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पिछले 26 सालों से गरीब और बेसहारा मरीजों की देखभाल कर रहे हैं पटना के गुरमीत सिंह!

टना के चिरायतंद इलाके में रेडीमेड कपड़ों की दुकान के मालिक गुरमीत सिंह पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) के ग़रीब और बेसहारा मरीजों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं।

हर रात लगभग 9:00 बजे गुरमीत सिंह अस्पताल के ‘लावारिस वार्ड’ (बेसहारा मरीजों के लिए वार्ड) का दौरा करते हैं और साथ ही, इन सभी मरीजों के लिए खाना लाते हैं। यह सारा खाना वे अपनी जेब से पैसे खर्च करके खरीदते हैं। वे इन सभी मरीजों को खाना खिलाते हैं और उनका हाल-चाल पूछते हैं।

यदि कोई दर्द या तकलीफ़ में हो तो तुरंत डॉक्टरों को इत्तिला करते हैं। इतना ही नहीं बहुत बार जरूरत पड़ने पर गुरमीत इन मरीजों के लिए दवाइयाँ भी खरीद कर लाते हैं।

सभी मरीजों को खाना खिलाकर और फिर खुद उनके बर्तन साफ़ करने के बाद ही गुरमीत अस्पताल से घर जाते हैं।

एक मरीज को खाना खिलाते हए गुरमीत सिंह

60 की उम्र पार कर चुके गुरमीत पिछले लगभग तीन दशकों से बिना किसीको बताये चुप-चाप यह नेक काम करते आ रहें हैं। वे कहते हैं कि वे अपनी संतुष्टि और ख़ुशी के लिए यह करते हैं।

बहुत से मरीजों के लिए गुरमीत सिंह द्वारा लाया हुआ खाना ही उनका पूरे दिन का पहला निवाला होता है। वार्ड में एक मरीज़ ने बताया, “यदि सरदारजी हर रात खाना और दवा नहीं लाते हमारे लिए, तो हम में से कई लोग अब तक मर चुके होते।”

एक 70 वर्षीय मरीज, कमला देवी ने कहा कि जब से उनके बेटे ने उन्हें घर से निकाला है, तब से इस अस्पताल में ‘सरदार जी और उनका खाना’ ही ज़िन्दगी के अंतिम दिनों में उनकी उम्मीद हैं। कमला देवी के पैर में गहरी चोट है और इसीलिए वे अस्पताल में हैं।

मरीजों से हालचाल पूछते गुरमीत

सिर्फ़ खाना ही नहीं, गुरमीत इतने सालों में अनगिनत बार रक्तदान भी कर चुके हैं ताकि लोगों की जान बचायी जा सके। पर अभी डॉक्टरों ने उन्हें उनकी बढ़ती उम्र के चलते रक्तदान करने से मना किया है। ऐसे में गुरमीत के बच्चे और रिश्तेदार नियमित रूप से रक्तदान करते हैं।

गुरमीत को समाज की इस निःस्वार्थ सेवा के लिए साल 2016 में यूके-स्थित एक सिख संगठन ‘द सिख डायरेक्टरी’ ने ‘वर्ल्ड सिख अवॉर्ड’ से नवाज़ा

गुरमीत सिंह

गुरमीत से प्रेरित होकर और दो लोगों ने निःस्वार्थ सेवा शुरू की है और अब वे भी इन बेसहारा लोगों के लिए खाना लाते हैं। उनकी यह सेवा सिख धर्म के दसवंद की सीख से प्रेरित है जिसके अनुसार सिख धर्म का पालन करने वाले लोगों को अपनी कमाई का दसवा हिस्सा लोगों की भलाई के लिए देना होता है।

मूल लेख: रिनचेन नोरबू वांगचुक

( संपादन – मानबी कटोच )


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