मेंथा और केले की खेती के गढ़ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में अब औषधीय यानी जड़ी बूटियों की खेती भी होने लगी है। यहाँ के किसान अब खेती में नए प्रयोग कर ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। ऐसे ही एक किसान है सूरतगंज ब्लॉक में टांड़पुर (तुरकौली) गाँव के राम सांवले शुक्ला। पैंसठ साल के राम सांवले शुक्ला ने ज्यादा पढ़ाई लिखाई तो नहीं की है लेकिन इस बुजुर्ग किसान ने अपने खेतों में जो प्रयोग किए हैं, उन्हें अब दूसरे किसान भी अपना रहे हैं। राम सांवले अपने खेतों में पीली आर्टीमीशिया, सतावरी, सहजन, अदरक और कौंच उगाते हैं। इन फसलों को बेचने के लिए उन्होंने दिल्ली और मध्य प्रदेश की कई औषधीय कंपनियों से अनुबंध भी किया है। वह किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए शुरू किए गए एरोमा मिशन से भी जुड़े हैं।
राम सांवले बताते हैं, “धान-गेहूं में जितने पैसे लगाता, फसल कटाई के बाद उतनी ही कमाई होती थी। पारंपरिक खेती में कोई खास मुनाफा नहीं होता था। ऐसे में मैंने कुछ साल पहले सीमैप (केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान) के माध्यम से औषधीय पौधों की खेती करनी शुरू की। सबसे पहले मलेरिया की दवा आर्टीमीशिया के लिए मध्य प्रदेश की कंपनी से करार किया और अब नोएडा की एक बड़ी दवा कंपनी से करार कर सहजन और कौंच की खेती कर रहा हूँ। इसमें एक बार लागत थोड़ी ज्यादा आती है लेकिन फसल होने पर बेचने का झंझट नहीं रहता। कंपनी फसल खरीद लेती है और पैसा सीधे खाते में आ जाता है।”
लोगों ने सोचा था मेरी बर्बादी के दिन आ गए हैं
राम सांवले बताते हैं, “जब मैंने पहली बार एक एकड़ में पीली सतावरी लगाई, तो आस-पास के लोगों ने कहा, ‘पंडित जी क्या झाड़ियां उगा रहे हो?’ कई लोगों को लगा मेरी बर्बादी के दिन आ गए हैं। लेकिन जब फसल कटी तो करीब चार लाख रुपए की कमाई हुई। बाकी फसलों के मुकाबले ये रकम कई गुना ज्यादा थी। सतावरी की प्रोसेसिंग में हमने सैकड़ों लोगों को रोजगार भी दिया था। पीली सतावरी में एक एकड़ में लागत करीब 70 से 80 हजार आती है लेकिन मुनाफा 4 से 5 लाख तक होता है। हालांकि ये उस समय चल रही मार्केट रेट पर निर्भर करता है। एक एकड़ में 15 से 20 क्विंटल उपज होती है और 30 से 70 हजार रुपए प्रति क्विंटल की रेट से बिक्री होती है।
दूसरे किसान भी ले रहे हैं सीख
राम सांवले के खेत में मुनाफा देखकर दो साल पहले दूसरे किसानों ने भी इसकी खेती शुरू कर दी। इन किसानों को सतावरी की नर्सरी के लिए भागदौड़ न करनी पड़े इसलिए राम ने इस बार अपने खेतों में ही नर्सरी तैयार की है। इन पौधों को खरीदने के लिए मध्यप्रदेश से लेकर झारखंड के धनबाद तक से लोग इन्हें फोन करके पूछते हैं।
इस बार राम ने 3 एकड़ से ज्यादा सहजन (मोरिंगा) लगाया है। उनके मुताबिक आस-पास के तमाम गांवों में वे सहजन की खेती करने वाले पहले किसान है। एक बार बो कर 4 से 5 साल तक चलने वाली इस फसल को लेकर वे काफी उत्साहित नज़र आते हैं।
