एयर मार्शल रणधीर सिंह, भारतीय वायु सेना के सबसे पुराने अधिकारीयों में से एक थे। वायु सेना में उनकी सेवा का किस्सा, भारत की स्वतंत्रता से पहले ही शुरू हो गया था! वह अधिकारी, जिसने 1948 में हुए द्वितीय विश्व युद्ध के पहले कश्मीर युद्ध, 1962 का भारत-चीन युद्ध और भारत पाकिस्तान के बीच 1965 और 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज़ाद भारत में, रणधीर सिंह (रिटायर्ड) को वीर चक्र से नवाज़ा गया।
स्वतंत्रता सेनानियों के भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने के कुछ महीने बाद ही 21 दिसंबर, 1942 के दिन रणधीर सिंह को पूर्व रॉयल इंडियन वायुसेना में कमीशन किया गया था। उनकी पहली पोस्टिंग 1943 में उत्तर-पश्चिमी कोहाट (अब पाकिस्तान में) में हुई थी।
यहां पर वे पूर्व फ्लाइट लेफ्टिनेंट स्वर्गीय एयर मार्शल अर्जन सिंह से मिले थे।
सबसे बायीं तरफ एयर मार्शल रणधीर सिंह (स्त्रोत)
विभाजन के समय रणधीर पेशावर (वर्तमान पाकिस्तान) के पास रिसलपुरा हवाई अड्डे, नौशेरा में एक युवा फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे। अपने बाकी साथियों की तरह उन्हें भी पाकिस्तानी या भारतीय वायु सेना में से किसी एक को चुनने के लिए कहा गया था।
उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में बताया था,
“मैंने अपने एयरबेस में तैनात अन्य 21 अफ़सरों के साथ इन्डियन एयरफोर्स को चुना।”
15 अगस्त 1947 से कुछ दिन पहले रणधीर और उनके साथियों को अपने तूफानी 12-एयरक्राफ्ट के बेड़े को दिल्ली के पास पालम एयरबेस में शिफ्ट करने के लिए कहा गया।
स्त्रोत 15 अगस्त को लाल किले पर झंडा फहरने के बाद रणधीर और उनके अन्य साथी कप्तान अर्जन सिंह के नेतृत्व में वे आरआईएएफ विमान का हिस्सा बने। 1947 में जम्मू-कश्मीर ऑपरेशन के दौरान रणधीर ने 7-स्क्वाड्रन फ्लाइट लेफ्टिनेंट के रूप में अपने टेम्पेस्ट विमान से पाकिस्तानी घुसपैठियों पर हमला करने के लिए लगभग 185 घंटे की उड़ान भरी। उनकी बहादुरी और साहस के प्रदर्शन के लिए उन्हें वीर चक्र दिया गया।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नए इलेक्ट्रिक कैनबरा के साथ उन्होंने 106 स्क्वाड्रन के कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर उन्होंने तिब्बत में चीनी सेना की गतिविधियों का पता लगाया और 1962 के युद्ध का नेतृत्व किया।
1965 और 1971 के दोनों भारत-पाक युद्धों में उनकी सेवा के लिए उनकी सराहना की गई।
मान अमन सिंह छिना से बात करते हुए उन्होंने बताया था कि वे 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान एयर कमांडर के रूप में अपनी उपलब्धि पर बहुत गर्व महसूस कर रहे थे। उन्होंने अदमपुर हवाई अड्डे का रक्षात्मक और आक्रामक संचालन किया। उनकी योजनाबद्ध और मजबूत सुरक्षा के कारण, पाकिस्तानी वायु सेना हवाई अड्डे पर हमला नहीं कर सकी थी।
The remains of Air Marshal Randhir Singh, VrC, a war hero of 1948 Indo-Pak war brought to the cremation ground. pic.twitter.com/lOPn8BTMxl
— Man Aman Singh Chhina (@manaman_chhina) September 19, 2018
1965 और 1971 के युद्धों में उनके योगदान के लिए उन्हें अति विशिष्ट सेवा पदक और परम विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया। एयर मार्शल रणधीर सिंह अप्रैल 1978 में सेवानिवृत्त हुए और चंडीगढ़ में बस गए।
लंबी बीमारी के बाद, 97 वर्ष की उम्र में, इस वॉर हीरो ने 18 सितंबर को अपनी आखिरी साँस ली।
चंडीगढ़ में सेक्टर -25 श्मशान भूमि में पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया, जिसे उनके बेटे विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रदीप सिंह ने पूरा किया।
स्वर्गीय रणधीर सिंह जैसे सैनिकों की वजह से ही आज हम भारतीय पूरी दुनिया में सर उठाकर चल सकते हैं।