उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिला के रामस्नेही घाट में 43 हेक्टेयर के विशाल क्षेत्र में सराही झील है। कभी यह झील कई पक्षियों का बसेरा हुआ करता था, लेकिन पिछले कुछ दशकों के दौरान रखरखाव के अभाव में यह सूख गया था, और यहाँ गंदगी का अंबार लगा था।
लेकिन, पिछले साल, फरवरी में यहाँ के नए SDM के तौर पर राजीव शुक्ला की तैनाती हुई और कुछ ही महीने में उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर, वर्षों से बदहाल इस झील का कायापलट कर दिया। उनके इन प्रयासों की तारीफ देश के प्रधानमंत्री अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी कर चुके हैं।
फिलहाल, रामनगर तहसील में सेवारत राजीव शुक्ला द बेटर इंडिया को बताते हैं, “पिछले साल जब मेरी यहाँ तैनाती हुई, तो मैंने यहाँ के बड़े जल संग्रहण क्षेत्रों का जायजा लेना शुरू किया। इसी कड़ी में मुझे सराही झील के बारे में जानकारी मिली, जो एक बहुत बड़ा वेटलैंड था, लेकिन इसमें एक गहरा ड्रेन बना दिया गया और यहाँ बारिश की पानी जमा नहीं हो पाती थी, जिस वजह से यह यह बिल्कुल सूखा हुआ था।”
इसके बावजूद उन्हें सराही झील को लेकर कई संभावनाएं दिखीं, क्योंकि यहाँ कई ऐसी पक्षियाँ थीं, जो सामान्यतः आसानी से देखने को नहीं मिलती है।
राजीव बताते हैं, “मैं जब भी यहाँ जायजा लेने आता था, कई लोग इकठ्ठे हो जाते थे। इससे मुझे इसका पुनरुद्धार जनभागीदारी के जरिए करने का विचार आया।”
इसी विचार के तहत उन्होंने स्थानीय लोगों को समझाना शुरू किया कि उनके पास कितनी बड़ी संपत्ति है और इसका इस्तेमाल कैसे उनके हित के लिए किया जा सकता है।
राजीव कहते हैं, “इसी दौरान, प्रधानमंत्री द्वारा देश के सभी ग्राम प्रधानों से स्थानीय स्तर पर उपलब्ध जल संभरण क्षेत्रों को बचाने की अपील की। इस तरह, हमें भी लोगों को आसानी से इसके महत्वों को समझाने का मौका मिला। क्योंकि, कई बार कुछ चीजों के करने में वक्त लगता है और उसके लिए नियम-कानून की काफी बाधाएँ होती है।”
राजीव कहते हैं कि हमने इस दिशा में मार्च, 2020 से पहल करनी शुरू की, लेकिन जून महीना आते-आते उन्हें चिंता होने लगी की, इस कार्य को आगे कैसे बढ़ाया जाए। इसके बाद, लोगों ने मिलकर विचार किया कि काम शुरू करने के लिए सबसे पहले नाले के पानी को रोकना जरूरी है। तभी यह एक झील के रूप में विकसित हो पाएगा।
इसी विचार के साथ लोगों ने इसकी साफ-सफाई करने के साथ ही, झील के उत्तरी क्षेत्र में करीब 400 मीटर लंबा और 5 फीट ऊँचा तटबंध बना डाला।
राजीव कहते हैं, “हम यहाँ और काम करने वाले थे, लेकिन जुलाई के पहले हफ्ते में मुझे किसी कारणवश बाहर जाना पड़ा और इसी दौरान यहाँ काफी बारिश हुई। जब मैं वापस आकर इसे देखा, तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। क्योंकि, पूरा झील हर तरफ से लबालब पानी से भरा हुआ था।”
वह आगे कहते हैं, “बच्चे झील में खूब आनंद ले रहे थे, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में पहली बार इसे भरा हुआ देखा था और फरवरी, 2020 तक यहाँ कपासी हंस, भूरे रंग की टिटहरी, घोंघिल, सारस, सैंडपाइपर, सेल्ही, जैसे पक्षी बड़े पैमाने पर विचरण करने लगे।”
सरकार का पैसा नहीं हुआ खर्च
खास बात यह है कि इस पहल में सरकार का कोई पैसा खर्च नहीं हुआ है और लोगों ने इसे अपनी स्वेच्छा और श्रमदान से अंजाम दिया है।
