मुंबई में हुए 26/11 आतंकवादी हमले के दस साल बाद, आज ‘द बेटर इंडिया’ उन सभी साहसी लोगों को सलाम करता है, जो उस दिन बहादुरी से लड़े और जिनकी लड़ाई आज भी जारी है। #IndiaRemembers #MumbaiAttacks
तारीख: 26/11/2008
इस एक दिन ने न सिर्फ मुंबई की बल्कि पूरे देश को झुंझला कर रख दिया। इस एक दिन ने हमसे बहुत कुछ छीना पर यही एक दिन हमें बहुत कुछ सिखा भी गया, जिसे भारत की आने वाली हर एक पीढ़ी याद रखेगी।
मुंबई निवासी विष्णु दत्ताराम ज़ेंडे की ड्यूटी छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन पर आने-जाने वाली ट्रेन की घोषणा करने की थी। उस दिन उनकी शाम की शिफ्ट थी। सब कुछ सामान्य था कि अचानक विष्णु ने एक धमाके की आवाज़ सुनी। विष्णु को किसी खतरे की आशंका हुई, तो उन्होंने घोषणा कर रेलवे सुरक्षा बल और सरकारी रेलवे पुलिस को धमाके की दिशा में जाकर छानबीन करने के लिए कहा।
एनाउंसर बूथ स्टेशन मास्टर के दफ्तर के उपर था, जिससे विष्णु स्टेशन के परिसर को देख पा रहे थे। तभी उन्होंने कसाब और इस्माइल को अंधाधुंध फायरिंग करते हुए और बम फेंकते हुए आगे बढ़ते देखा। वे समझ गये कि यह एक आतंकवादी हमला है!
सूझ-बुझ से काम लेते हुए विष्णु ने तुरंत हिंदी और मराठी में इस हमले की घोषणा की और सभी लोगों को जल्द से जल्द स्टेशन के पहले प्लेटफार्म से बाहर निकल जाने को कहा। उनकी आवाज़ सुनते ही लोगों ने भागना शुरू कर दिया। उनकी इस समझदारी ने न जाने कितने लोगों की जान बचायी।
पर जब कसाब ने देखा कि वे लोगों को बाहर भेज रहे हैं, तो उसने बूथ पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया। पर इससे पहले ही विष्णु और उनके साथी डेस्क के नीचे छिप गये। उन्होंने बूथ का कांच टूटने की आवाज़ सुनी। सौभाग्य से विष्णु को हमले में कोई चोट नहीं आई।
कुछ समय बाद विष्णु ने उन आतंकवादियों को बाहर जाते देखा। इसके बाद वे तुरंत भागकर बाहर की तरफ़ गये, जहाँ लगभग 60 लोग घायल पड़े थे। विष्णु ने एक बार फिर रेलवे अधिकारियों, सफ़ाई-कर्मचारियों आदि के लिए घोषणा की ताकि लोग आगे आकर घायलों की मदद कर सकें।
उस रात विष्णु घर नहीं गये, बल्कि जरुरतमंदों की मदद करते रहे। विष्णु ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि इस घटना के बाद बहुत से लोगों ने आकर उनका धन्यवाद किया जो उनकी आवाज़ सुनकर अपनी जान बचा पाए थे। विष्णु को रेलवे ने भी सम्मानित किया और उन्हें प्रमोशन भी मिला।
इतना ही नहीं जब बराक ओबामा भारत आये तो उन्होंने विष्णु से हाथ मिलाया था। विष्णु कहते हैं कि उस घटना के बाद उनमें सिर्फ एक परिवर्तन आया है और वह यह है कि अब वे किसी बात से नहीं डरते।
इस तरह की परिस्थितियों के लिए कोई भी पहले से तैयार नहीं होता है। ज्यादातर लोग ऐसे में अपना संयम और विवेक खो देते हैं। पर विष्णु ने उस रात जो किया वह काबिल-ए-तारीफ़ है।
संपादन – मानबी कटोच