“मुझे हमेशा से कारोबार में दिलचस्पी थी। हमेशा से ही मैं काम करना चाहती थी। मैं बहुत महत्वकांक्षी हुआ करती थी और किसी दिन कुछ बं कर दिखाना चाहती थी। मैंने 10वीं तक पढ़ाई की और साथ ही सिलाई का काम सीखने लगी ताकि कुछ पैसे कमा सकू।
लेकिन जल्द ही मेरी शादी हो गयी और मुझसे मेरे सपनों को भुलाकर घर पर बैठने की उम्मीद की गयी। बाहर से देखने पर सब कुछ बढ़िया था- मेरे पति दिखने में बहुत अच्छे थे, हमारा 2 बेडरूम का मकान था और आगे एक अच्छा भविष्य। पर उन्हें न तो मुझसे लगाव था न मेरी परवाह थी। वो मुझे इस हद तक अनदेखा करने लगे कि मुझे घुटन होने लगी थी। मैंने उन्हें खुश रखने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं खुद अंदर से नाखुश होती जा रही थी।
फिर मैंने फ़ैसला किया कि मैं अपने लिए कुछ करुँगी। मैं खुद को व्यस्त रखना चाहती थी। मुझे गोरेगांव की एक कंपनी में नौकरी मिली। मैं 13 सालों तक हर दिन साइकिल चलाकर वहां जाती थी- मैं साड़ियाँ और घर पर बने स्नैक्स खरीदती और फिर साइकिल पर रखकर उन्हें बेचती थी। मैंने यह काम तब तक किया जब तक मैंने एक कमरा किराये पर लेने जितने पैसे न कमा लिए- और आखिरकार, मैंने अपने पति को छोड़ दिया।
अब मैं यहाँ हूँ… एक छोटा-सा स्टॉल चलाती हुई और अपने लिए जीती हुई। यहाँ तक आने में 13 साल लग गए – मैंने अपने बड़े और ‘परफेक्ट’ घर को एक छोटे से कमरे के लिए छोड़ दिया; पर ये भी सच है कि मैं इतनी खुश पहले कभी नहीं थी। अब मैं आज़ाद महसूस करती हूँ – मतलब अब मुझे किसी और खुश रखने की जरूरत नहीं है सिवाय अपने आप के।”