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‘नेकी की दिवार’ – जिसके पास ज़्यादा हो वह देकर जाए, जिसे ज़रूरत हो वह लेकर जाए!

मतौर पर जिस चीज़ की हमें जरुरत नहीं होती उसे हम लोग या तो फेंक देते हैं या वह चीज़ रखे-रखे ही ख़राब हो जाती है किन्तु छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर में एक नई पहल की गई है जिसके माध्यम से आप अपनी अनुपयोगी वस्तुओं को जरूरतमंद तक पहुंचा सकते हैं। एक ऐसी मुहीम जिसमें ईंट से बनी दीवार लोगों को जोड़ने का काम कर रही है और मदद करने के लिए प्रेरित कर रही है। ‘नेकी की दीवार’ कही जाने वाली इस दीवार को खूबसूरती से सजाया गया है और अब यहाँ लोग स्वस्फूर्त आकर जरुरतमंदो के लिए सामान छोड़कर जाते हैं।

 

अब ज़रूरतमंदों को नहीं फैलाने पड़ते हाथ 

अगर आपके घर में पुराने पहनने, ओढ़ने, बिछाने के कपड़े, किताबें, खिलौने, बर्तन, दवाईयां, क्रॉकरी, फर्नीचर आदि जो भी है, जिसका आप प्रयोग नहीं कर रहे हैं और वह शहर के जरूरतमंदों के काम आ सकता है तो आप उक्त सामान को ‘नेकी की दीवार’ पर आकर छोड़ सकते हैं। यहाँ से जरूरतमंद आकर खुद इन्हें ले जाएंगे। इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि किसी भी गरीब या ज़रूरतमंद इंसान को किसी के आगे हाथ फैलाकर शर्मिंदा नहीं होना पड़ता। इस दिवार पर आकर कोई भी बेझिझक अपनी ज़रूरत का सामान ले जा सकता है।

एक बच्ची जरुरत का सामन ले जाते हुए

 

एक दीवार से बढ़ता गया कई दीवारों का सिलसिला 

इस पहल की शुरुआत पहले शहर के मध्य गाँधी उद्यान से हुई, वहाँ पर एक नेकी की दीवार बनाई गई। जब शहर में इस पर चर्चा होने लगी तो देखते ही देखते लोगों ने स्वयं के प्रयास से दूसरी जगह भी नेकी की दीवार बना ली। वर्तमान में गाँधी उद्यान,अनुपम गार्डन, समता कॉलोनी, मेन रोड पर भी ‘नेकी की दीवार’ बन चुकी हैं। इस मुहीम के माध्यम से 3 साल में लाखो जरुरतमंदो की मदद हो चुकी है। लोग अब स्वयं अपनी गली और वार्ड में दीवारों को सजाकर नेकी की दीवार बनाने लगे हैं।

रायपुर शहर की पुरानी बस्ती में रहने वाले रुपेश (परिवर्तित नाम) ने बताया “मेरा बेटा बहुत दिनों से स्कूल के लिए नए जूते खरीदने के लिए कह रहा था, लेकिन मेरे पास उसे जूते दिलाने के लिए पैसे नहीं थे। एक दिन घर जाते वक़्त नेकी की दिवार को देखा तो सोचा कि शायद यहाँ मुझे जूते मिल सकते हैं, लेकिन वहाँ कपड़े और किताबों के अलावा कुछ नहीं मिला। मैंने वहाँ पर एक पर्ची लिखकर रख दी कि ‘मुझे एक जोड़ी जूतों की आवश्यकता है, कृपया कोई मदद करे।’ और तीन दिन बाद किसी नेक दिल इंसान ने वहाँ एक जोड़ी जूते लाकर रख दिए थे। मैंने उन जूतों को लिया और अपने बेटे को दे दिया। ऐसे भी कोई अनजान व्यक्ति मदद करेगा, मैंने कभी सोचा नहीं था। जूते लेने के बाद मैंने उसी जगह पर एक कागज़ में धन्यवाद लिख कर रख दिया।”

 

शहर से दूर रहते हैं, फिर भी कर सकते हैं मदद 

रायपुर के महापौर प्रमोद दुबे कहते हैं, “नेकी की दीवार का उद्देश्य है कि “जो आपके पास अधिक है, वो यहाँ छोड़ जाएं और जो आपकी जरूरत का है, यहाँ से ले जाएं”  हमनें सिर्फ इसे बनाया है लेकिन शहर के लोगों ने दूसरे की जरुरत को ध्यान में रखते हुए इसे कपड़े, बैग, चादर और रोजमर्रा की चीज़ों से सजाया है। बहुत लोग जो शहर से दूर रहते हैं और नेकी की दीवार तक नहीं आ सकते, वे अपना सामान निगम की गाड़ी में रखवा सकते हैं। शहर के बाहर रहने वाले लोगों को ध्यान में रखते हुए यह गाड़ी चलाई गई है ताकि जरूरतमंद लोगों की समय पर मदद की जा सके।

आज के इस दौर में जहा लोग स्वार्थी होते जा रहे हैं, जहाँ हर काम के लिए लोगों को नाम की चाह होती है उस बीच दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो जरुरतमंदो के लिए निःस्वार्थ भाव से नेकी की दीवार में सामान छोड़कर चले जाते हैं।  जरूरतमंत को बस इतना पता चलता है कि कोई इंसान जिसके अंदर दया का भाव है, जो इंसानियत को समझता है उसने यह नेक काम किया है। ठण्ड के मौसम में लोग कम्बल रख जाते हैं, बरसात में रेनकोट और चुभने वाली धुप के मौसम में कोई फरिश्ता बन चप्पल और जूते रखकर चला जाता है।

निगम की इस पहल के बाद रायपुर शहर के लोग अब खुद ही अपने आस-पास की दीवारों को खुद से रंग कर सजा रहे हैं और शहर के अलग-अलग स्थानों पर छोटी-छोटी ‘नेकी की दीवार’ बन गई हैं।

संपादन – मानबी कटोच 


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