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Asian Paints: छोटे से गैरेज में बनी यह स्वदेशी कंपनी कैसे बनी देश की नंबर 1 पेंट निर्माता

1942 में, जब हजारों भारतीय सविनय अवज्ञा आंदोलन के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक शानदार अध्याय लिख रहे थे, तब बॉम्बे (अब मुंबई) में रहने वाले चार दोस्त एक छोटे से गैरेज में एक पेंट कंपनी की नींव रख रहे थे।

उस समय अंग्रेज़ों ने पेंट के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था जिससे लोगों के पास सीमित विकल्प (शालीमार पेंट्स या महंगे विदेशी ब्रांड) रह गया था। इसी प्रतिबंध ने एक नए विचार को जन्म दिया। चंपकलाल चोकसी, चिमनलाल चोकसी, सूर्यकांत दानी और अरविंद वकिल ने एक नए क्षेत्र में प्रवेश करने का फैसला किया और ‘एशियन ऑयल एंड पेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड’ के साथ अपनी महत्वकांक्षाओं को वास्तविकता में बदलने की कोशिश में जुट गए।

तस्वीर ज़रूर धुंधली है लेकिन एशियन पेंट्स के इन फाउंडर्स ने कंपनी का भविष्य बेहतर बना दिया

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 78 साल पुरानी इस कंपनी का नाम उस समय एक टेलीफोन डायरेक्ट्री से उठाया गया था। आज की तारीख में इस कंपनी की भारत में 53 प्रतिशत पेंट बाजार में हिस्सेदारी है और यह एशिया की तीसरी सबसे बड़ी पेंट कंपनी है। यह एशियन पेंट्स के नाम से जानी जाती है और दुनिया भर में 16 देशों में संचालित होती है।

इस कंपनी का कैचफ्रेज़ यानी सूत्रवाक्य है – “हर घर कुछ कहता है” और यह मध्यमवर्गीय घरों, कॉरपोरेट्स से लेकर एनजीओ तक अपने ग्राहकों को हजारों रंगों के शेड, टेक्सचर, थीम और पैटर्न प्रदान करने के उद्देश्य को बताता है। इनके पास सभी प्रकार के बजट के लिए पेंट है जो कोई भी इनकी वेबसाइट पर जाकर देख सकता है।

आइये जान लेते हैं एशियन पेंट्स की शानदार यात्रा के बारे में।

कैसे एक कंपनी ने बाजार पर कब्जा जमाया जिसकी जड़े 1947 से पहले की है

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व्यापार जगत में एक कहावत है – ‘अपने उत्पाद या सेवा की पहुँच हर कोने में संभव बनाना।’ कई पुरानी कंपनियों का भी मानना ​​है कि किसी उत्पाद की सफलता को तब परिभाषित किया जाता है जब उसका कोई विशिष्ट लक्षित ऑडियंस नहीं होता है और वह हर प्रकार के व्यक्ति की ज़रुरतों को पूरा कर सके।

इसकी स्थापना के तीन साल बाद 1945 में एशियन पेंट्स की व्यापक लोकप्रियता के पीछे यह रणनीति एक बड़ी वजह थी। उस वर्ष, कंपनी ने देश भर में डिलीवरी सिस्टम को सरल बनाने के लिए बड़े टिन के बजाय छोटे पेंट पैकेट का निर्माण किया। कंपनी ने हर कोने में छोटे वितरकों के साथ करार किया।

तो क्या कंपनी की इस रणनीति से बात बनी?

कुछ लोगों का मानना था कि कंपनी की यह रणनीति सही थी क्योंकि इस देसी कंपनी ने एक ही वर्ष में केवल पाँच रंग विकल्पों के साथ 3.5 लाख रुपये की कमाई की थी। इस रणनीति से उन्हें एक स्थिर गति तक पहुंचने में मदद की और 1952 तक, एशियन पेंट्स का वार्षिक कारोबार 23 करोड़ रुपये पहुँच गया, यह ऐसी कमाई थी जो उस समय  बहुत बड़ी मानी जाती थी।

1954 में, इस पेंट कंपनी ने एक कदम और आगे बढ़ने और एक मार्केटिंग अभियान शुरू करने का फैसला किया जो उनके उद्देश्य को दिखा सके। और  इस तरह से महान कार्टूनिस्ट, आरके लक्ष्मण ने गट्टू नाम ( उत्तर भारत में एक आम नाम ) के बच्चे का एक छोटा सा पोस्टर तैयार किया जिसके हाथ में एक पेंट बाल्टी और ब्रश दिखाया गया।

