्यंजन में दो चीजें होती हैं, एक मसालेदार काबुली चने के छोले और दूसरा भटूरा, एक तरह की मैदे की तली हुई पूरी। दोनों की जोड़ी को कहा जा सकता है कि यह सीधे स्वर्ग से बन कर आई है। 

स्वाद से भरपूर इस व्यंजन की जोड़ी के साथ, अगर लस्सी, अचार या फिर प्याज़ मिल जाए, तो फिर तो समझो आनंद ही आनंद। 

लेकिन सवाल यह है कि आज हर कोने पर मिलने वाले इस डिश ने दिल्ली की सड़कों तक रास्ता बनाया कैसे?

1947 का विभाजन, भारत में लाया व्यंजन

यह बात है भारत-पाक बंटवारे के समय की। 1947 का विभाजन केवल भारतीय संघ को दो भागों में विभाजित करने के लिए खींची गई रेखा नहीं थी। बल्कि यह परिवारों, प्रेम, संस्कृतियों और मानदंडों का विभाजन था।

कई परिवार बिखर गए, सैंकड़ों लोगों की जानें चली गईं और रोज़ की दिनचर्या ठप हो गई। लेकिन जैसा कि कहा जाता है, कुछ अच्छी चीज़ें सबसे बुरे समय से निकलती हैं, इस समय भी कुछ ऐसा ही हुआ।

कहानी यह है कि सामूहिक पलायन के कारण, दोनों पक्षों में शरणार्थियों का तांता लगा हुआ था। हिंदू उस हिस्से में जाने के लिए हाथ-पांव मार रहे थे, जो अब भारत में है, जबकि मुसलमान नए पाकिस्तान की ओर कूच कर रहे थे।

इस अराजकता में, पेशोरी लाल लांबा नाम का एक शख्स लाहौर से पलायन कर गया। वह भारत में न केवल एक बेहतर जीवन की आशा लेकर आया, बल्कि एक रेसिपी भी लेकर आया, जो दिल्ली के इतिहास में दर्ज़ हुआ।

उन्होंने कनॉट प्लेस में क्वालिटी रेस्तरां की शुरुआत की और अपने प्रतिष्ठित छोले के साथ सैंडविच और अन्य स्नैक्स परोसना शुरू किया।

हालांकि, कुछ लोग कहते हैं कि लांबा ने दिल्लीवासियों को अपने प्रिय व्यंजन से परिचित कराया। जबकि कई लोगों का दावा है कि इस डिश से दिल्लीवालों को रु-ब-रु सीताराम नाम के शख्स ने कराया। सीताराम ने ‘सीताराम दीवान चंद’ की शुरुआत की। कहा जाता है कि यहाँ “दुनिया के सबसे अच्छे छोले” मिलते हैं।

उत्तर ही नहीं, बल्कि दक्षिण राज्यों में भी है छोले भटूरे लोकप्रिय

लोगों की मानें, तो सीताराम अपने बेटे दीवानचंद के साथ पश्चिम पंजाब से दिल्ली आए थे और उन्होंने छोले भटूरे की पहली प्लेट 12 आने में बेची। आज यह कारोबार उनके पोते प्राणनाथ कोहली चला रहे हैं।

आप चाहे जिस भी कहानी पर यकीन करें, लेकिन आप इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि कई अन्य व्यंजनों की तरह, विभाजन ने छोले भटूरे को भी प्रभावित किया, जिसके इश्क में आज हम सब डूबे हुए हैं।

उत्तरी राज्यों में तो छोले भटूरे एक हीरो डिश की तरह है। लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि दक्षिण राज्यों में भी इसे खूब पसंद किया जाता है। दक्षिण के उडिपी रेस्तरां अब सबसे स्वादिष्ट छोले परोसने का दावा करते हैं। अब किसका दावा कितना सही है, यह तो नहीं पता, लेकिन इस डिश ने उत्तर और दक्षिण दोनों ही जगह अपनी एक खास जगह बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। 

दरअसल, यह छोले भटूरे से बेइंतहां प्रेम ही है कि 2 अक्टूबर 2012 को, दिल्ली के रहनेवाले शशांक अग्रवाल ने दुनिया भर के छोले प्रेमियों के लिए फेसबुक पेज और ब्लॉग बनाए, ताकि दुनिया भर से लोग इस डिश के प्रति प्यार ज़ाहिर कर सकें और फिर धीरे-धीरे हर साल इस दिन को ‘छोले भटूरे दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। हर जगह, लोगों ने छोले बनाना शुरू कर दिया और स्वादिष्ट व्यंजन की तस्वीरें पोस्ट करने लगे।

लेकिन हम कहते हैं, इस लजीज़ व्यंजन को तैयार करने के लिए किसी तरह की प्रतीक्षा क्यों करें? यहाँ शेफ संजीव कपूर की एक सरल रेसिपी है, जिसे आप आज़मा सकते हैं।

छोले भटूरे की रेसिपी (चार लोगों के लिए)

छोले के लिए सामग्री

भटूरे के लिए सामग्री

कैसे बनाएं?

मूल लेखः क्रिस्टल डिसूजा

संपादनः अर्चना दुबे

यह भी पढ़ेंः बूस्टर डोज़ लगवाओ और चंडीगढ़ के इस फ़ूड स्टॉल पर जाकर फ्री में छोले भटूरे खाओ

Exit mobile version