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निर्भया केस: जानिए कैसे सिर्फ 72 घंटों में दिल्ली पुलिस ने सुलझाया था यह केस!

निर्भया केस पर काम करने वाली पुलिस टीम/ज़फर अब्बास ट्विटर अकाउंट

16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में हुए निर्भया केस को शायद ही कोई भूल पाए। इस मांमले में पीड़िता के साथ हुई बर्बरता की कोई सीमा नहीं थी। यह पहली बार था जब पुरे देश में लोगों ने इस अन्याय के ख़िलाफ़ एक-जुट होकर प्रदर्शन किये।

इस केस में बहुत सी बातें हैं, जो शायद किसी भी मामले में पहली बार हुई थीं। लेकिन इन सबके साथ इस केस में सराहनीय थी दिल्ली पुलिस की भूमिका। दिल्ली पुलिस ने 72 घंटों के अंदर ही सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया था। साथ ही केस के 10 दिनों के अंदर ही उन्होंने चार्ज शीट फाइल कर दी थी।

इस मामले की छानबीन करने वाली पुलिस टीम के अधिकारियों ने सोमवार को बताया कि आज वे निर्भया के माता-पिता से आँखें मिला सकते हैं। उन्हें गर्व है कि उन्होंने मौत से लड़ रही निर्भया से किया अपना वादा पूरा किया।

फोटो: निर्भया केस के दौरान प्रदर्शन/रमेश लालवानी

तत्कालीन डीसीपी छाया शर्मा, जिनके निर्देशन में इस मामले की तहकीकात हुई, उन्होंने कहा, “इस केस में पूरी टीम ने कड़ी मेहनत की जाँच-पड़ताल करने में। सुप्रीम कोर्ट ने भी हमारे प्रयासों को सराहा था। बाकी यह निर्भया का विश्वास और हौंसला था, जो हमारे लिए प्रेरणा बना।”

इसके अलावा उन्होंने बताया कि निर्भया के मामले पर 100 से अधिक पुलिसकर्मियों ने काम किया, 72 घंटे के भीतर मामले को सफलतापूर्वक हल किया गया और घटना के दस दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल की गयी थी। दिल्ली में कुल 381 बसों में से, हमारी टीम ने सफेद बस की पहचान की, जिसमें यह घटना हुई थी।

दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के डीसीपी पी. एस कुशवाह ने द क्विंट को बताया, “शुरुआत में कोई सबूत या संकेत न मिलने से मामला बहुत मुश्किल था। लेकिन फिर हमें एयरपोर्ट के पास एक होटल से एक वीडियो मिला। इस वीडियो क्लिप में यह बस दो बार उसी जगह से गुजरी थी। हमारे संदेह का मुख्य कारण यही था कि आखिर क्यों एक बस एक ही स्थान से दो बार जा रही है- एक बार 9:34 बजे और फिर 9:54 पर।”

इस वीडियो के मिलने के बाद, बस को ढूंढने में पुलिस को ज्यादा वक़्त नहीं लगा और इसके बाद बस ड्राइवर राम सिंह को गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद बाकी सभी आरोपियों को भी तीन दिनों में पकड़ लिया गया था।

इस केस में नाबालिग राजू को छोड़कर बाकी सभी को मौत की सजा सुनाई गयी थी। इसके बाद राम सिंह ने जेल में आत्महत्या कर ली थी। जबकि राजू को सुधार-गृह भेजा गया था।

अब सुप्रीम कोर्ट ने भी बाकी तीन अपराधियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील करने की अपील को ठुकरा दिया है।

इस केस में पुलिस की भूमिका बहुत अहम् रही और उनकी जाँच के चलते ही कोर्ट भी बिना समय गवाएं फैसला सुना पाया।

( संपादन – मानबी कटोच )

मूल लेख: तन्वी पटेल


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