रिपोर्ट्स के अनुसार, एशियन पेंट्स ने एक प्रतियोगिता शुरू की थी जिसमें प्रतिभागियों को आरके लक्ष्मण द्वारा बनाई गई आकृति का नाम रखना था। इस प्रतियोगिता के विजेता के लिए 500 रुपये का इनाम भी रखा गया था। यह वास्तव में एक मास्टरस्ट्रोक था जिसने दो काम एक साथ किए। पहला तो इस रहस्यमय बच्चे के बारे में लोगों के मन में जिज्ञासा जागी और साथ ही लोगों को यह भी पता चला कि यह उनके पसंदीदा कार्टूनिस्ट की रचना थी। इस प्रतियोगिता में 47,000 लोगों ने भाग लिया और इनमें से बॉम्बे के दो लोगों ने ’गट्टू’ नाम भेजा था।

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गट्टू एक सस्ते डिस्टेंपर का चेहरा बन गया जिसने मध्यवर्गीय घरों में एक बड़े ऑडियंस का निर्माण किया। टैगलाइन “डोंट लूज़ योर टेंपर, यूज़ ट्रैक्टर डिस्टेंपर” (अपना आपा न खोएं, ट्रेक्टर डिस्टेंपर का उपयोग करें ) ने लोगों की सोच को बदल दिया कि किसी को पेंट उतरने का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। यह एक जीवन शैली पसंद है।

एक बार फिर, योजना ने काम किया और अगले चार वर्षों में बिक्री दस गुना बढ़ गई। तेजी से विकास हुआ और भांडूप में उन्होंने अपना पहला प्लांट लगाया।

1957 और 1966 के बीच, एशियन पेंट्स ने, बामर लॉरी जैसे ब्रिटिश फर्म को अपने ग्राहक सूची में शामिल कर अपनी पेशेवर छवि बनाने का काम किया।  हालाँकि, कंपनी के लिए 1967 एक अहम मोड़ साबित हुआ, जब यह भारत की अग्रणी पेंट निर्माता कंपनी बनकर उभरी और जिसके लिए किसी भी तरह की कोई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता नहीं थी। और एक दशक बाद, उन्होंने फिजी में अपना पहला उद्यम स्थापित किया। तब से कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है।

सफलता की कुंजी

गुणवत्ता बरकरार रखने के साथ वर्तमान बाजार के ट्रेंड्स और विकास के लिए अनुकूल होना ही कंपनी की ग्रोथ का सबसे बड़ा कारण है।

चाहे वह 1984 में पहला टीवी विज्ञापन हो या 90 के दशक की शुरुआत में एक प्रीमियम उत्पाद हो या या कॉल सेंटर के संचालन और 1998-99 की शुरुआत में एक वेबसाइट स्थापित करना हो, एशियन पेंट्स हमेशा से भविष्य के ट्रेंड्स की पहचान करते हुए समय से आगे रहा है। कंपनी सोशल मीडिया की लोकप्रियता का फायदा उठाने से भी पीछे नहीं रही है और फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर उनके लाखों फॉलोअर्स हैं।

दरअसल, नयापन और सामाजिक रूप से प्रासंगिक अभियान हमेशा कंपनी के लिए एक मजबूत बिंदु रहे हैं। याद कीजिए जब दीपिका पादुकोण ने इनडोर प्रदूषण के मुद्दे पर प्रकाश डाला था और ‘रोयाल एटमोस’ को प्रमोट किया था। इसने बहुत ध्यान आकर्षित किया और कंपनी के पेंट्स पर भरोसा सुनिश्चित किया जो सभी के लिए सुरक्षित हैं।

एक और कारण जिसने इसकी प्रभावशाली प्रगति में योगदान दिया, वह यह है कि ये कैसे संबंधित क्षेत्रों में प्रवेश करने से डरते नहीं हैं। उदाहरण के लिए, पिछले कुछ वर्षों में, उन्होंने इसी उद्योग में अन्य क्षेत्रों में प्रवेश किया है जैसे इंटिरियर और एक्सटिरियर वॉल फिनिश, एनामल फिनिश और इंडस्ट्रियल पेंटिंग्स। बाथ फिटिंग और किचन में भी यह कंपनी प्रवेश कर चुकी है ।

कहने की जरूरत नहीं है, इससे कंपनी को काफी प्रशंसा और पहचान मिली। 2004 में, एशियन पेंट्स का नाम फोर्ब्स बेस्ट अंडर बिलियन कंपनी इन द वर्ल्ड की सूची में शामिल किया गया और ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल द्वारा ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ से भी सम्मानित किया गया था।

आजादी से पहले शुरू हुई कुछ कंपनियों में से एशियन पेंट्स आज तक प्रासंगिक बनी हुई है। इतना ही नहीं, यह दुनिया भर में सबसे अधिक मांग वाली कंपनियों में से एक बन गई है।

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मूल लेख-

संपादन- पार्थ निगम

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