कोलकाता नेशनल मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाली मौसमी खातून और मोसम्माद हसीना परवीन ने हाल ही में डॉ अमिया कुमार बोस मेमोरियल अवार्ड जीता है।
एमबीबीएस फर्स्ट ईयर की छात्रा मौसमी के लिए यहां तक का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं रहा है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद गांव में रहनेवाली 19 वर्षीय मौसमी कुछ समय पहले तक अपने परिवार के साथ एक बीड़ी के कारखाने के लिए काम करती थी।
मौसमी ने बताया, “हमारे घर में से किसी न किसी को बीड़ियाँ बनानी पड़ती ताकि कुछ आमदनी हो। लगभग 1000 बीड़ियाँ बनाने पर 150 रूपये मिलते थे। मेरी माँ को घर का काम भी करना होता था तो वह लगभग 800-900 बीड़ी बना पाती। इसके अलावा मैं जब भी घर पर होती तो उनकी मदद करती थी।”
अपने स्कूल में 10वीं और 12वीं कक्षा में अच्छे अंकों से पास होने वाली मौसमी के लिए डॉक्टर बनना हमेशा से उसका सपना था। उनकी माँ भी अपनी बेटी की काबिलियत को भली-भांति पहचानती थी। मौसमी कहती हैं कि माँ हमेशा मुझे अच्छे से पढ़कर स्कॉलरशिप हासिल करने को प्रेरित करती, क्योंकि हम खुद से पूरी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते थे।
मौसमी कहती हैं, “मेरी माँ की शादी तभी हो गयी थी जब वे आठवीं कक्षा में थीं। वे पढ़ना चाहती थीं लेकिन पढ़ नहीं पायी। उन्होंने अकेले ही हमें पाला, लेकिन कभी भी हार नहीं मानी। वे हमेशा मुझे कहती हैं कि सबसे पहले मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना होगा, उसी के बाद शादी के बारे में सोचेंगें।”
डॉ अमिया कुमार बोस मेमोरियल अवार्ड को उनकी बेटी डॉ गीताश्री मुखर्जी ने साल 2015 में शुरू किया था। यह स्कॉलरशिप मौसमी के लिए बहुत मायने रखती है। क्योंकि अब उन्हें किताबों और अन्य खर्चों के बारे में परेशान होने की जरूरत नहीं है।
मौसमी और हसीना परवीन ने डॉ गीताश्री से मुलाकात भी की। उन्होंने बताया कि गीतश्री ने भी अपनी पढ़ाई कोलकाता नेशनल मेडिकल कॉलेज से की है।
किताबें उधार मांग कर मेडिकल की पढ़ाई शुरू करने वाली मौसमी कहती हैं कि वे एक बहुत ही अच्छी डॉक्टर बनकर गरीबों का इलाज़ करना चाहती हैं।
संपादन – मानबी कटोच