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अरुणाचल के दुर्गम इलाकों तक पैदल यात्रा कर, बच्चों के लिए वैक्सीन पहुंचा रहा है यह युवक!

प्रतीकात्मक तस्वीर

गो अरुणाचल प्रदेश के बहुत ही पिछड़े गांवों में से एक है। जहां आज भी सुगम परिवहन के लिए कोई सड़क नहीं है, बल्कि पास के शहर, जांग जाने के लिए भी कम से कम 31 किलोमीटर तक ट्रैकिंग करनी पड़ती है। तवांग जिले में पड़ने वाला यह गाँव भारत-चीन के बॉर्डर पर स्थित है।

और जैसा भारत के ज़्यादातर पिछड़े और दूरगामी गांवों के हालात होते हैं, कुछ वैसा ही यहां भी हैं – मूलभूत सुविधाओं की कमी। इस गाँव को बिजली लगभग 4 साल पहले नसीब हुई है और शिक्षा के लिए बस एक सरकारी स्कूल है। न ही प्राइमरी हेल्थ-केयर के लिए कोई सुविधा और न ही रोज़मर्रा की ज़रूरत का सामान खरीदने के लिए कोई बाज़ार। छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए भी गाँव वालों को पहाड़ों के रास्ते घंटों तक पैदल चलकर जाना पड़ता है।

इन सब मुश्किलों के बावजूद, इस गाँव का एक 32 वर्षीय शख्स पिछले कई सालों से यहां की तस्वीर बदलने के लिए प्रयासरत है। श्री फुरपा, अरुणाचल सरकार में मेडिकल असिस्टेंट के पद पर कार्यरत हैं और साल 2013 से हर महीने पहाड़ों और नदियों को पार करते हुए अपने गाँव के बच्चों तक मीज़ल्स-रुबैला और पोलियो जैसी घातक बिमारियों की वैक्सीनेशन पहुँचा रहे हैं।

श्री फुरपा, मेडिकल असिस्टेंट (तवांग जिला, अरुणाचल प्रदेश)

मीज़ल्स और रुबैला, पूरे विश्व में फैली हुई जानलेवा बीमारियाँ हैं। अगर रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2000 से, लगभग साढ़े पाँच लाख बच्चे हर साल मीज़ल्स के चलते अपनी जान गँवा देते हैं। तो वहीं, रुबैला से होने वाली मौतों की संख्या भी एक लाख से ज़्यादा है। रुबैला का सबसे ज़्यादा खतरा गर्भवती महिलाओं को होता है। यदि सही समय पर इसका टीकाकरण न किया जाये तो अक्सर नवजात बच्चे दिल की बीमारी के साथ या फिर बहरे या नेत्रहीन पैदा होते हैं।

भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘मीज़ल्स-रुबैला वैक्सीनेशन अभियान’ शुरू किया है, जिसके तहत 9 महीने से लेकर 15 साल तक के बच्चों का समय-समय पर टीकाकरण किया जा रहा है। वैसे तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद से इस बीमारी से साल 2020 तक निजात पाने की योजना है, और उम्मीद है कि फुरपा जैसे निःस्वार्थ लोगों के प्रयासों के चलते हम यकीनन इसमें सफल होंगें।

साल 2011 में मेडिकल असिस्टेंट की ट्रेनिंग करने वाले फुरपा हमेशा से अपनी ट्रेनिंग और अपनी जानकारी को अपने गाँव के भले के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे। इसलिए मेडिकल ऑथॉरिटीज़ की मदद से उन्होंने अपने गाँव में हर घर तक इस वैक्सीनेशन को पहुंचाने का संकल्प किया।

योर स्टोरी से बात करते हुए उन्होंने बताया कि जब वे पहली बार तवांग जिले से सभी ज़रूरी दवाइयां, इंजेक्शन आदि लेकर वैक्सीनेशन के लिए अपने गाँव गए, तो वह सफ़र संघर्ष से भरा हुआ था। पहाड़ों पर चढ़ते-उतरते उनके पैर जवाब दे रहे थे। लेकिन फिर भी उनकी हिम्मत ने जवाब नहीं दिया और फुरपा ने अपने गाँव पहुंचकर ही दम लिया।

“गाँव के बच्चों के लिए मेडिकल सुविधाओं को उनके पास ले जाने के काम को मैंने एक चुनौती की तरह लिया और अब मुझे ख़ुशी है कि ये सभी बच्चे मीज़ल्स और रुबैला के खतरे से बाहर हैं,” उन्होंने आगे कहा

श्री फुरपा अब तक 75 परिवारों तक पहुँचकर, लगभग 35 बच्चों को वैक्सीनेशन दे चुके हैं। इसके अलावा, अब उन्होंने पोलियो वैक्सीनेशन भी ले जाना शुरू किया है।

फुरपा को अपनी नौकरी के लिए सिर्फ 25 हज़ार रूपये प्रति माह की तनख्वाह मिलती है। अगर वे चाहें तो जिले में ही रहकर काम कर सकते हैं। पर फुरपा ने खुद आगे बढ़कर अपने गाँव तक प्राथमिक मेडिकल सुविधाएँ पहुंचाने का ज़िम्मा उठाया है।

उनके इस नेक और बहादुरी भरे काम के लिए, जिले के मेडिकल अफसर, डॉ. वांगडी लामा ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि ट्रेनिंग सेशन पूरा होने के बाद खुद फुरपा ने उनसे अनुरोध किया कि उन्हें उनके गाँव के दौरों पर जाने का मौका मिले। ताकि वे वहां के लोगों तक मेडिकल सुविधा पहुंचा पाएं।

सर्दियों के मौसम में जब राज्य का तापमान बहुत नीचे चला जाता है, तो ऐसे समय में पहाड़ों पर ट्रेक करने का मतलब है जान जोखिम में डालना। पर फिर भी फुरपा के कदम नहीं रुकते। बल्कि इस मौसम में अपने जानवरों की वजह से जो चारवाहे दूरगामी इलाकों में अपना ठिकाना बनाते हैं, फुरपा उनके बच्चों तक भी वैक्सीनेशन पहुँचाकर आते हैं।

फोटो साभार : योर स्टोरी

फुरपा को उनके काम के लिए अरुणाचल सरकार द्वारा सम्मानित भी किया गया है।

अंत में फुरपा सिर्फ यही कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि एक दिन उनके गाँव में बेहतर मेडिकल सुविधाएँ होंगी और जब तक ऐसा नहीं होता है, तब तक वे इसी तरह पैदल, सभी मुश्किलों को पीछे छोड़ते हुए ज़रूरतमंदों तक मेडिकल सुविधाएँ पहुँचाते रहेंगें।

द बेटर इंडिया देश के इस अनमोल इंडियन को सलाम करता है!

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