के दारनाथ का नाम सुनकर ही हमारी आँखों के सामने वह भयानक मंजर आ जाता है जिसने साल 2013 में न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश में तबाही मचा दी थी।
उत्तराखंड ने प्रकृति का वह कोप झेला कि कोई भुलाये नहीं भूल सकता है। इस प्राकृतिक आपदा में न केवल उत्तराखंडवासी बल्कि अन्य जगहों से आये न जाने कितने तीर्थयात्रियों ने अपनी जान गंवाई तो किसी ने अपनों को खो दिया।
पर इस आपदा के मंजर से ऐसी भी बहुत सी कहानियां सामने आयीं जो लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी। ऐसी ही एक सच्ची कहानी है राजस्थान के अलवर से ताल्लुक रखने वाले 45 वर्षीय विजेंद्र सिंह राठौर की!
दरअसल, इस आपदा के दौरान विजेंद्र सिंह और उनकी पत्नी लीला भी यात्रा पर आये थे। जहाँ विजेंद्र अपनी पत्नी से बिछुड़ गये। बहुत कोशिशों के बाद भी जब लीला का पता नहीं चला तो उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। सभी नाते-रिश्तेदारों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी।
लेकिन विजेंद्र ने हार नहीं मानी। उन्हें यकीन था कि उनकी पत्नी जीवित है। इसलिए विजेंद्र लगातार अपनी पत्नी की खोज में लगे रहे। लगभग डेढ़ साल तक हर एक चुनौती का सामना करते हुए विजेंद्र ने 1000 से भी ज्यादा गांवों में जा जाकर अपनी पत्नी को ढूंढा।
एक स्त्रोत ने बताया, “उसका प्यार और विश्वास उसकी ताकत बना। बिना किसी आश्रय या खाने-पीने के उसने सड़कों पर रात गुजारी पर फिर भी सरकार द्वारा मुआवजे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।”
अपनी पत्नी की खोज के लिए और अपने पाँचों बच्चों को पालने के लिए विजेंद्र ने अपनी पैतृक जमीन भी बेच दी। इस मुश्किल समय में विजेंद्र के बच्चे उनकी ताकत बने। और आख़िरकार, इनका प्यार और विश्वास जीत गया। विजेंद्र ने अपनी पत्नी लीला को ढूंढ निकाला।
खबरे हैं कि विजेंद्र के इस हौंसले और विश्ववास से प्रभावित होकर फिल्म-निर्माता सिद्दार्थ रॉय कपूर ने उनकी कहानी को फ़िल्मी-परदे पर उतारने का निर्णय किया है। इस फिल्म को विनोद कापरी निर्देशित करेंगे।
ऐसे लोग जिन्होंने किसी अपने को खोया है और अब उनके लौटने की उम्मीद भी खो रहे हैं, ऐसे लोगों के लिए यक़ीनन, विजेंद्र की कहानी एक आशा की एक किरण है।