राजीव बताते हैं, “हमने लोगों को अहसास कराया कि यह झील अंततः उन्हीं से जुड़ी हुई है। इससे उनमें इसे लेकर एक अपनत्व का भाव जागा, जो झील की सस्टेनेबिलिटी के लिए जरूरी है। आज गाँव के कई लोग झील के संरक्षण के लिए निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं, और जहाँ भी जरूरत होती है हम पूरी मदद करते हैं।”
बता दें कि सराही झील में पक्षियों का आगमन बढ़ने के बाद, कई लोगों के मन में इसे फंसाने का लालच हुआ, लेकिन गाँव के लोगों इसकी सूचना तुरंत राजीव को दी और उन्होंने इस पर त्वरित कार्रवाई करते हुए, आरोपियों को सलाखों के पीछे भेज दिया।
बढ़ा भूजल स्तर
राजीव बताते हैं, “हालांकि, हमने अभी तक कोई सर्वेक्षण तो नहीं किया है, लेकिन सराही झील में सालों भर 3-4 फीट पानी बने रहने के कारण, आस-पास के 8-10 गाँवों में भूजल स्तर में काफी सुधार हुआ है और लोगों को पशुओं के साथ-साथ खेती के लिए भी पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हुई है, इन गाँवों में पहले गर्मी के दिनों में पानी की काफी किल्लत होती थी।”
इसे लेकर सराही गाँव के ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि सुशील सिंह बताते हैं, “रखरखाव के अभाव में सराही झील वर्षों से बदहाल स्थिति में थी। इसी के मद्देनजर राजीव सर ने हमें बुलाया और लोगों को इसे बचाने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद गाँव वालों ने मिलकर 400 मीटर बाँध बना दिया। जिससे यहाँ सालों भर पानी बनी रही। इससे स्थानीय गाँवों में भूजल स्तर बढ़ गया है और यहाँ का वातावरण भी काफी खुशनुमा हो गया है।”
लाल चावल का भी होता है उत्पादन
राजीव के अनुसार, सराही झील में लाल चावल का भी कुछ पैमाने पर उत्पादन होता है। यह एक जलीय पौधा है और इसे पक्षियों के साथ-साथ महिलाएं भी व्रत के दौरान खाती हैं।
बच्चों को कर रहे जागरूक
राजीव कहते हैं, “आज की परिस्थितियों को देखते हुए बच्चों को प्राकृतिक संरक्षण की दिशा में जागरूक करना जरूरी है। हमने बच्चों को अपने प्रयास से जोड़ने के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन किया है और उन्हें अपने जीवन में पेड़-पौधे और जल के महत्वों के विषय में जागरूक किया।”
एक और खास बात है कि सराही झील को सारस पक्षी संरक्षण केंद्र बनाने के लिए एक प्रस्ताव भी भेजा गया है और संबंधित विभाग इसके सभी मानकों के तहत, निश्चित दिशा में कार्य भी कर रही है।
रामनगर में भी एक बड़े झील को बचाने के लिए छेड़ी मुहिम
राजीव की तैनाती हाल ही में, रामनगर में हुई है। उन्होंने यहाँ भी 90 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले बगहार झील को पुनर्जीवित करने के लिए मुहिम छेड़ दी।
वह बताते हैं, “यह एक बहुत बड़ा जल क्षेत्र है और हाल के वर्षों में साफ-सफाई नहीं होने के कारण इसमें बड़े पैमाने पर जलकुंभी उग गई। इस वजह से झील के जैव-विविधता के साथ-साथ आस-पास के मछुआरों को भी काफी नुकसान हो रही है।”
वह आगे बताते हैं, “मैंने इस झील को भी पुनर्जीवित करने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों को जोड़ने का प्रयास किया। हमारे इस पहल में स्थानीय लोगों, वर्किंग प्रोफेशनल के साथ-साथ जिले के सभी पदाधिकारी भी अपने समय के अनुसार शामिल हुए और हम अभी तक 1 किलोमीटर से अधिक दायरे की सफाई कर चुके हैं और बहुत कुछ करना बाकी है।”
द बेटर इंडिया उत्तर प्रदेश के इस अधिकारी के पहल की सराहना करता है।
यह भी पढ़ें – तमिलनाडु: 2000 साल पुराने इस बाँध से आज भी होती है खेतों की सिंचाई
संपादन – जी. एन झा