हर गुरूवार, फिरोज़ शाह कोटला का यह खँडहर वापस जीवित हो जाता है। लोग इस दिन अपनी छुपी हुई इच्छाएं यहाँ के वासी- जिन्नों को बताने के लिए दूर दूर से आते हैं।
अलग अलग शैलियों में लिखी हुई ये चिट्ठियाँ न जाने कितने थके और निराश लोगो के लिए उम्मीद की किरण होती होंगी।
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जिन्न के अस्तित्व को आमूमन “अरेबियन नाइट्स’ और ऐसे ही पुरानी कथाओं से जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि वे हमारी इच्छाओ को पूरी करते हैं; इसी विश्वास के कारण फिरोज़ शाह कोटला में लोगो का आना बरकरार रहता है। इनमे से कुछ न जाने कितने सालो से हर हफ्ते यहाँ हाजिरी लगाते हैं।
इस प्रथा से अनेकों कहानियाँ जुड़ी हैं। कुछ मानते हैं कि जिन्न बोलने वाले कौवे होते हैं, कुछ उन्हें लम्बी दाढ़ी एवं सादे लिबास में लिपटे हुए व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हैं। कुछ का कहना है कि जिन्न कई संख्या में होते हैं और उन्हें उनकी खुशबू से पहचाना जाता है। ऐसी न जाने कितनी कहानियाँ यहाँ सुनी सुनाई जाती है।
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ऐसा माना जाता है कि चिट्ठी लिखने की इस परंपरा का संबंध चौदहव़ी सदी की उस प्रथा से हो सकता है जब शहर के हर आम नागरिको के लिए महल का दरवाज़ा खोल दिया जाता था। वे बिना किस रोक टोक के सुल्तान तुग़लक से मिल कर अपनी परेशानी व्यक्त करते थे।
हर व्यक्ति की बात सुनी जाती थी। उम्र, पैसे, जाति का कोई भेद भाव नहीं किया जाता था।
मानव-विज्ञानी आनंद विवेक तनेजा की शोध के अनुसार, जिन्नों को चिठ्ठियाँ लिखने की यह परंपरा असल में 1970 में शुरू हुई जब इस खँडहर में लड्डू शाह फ़क़ीर आकर रहने लगा था।
चौदहवी सदी में बना हुआ यह महल एक ऐसी धरोहर है जो तेज़ी से बदल रहे समाज में भी अपनी जगह बनाने में कामयाब हुई है। लोगों के विश्वास ने इसे जीवित रखा और इसके बदले इस खँडहर ने लोगो की उम्मीदों को मरने नहीं दिया।