हाल ही में हुए ‘हल्ट पुरस्कार 2018’ की प्रतियोगिता में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर की टीम ‘मेटल’ ने बाजी मार ली है।
हल्ट पुरस्कार एक वार्षिक प्रतियोगिता है जिसमें छात्रों की खाद्य सुरक्षा, पानी की उपलब्धता, ऊर्जा, पर्यावरण और शिक्षा जैसे विषयों से जुड़े मुद्दों का हल ढूंढने के लिए चैलेंज किया जाता है। जो भी छात्र इस प्रतियोगिता में भाग लेते हैं उन्हें अपना प्रोजेक्ट छह जजों के पैनल के सामने प्रस्तुत करना होता है। इन्हीं में किसी एक को विजेता चुना जाता है।
हल्ट पुरस्कार जीतने वाले छात्रों की टीम को उनका सोशल एंटरप्राइज़ शुरू करने के लिए 10 लाख रूपये की राशि प्रदान की जाती है। इस चैलेंज के लिए विषय अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन तय करते हैं और वही हर साल सितंबर में विजेता घोषित करते हैं।
इस बार इस पुरस्कार के आईआईटी खड़गपुर के चार छात्रों की टीम ने जीता है। इस टीम का नाम था ‘टीम मेटल’ और इन्होंने अपने मॉडल में बताया कि कैसे हम फर्नीचर और पेन आदि बनाने के लिए प्लास्टिक की जगह चावल की भूसी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
टीम मेटल के अलावा संस्थान से लगभग 50 टीमों ने अपना मॉडल पैनल के सामने प्रस्तुत किया था। इस पैनल ने भी टीम मेटल को विजेता घोषित करने से पहले लगभग 6-7 मॉडल्स को स्कैन किया था। पैनल के जजों ने कहा कि इस मॉडल से हज़ारों लोगों एक जीवन पर प्रभाव पड़ेगा।
टीम मेटल के एक सदस्य छात्र, हर्षित गर्ग ने बताया कि भारत में धान का उत्पादन बड़े स्तर पर होता है। यदि कलम, फर्नीचर, पिच बोर्ड और बरतन जैसे सामान चावल के भूसी से बड़े पैमाने पर उत्पादित किए जा सकते हैं, तो यह प्लास्टिक की खपत की समस्या को कम कर सकता है।
गर्ग ने आगे कहा, “हम इस भूसी में चिपकने वाला एक केमिकल डालकर इससे रोल शीट बना सकते हैं।” टीम ने इसका एक प्रोटोटाइप विकसित किया है और रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग के छात्र उन्हें तकनीकी सहायता प्रदान कर रहे हैं।
चावल की भूसी का प्रयोग चीन में टिफ़िन बॉक्स बनाने के लिए होता है। भारत में भी इसके प्रयोग से एक बदलाव लाया जा सकता है।
टीम मेटल मार्च 2019 के रीजनल राउंड में विश्व स्तर पर आईआईटी खड़गपुर का प्रतिनिधित्व करेगी। हल्ट पुरस्कार के रीजनल राउंड लंदन और बोस्टन में होंगे।
जो भी टीम सितम्बर 2019 के वर्ल्ड फाइनल में जीतेगी उसे 10 लाख रूपये की पुरस्कार राशि दी जाएगी।