क्या हमारा संविधान, जो अपने आप में अनोखा है, अन्य देशों के संविधानों से प्रेरित है? आइए, आज हम इस सवाल का जवाब ढूंढ़ते हैं।
अगर हम ध्यान देंगे तो पाएंगे कि हमारे संविधान के संस्थापकों ने हमारे देश की स्थिति को ध्यान में रखते हुए कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया और उन तथ्यों को उदारतापूर्वक अपना लिया जो भारत की विविधताओं के अनुकूल थे।
ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था, “उधार लेना शर्म की बात नहीं है। इसे चोरी नहीं कहा जा सकता। संविधान के मूल विचारों पर किसी का पेटेंट अधिकार नहीं है।”
हमारे संविधान के निर्माताओं नें पूरे विश्व से किन-किन बिन्दुओं को अपनाया?
मूल रूप- संयुक्त राष्ट्र/युके
सबसे पहले, भारत ने अपनी संसदीय प्रणाली ब्रिटिश सरकार से उधार ली जिसमें कानूनी शासन, विधायी प्रक्रिया, कैबिनेट प्रणाली, संसदीय विशेषाधिकार, दो सदन की व्यवस्था (संसद के उच्च व निचले सदन )शामिल है।
जहां आज संयुक्त राष्ट्र ने दोहरी नागरिकता को मज़ूरी दे दी है वहीं भारत ने उनके केवल एकल – नागरिकता के विचार को अपनाया।
ब्रिटिश संविधान के विचारों के अलावा, भारत ने ब्रिटिश सदन द्वारा पारित भारतीय सरकार अधिनियम, 1935- जो की भारतीयों के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया संविधान था, से बहुत कुछ नए संविधान में डाला। इसके अलावा बिल ने राज्यपाल, कानूनी व्यवस्था, लोक सेवा आयोग व संघीय प्रणाली की भूमिका पर प्रकाश डाला। इन तत्वों को अपनाने के अलावा भारत ने ब्रिटिश के उस अधिनियम को खारिज किया जिसमें अलपसंख्यकों के लिए अलग निर्वाचक मंडल बनाने का प्रावधान था।
मौलिक अधिकार – संयुक्त राज्य अमरीका
9 दिसम्बर, 1946 में जब पहली बार संविधान सभा बुलाई गयी तब इस सभा के अंतरिम अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा ने सारे सदस्यों को, 1787 में रचित संयुक्त राष्ट्र संविधान का अध्ययन करने के लिए बुलाया ।
उन्होंने इस संविधान को “ सबसे सही और व्यावहारिक व उपयोगी मौजूदा गणतांत्रिक संविधान” माना। हालांकि वे इसके “ पूरी तरह अभिग्रहण न करने व इसके प्रावधानों को उचित रूप से अपनाने’ के समर्थक थे ।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बाद में सिन्हा की जगह ली।
डॉ. बी आर अंबेडकर भी यूएस संविधान से प्रभावित थे। ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष के रूप में काम करने के पहले उन्होंने यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ इंडिया नाम का एक प्रस्ताव जमा किया था, जिसमें अन्य बातों के अलावा अधिक से अधिक संघवाद था जो राज्य को अधिक शक्ति देता था – यह एक ऐसा मॉडल था जिसे यूएस के संघीय सरकार से लिया गया था। मौलिक अधिकार के विचार को अमेरिका के ‘बिल ऑफ राइट्स’ से लिया गया।
यहां तक कि हमारी प्रस्तावना जो, “हम भारतवासी’ वाक्यांश से शुरू होती है जो समानता को दर्शाती है , उसे भी यूएस संविधान से लिया गया है। अगर इन दोनों देशों कि प्रस्तावनाओं की तुलना की जाये तो इनकी भाषा मे भी समानता पायी जाएगी। कानून शासन, न्यायपालिका की स्वतन्त्रता, विधायी निकायों द्वारा कानूनी कार्यों कि समीक्षा व महाभियोग की प्रक्रिया भी यूएस संविधान से ली गयी है।
निदेशक तत्व – आयरलैंड
आयरिश विद्वान काथल ओ’नोरमाइन ने 1967 इंडियन ईयरबूक ऑफ इंटरनेशनल अफ़ेयर में लिखा था, “भविष्य में आयरिश संविधान की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण इस प्रभाव पर निर्भर हो सकता है जो इसके निदेशक तत्वों ने भारतीय संविधान पर छोड़ा है”।
आयरिश संविधान के अनुच्छेद 45 के अनुसार, “ इस अनुच्छेद में लिखित सामाजिक नीति के सिद्धान्त विशेष रूप से ओइरेयच्तस के मार्गदर्शन के लिए है, और इस संविधान के किसी भी प्रावधान के तहत किसी भी अदालत द्वारा संज्ञेय नहीं होंगे”।
भारत ने इस प्रावधान से नीति निर्देशक सिद्धांतों को अनुच्छेद 37 के रूप में अपनाया। इसके अनुसार, “ इस भाग में निहित प्रावधान किसी भी अदालत द्वारा लागू नहीं किए जाएंगे, लेकिन जिन सिद्धांतों को रखा गया है, वे देश की शासन व्यवस्था के लिए मूल तत्व रहेंगे और कानून बनाने के समय इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।”
संघवाद- कनाडा
एक ओर जहां ब्रिटिश व अमेरिका भारत द्वारा अपनाये गए संघवाद के सिद्धान्त से प्रभावित थे,वहीं दूसरी ओर भारत व कनाडा का नजदीकी संपर्क देखने को मिलता है।