घर पर ही बनाते हैं केंचुआ खाद
खेती की लागत कम करने के लिए राम घर पर ही केंचुआ खाद बनाते हैं। खाद बनाने के लिए वह वेस्ट डींकपोजर का उपयोग करते हैं। वेस्ट डीकंपोजर एक तरल पदार्थ है जिसकी खोज गाजियाबाद स्थित जैविक कृषि केंद्र ने की थी। डींकपोजर की 20 रुपए की एक शीशी से कई ड्रम जैविक तरल खाद बनती है, जिसे वह फसल में पानी के साथ छिड़काव करते हैं।
खेती से कमाई का अपना सूत्र बताते हुए वह कहते हैं, “किसान का ज्यादातर पैसा खाद-बीज और कीटनाशकों को खरीदने में लगता है। इसलिए किसानों को ऐसी खेती करनी चाहिए जिसमें लेबर कम लगे। डीएपी यूरिया का पैसा बचाने के लिए घर पर ही केंचुआ और फसलों के अवशेष की कंपोस्ट खाद बनानी चाहिए।”
साथ ही, वह किसानों को सलाह देते है कि उन्हें अपने खेत के एक हिस्से में ऐसी खेती जरूर करनी चाहिए जिसमें एक बार बुआई या रोपाई करने पर कई साल तक मुनाफा हो। उनके मुताबिक सजहन एक ऐसी ही फसल है।
अपने खेतों में कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करने वाले राम का कहना है कि सीमैप जैसी संस्थाओं की मदद से उन्हें खेती के नए तरीके सीखने को मिलते हैं। इसके अलावा, वह इन्टरनेट से भी खेती की नई विधियां सीखते रहते हैं। इसी के चलते उन्हें किसानों के बीच सम्मानित भी किया जा चुका है।
कृषि विभाग भी कर रहा है जागरूक
बाराबंकी के उद्यान अधिकारी महेन्द्र कुमार का कहना है कि वे अपने जिले के किसानों को परंपरागत फसलों के अलावा औषधीय फसलों की खेती करने के लिए जागरूक करते हैं, जिससे वे ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सके।
इसके बारे में आगे बात करते हुए वह बताते हैं, “खेती में मुनाफा कम होने के कारण कई किसान खेती छोड़ देते थे, जो कि कृषि के लिए अच्छी खबर नहीं थी। इसलिए विभाग ने किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए जागरुकता कार्यक्रम चलाए। क्षेत्र में सतावर, सहजन और तुलसी की खेती भी बड़े पैमाने पर हो रही है और इन्हें बेचने के लिए किसानों को भटकना भी नहीं पड़ता है। कई किसानों ने इसकी शुरुआत की है। इसमें मुनाफा ज्यादा है और कीट व रोग भी नहीं लगते हैं।”
किसी भी किसान को औषधीय खेती से संबधित जानकारी चाहिए होती है, तो विभाग पूरी मदद करता है। साथ ही, तकनीकी जानकारी के साथ रख-रखाव और बाजार की भी पूरी जानकारी यहाँ दी जाती है। किसानों के लिए अब परंपरागत खेती के अलावा ये एक अच्छा विकल्प बन रहा है। बाजार में इसका रेट भी अच्छा है और बिक्री में भी दिक्कत नहीं आती है।
इस तरह की पहल यदि पूरे देश में हो, तो निःसंदेह किसान और किसानी का भविष्य उज्जवल होगा!
अगर आप इसकी खेती करना चाहते हैं तो इसके बीजों के लिए नजदीकी सीमैप के कार्यालय पर सम्पर्क कर सकते हैं। इसके अलावा, सीमैप की वेबसाइट से भी ज्यादा जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। औषधीय फसलों की खेती से संबधित कोई जानकारी चाहते हैं तो महेन्द्र कुमार, कृषि अधिकारी, बाराबंकी से 8896542401 पर संपर्क कर सकते हैं।