उत्तर-प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के नन्हेड़ा गाँव में पिछले 25 सालों से एक मिस्त्री (मकान बनाने वाला) लगभग 120 साल पुरानी मस्जिद का रख-रखाव कर रहा है। 59 वर्षीय रामवीर कश्यप के लिए यह उनका ‘धार्मिक’ कर्तव्य है।
आश्चर्य की बात यह है कि इस गाँव में एक भी मुसलमान व्यक्ति नहीं है। नन्हेड़ा गाँव में ज्यादातर हिन्दू धर्म के लोग रहते हैं, जिनमें जाट समुदाय बहुसंख्यक है। गाँव के प्रधान दारा सिंह ने बताया कि गाँव में से आखिरी मुस्लिम परिवार ने लगभग 50 साल पहले ही गाँव छोड़ दिया था। उसके बाद से यहां कोई मुस्लिम परिवार नहीं आया। लेकिन रामवीर ने मस्जिद की रखवाली में कोई कमी नहीं आने दी।
रामवीर हर रोज मस्जिद में झाड़ू लगाते हैं और शाम को यहां मोमबत्ती भी जलाते हैं। साल में एक बार रमज़ान से पहले वे मस्जिद में रंग-रोगन का कार्य भी करवाते हैं। यहां तक कि जब साल 2013 में मुज़फ्फरनगर में दंगे हुए तो कुछ लोग इस मस्जिद को तोड़ना चाहते थे। लेकिन रामवीर ने अपनी जान जोखिम में डालकर और कुछ गांववालों को इकट्ठा कर इस मस्जिद को टूटने से बचाया।
रामवीर के मुताबिक गाँव में आज़ादी से पहले बड़ी संख्या में मुसलमान रहा करते थे। धीरे-धीरे वे चले गए। अब कभी-कभी ही कोई नमाज के लिए आता है। पास के खेड़ी फिरोजाबाद गाँव में रहने वाले खुशनसीब अहमद (स्वास्थ्य कर्मचारी) बताते हैं, “मैं कुछ साल पहले नन्हेड़ा गया था और यह देखकर हैरान रह गया कि एक हिंदू शख्स मस्जिद की देखभाल कर रहा है। मैंने वहां नमाज पढ़ी। नफरत को खत्म करने वाले प्रेम और सौहार्द के कई उदाहरण देश में मौजूद हैं।”
रामवीर मस्जिद से केवल 100 मीटर की दूरी पर रहते हैं। वह बताते हैं कि बचपन में वह इसके आसपास खेलते थे। वह कहते हैं, “मेरे लिए यह पूजा की जगह है जिसका सम्मान होना चाहिए। उसकी देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए मैंने जिम्मेदारी ले ली। पिछले 25 साल से मैं रोज इसकी सफाई करता हूँ और मरम्मत का ध्यान रखता हूँ।”
रामवीर की इस सोच का सम्मान उनका पूरा गाँव करता है और समय आने पर उनका साथ भी देता है। दारूल उलूम में संगठन और विकास विभाग के इंचार्ज अशरफ उस्मानी कहते हैं, “भारत की यही बात इसे महान बनाती है। नन्हेड़ा जैसे उदाहरण पूरे भारत में फैले हैं। बंटवारे के ठीक बाद मुसलामानों को पाकिस्तान जाना पड़ा, खासकर पंजाब से, वहां सिख और हिंदुओं ने उन मस्जिदों को संभाला जो अभी भी वहां हैं। ऐसे ही कई जगहों पर मुस्लिम मंदिरों को संभाल रहे हैं।”
संपादन – मानबी कटोच