इस पेपर के अनुसार, “ 1867 में कनाडा व 1950 में भारत ने जिस रूप कि सरकार को अपनाया वह इंग्लैंड के वेस्टमींस्टर रूप की नीति से बहुत हद तक समान थी पर संसदीय ढांचे में संघीय घटक को जोड़ने के लिए इसमें बदलाव किया गया था।सरकार के इस संसदीय व संघीय सिद्धांतों के इस संयोजन को इन देशों के सामाजिक व क्षेत्रीय विविधताओं की आवश्यकता मानी गयी”।
यह समानता इतनी मिलती है कि, “दोनों संसदीय व संघीय गणतंत्र है और दोनों ने संवैधानिक मामलों में न्यायिक समीक्षा का प्रावधान रखा है” ।
समवर्ती सूची- ऑस्ट्रेलिया
भारत में राज्य शक्ति का विभाजन तीन सूचियों मे किया गया है- संघ सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची- जो कि भारतीय संविधान कि सातवीं अनुसूची में निहित है। जहां पहले दो क्रमशः संघ व राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र कि रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं वहीं दूसरी ओर समवर्ती सूची में वे विषय शामिल है जो केंद्र व राज्य सरकार दोनों ही को शिक्षा,परिवार नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण, वन्यजीव संरक्षण आदि के अधिकार देता है।
इस विचार को ऑस्ट्रेलिया के संविधान से लिया गया है जहां संविधान की धारा 51 में इसे ‘समवर्ती सूची’ में डाला गया है। भारत की ही तरह राज्य व राष्ट्रमंडल दोनों ही इन विषयों पर कानून बना सकते हैं , हालांकि भारत की ही तरह वहां भी किसी भी संदेह कि स्थिति में संघीय कानून ही मान्य होगा।
इसके अलावा हर मुद्दों पर ( केंद्र के अधिकार क्षेत्र के बाहर वाले मुद्दे भी) संधि लागू करने के लिए राज्य व राष्ट्रीय विधायी शक्ति के बीच वाणिज्यिक स्वतंत्रता के विचारों को भी अपनाया गया है।
स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व- फ़्रांस
स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व का विचार जो कि फ्रांसीसी क्रांति के दौरान लोकप्रिय हुए, ने न सिर्फ मौलिक अधिकारों बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की भी नींव रखी। भारतीयों द्वारा अपनाए गए गणतंत्रता व संप्रभुता के विचार भी काफी हद तक फ्रांसीसी राजनीतिक परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है।
आपातकालीन शक्तियाँ – जर्मनी
सिविल सर्विसेस इंडिया के इस नोट के अनुसार, “ भारत के राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां जर्मनी के विमर संविधान के अनुच्छेद 48 के अनुसार जर्मन राष्ट्रपति कि शक्तियों के अनुसार है। हालांकि इन शक्तियों को हिटलर द्वारा तब हटा दिया गया जब उन्होने पदभार संभाल तानाशाही स्थापित की थी ।
भारत ने अन्य संविधानों से भी काफी कुछ लिया है। उदाहरण के लिए, दक्षिण अफ्रीका से, हमने संविधान संशोधन के समय 2/3 बहुमत प्रणाली की प्रक्रिया को अपनाया। इसी तरह जापान से हमने कानून बनाने की प्रक्रिया ली।
संविधान संस्थापकों ने संविधान के लिए विचार ज़रूर बाहर से लिए, पर इन प्रावधानों को भारतीय संविधान में शामिल और निष्पादित करने की प्रणाली इस प्रकार रखी गयी ताकि ये भारतीयों की वास्तिवकता के अनूरूप हो। उदाहरण के लिए धर्मनिरपेक्षता को लें। पंचायती राज व्यवस्था का जन्म भी भारत में हुआ है जिसे कई संवैधानिक व्यवस्थाओं को जोड़ कर निकाला गया है।
इस ब्लॉग के अनुसार, “ भारतीय संविधान ने उदारवाद संवैधानिक सोच को अपनाया पर उस विचार को खारिज कर दिया जिसके अनुसार संविधान राज्य सरकार के अधिकार को सीमित करता था। भारतीय संविधान द्वारा राज्य सरकार का सशक्तिकारण आवश्यक था ताकि वो भारतीय समाज के क्षेत्र में प्रवेश कर पाये और साथ ही इसके जड़ में मौजूद आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक परम्पराओं को दूर कर पाये। समाज को बदलने कि ये कोशिश सफल रही या विफल यह एक अलग मुद्दा है। लेकिन संविधान के रचयिताओं की संविधान द्वारा भारतीय समाज को बदलने की कोशिश – जो तब तक किसी भी देश ने नहीं किया था- एक गर्व करने वाली बात है”।
संविधान की रचना के अलावा भारतीय न्यायतंत्र “विदेशी संवैधानिक सिद्धान्त व मामलों’ को निजी मामलों के अलावा अपनाना जारी रखता है। यह दरअसल समय के साथ कदम मिलाने और अन्य संवैधानिक व्यवस्थाओं के बेहतरीन तत्वों को अपनाने के लिए है।
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पद्मश्री विजेता अमरीकी विशेषज्ञ ग्रैनविलल ने कभी कहा था कि हमने कई संविधानों से बहुत कुछ उधार लिया है, लेकिन इसके बावजूद भारत के लिए संविधान निर्माण का श्रेय भारतीयों को जाता है।