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चौरी-चौरा कांड क्या है? क्यों सुनाई गयी 172 मतवालों को एक साथ फांसी की सजा?

Chauri Chaura kand kya hai
चौरी-चौरा कांड क्या है? क्यों सुनाई गयी 172 मतवालों को एक साथ फांसी की सजा?

भारतीय इतिहास के पन्नों में 4 फरवरी 1922 के दिन का एक बड़ा महत्व है। इस दिन लाल मुहम्मद, बिकरम अहीर, नजर अली, इन्द्रजीत कोइरी जैसे कई आजादी के मतवालों की अगुवाई में चौरी-चौरा कांड को अंजाम दिया गया। 

इस घटना ने न सिर्फ ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ा दी, बल्कि देश में जमींदार प्रथा पर भी गहरा चोट किया। कई जानकार इसे 1857 की क्रांति के बाद आजादी की लड़ाई में सबसे निर्णायक मोड़ मानते हैं। 

चौरी-चौरा कांड में 23 अंग्रेजी सैनिक मारे गए थे। हालांकि, महात्मा गांधी इस घटना को अपनी अहिंसावादी नीतियों के खिलाफ मानते थे और उन्होंने 12 फरवरी 1922 को अपने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया।

इससे जवाहर लाल नेहरू और सभी अन्य नेता भी हैरान थे कि गांधी जी ने आंदोलन को ऐसे समय में वापस ले लिया, जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ लोगों का संघर्ष काफी मजबूत हो चुका था। इस फैसले से मोतीलाल नेहरू और चित्तरंजन दास जैसे नेता काफी नाराज हुए और उन्होंने गांधी जी से अलग होकर, स्वराज पार्टी को गठित करने का फैसला कर लिया। 

क्या थी घटना की वजह

महात्मा गांधी की अगुवाई में 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई थी। 

फिर, आजादी की लड़ाई को और मजबूत करने के लिए 1921-22 के दौरान कांग्रेस के स्वंसेवकों और खिलाफत आंदोलन के कार्यकर्ताओं को “राष्ट्रीय स्वयंसेवक वाहिनी” के रूप में गठित कर दिया गया।

इसी कड़ी में गांधी जी के असहयोग आंदोलन को लेकर स्वयंवसेवकों ने 4 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा गांव में एक बैठक किया और पास के मुंडेरा बाजार में एक जुलूस निकालने का फैसला किया।

लेकिन पुलिस ने उन्हें रोकने का प्रयास किया और गोलियां बरसाने लगे। इस घटना में कुछ निहत्थे लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। इस घटना से लोगों का गुस्सा बढ़ गया और उन्होंने चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन को जला कर राख कर दिया। इस घटना में 23 पुलिसकर्मी मारे गए और अंग्रेजों को काफी संपत्ति का नुकसान हुआ।

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इस विद्रोह में आस-पास के 60 गांवों के तीन हजार से अधिक किसान शामिल हुए थे और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के साथ-साथ कई राजा और नवाबों की सत्ता को हिलाकर रख दिया।

इस घटना की खबर पूरी दुनिया में फैली। किसी ने इसका स्वागत किया, तो कइयों ने इसे उपद्रवियों का कृत्य बताया। अंग्रेजी शासन इस घटना से बौखलाई हुई थी और उन्होंने 225 अभियुक्तों में से 172 विद्रोहियों को एक साथ फांसी की सजा सुना दी। 

अंत में भगवान अहीर, बिकरम अहीर, लवटू कहार, कालीचरन कहार जैसे 19 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा हुई और दूसरे कैदियों को अलग-अलग तरह की सजा सुनाई गई। 

चौरी-चौरा कांड को लेकर महात्मा गांधी पर भी राजद्रोह का मुकदमा चला और मार्च 1922 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने पुलिसकर्मियों की हत्या की घोर निंदा की और स्वयंसेवक समूहों को खत्म कर दिया। गांधी जी ने इस घटना पर अपनी सहानुभूति जताने के लिए ‘चौरी चौरा सहायता कोष’ को भी शुरू किया।

चौरी-चौरा नाम कैसे पड़ा

दरअसल, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में चौरी-चौरा दो अलग-अलग गांव थे। फिर एक रेलवे के अधिकारी ने दोनों गांव के नाम को एक साथ कर दिया। यहां जनवरी 1985 में एक रेलवे स्टेशन की शुरुआत हुई थी। 

कहा जाता है कि शुरुआत में सिर्फ रेलवे स्टेशन और मालगोदाम का नाम ही चौरी-चौरा था। लेकिन बढ़ते बाजार ने दोनों गांवों को हमेशा के लिए एक कर दिया। 

विद्रोह का परिणाम

चौरी-चौरा कांड के बाद, देश में उठे तूफान ने कई युवा राष्ट्रवादियों को इस नतीजे पर पहुंचने के लिए प्रेरित किया कि, भारत अहिंसा के जरिए कभी अंग्रेजों से आजादी हासिल नहीं कर पाएगा। इन क्रांतिकारियों में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खां, जतिन दास, भगत सिंह, मास्टर सूर्य सेन, भगवती चरण वोहरा जैसे आजादी के अनगिनत मतवाले थे। 

संपादन- जी एन झा

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