भारत के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक जादवपुर यूनिवर्सिटी है। इसी यूनिवर्सिटी में एक बहुत पुरानी कैंटीन को चलाने वाले मिलन कांति डे का हाल ही में लंग कैंसर के चलते निधन हो गया। उन्हें सब लोग प्यार से ‘मिलन दा’ कहकर बुलाते थे।
जादवपुर यूनिवर्सिटी में न जाने कितनी पीढ़ियों के छात्र मिलन दा को जानते हैं। उनकी कैंटीन चार दशकों से विश्वविद्यालय की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा रही है। जेयू में छात्रों का कोई ‘अड्डा’ सेशन मिलन दा के कैंटीन से कुछ खाये बिना पूरा नहीं हुआ।
मिलन दा ने जादवपुर विश्वविद्यालय के गेट 4 के पास एक कैंटीन शुरू किया था। उनकी कैंटीन एक खास पकवान ‘धोपेर चोप’ के लिए प्रसिद्द थी।
‘धोपेर चोप’ के पीछे की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। ‘धोप’ शब्द का मतलब बंगाली में ‘झूठ’ होता है। जो की गुस्से से भरे यूनिवर्सिटी के बुद्धिजीवियों ने बिडम्वना को दर्शाने के लिए रखा था।
यह कुरकुरा स्नैक और मिलन दा की स्पेशल चाय, इन दोनों के बिना कैंटीन में विद्यार्थियों के बीच होने वाली कोई भी राजनैतिक, सांस्कृतिक बहस पूरी नहीं होती थी।
मिलन दा का स्वभाव बहुत ही शांत था। वे तो बस चुप्पी के साथ ट्रे में चाय और धोपेर चोप परोसकर बच्चों के लिए विचार-विमर्श का माहौल बनाते थे।
हालांकि, जीवन उनके लिए इतना आसान नहीं रहा। मिलन दा, लिबरेशन युद्ध के दौरान बांग्लादेश से भागकर कोलकाता, भारत आये। यहां उन्होंने 1972 में इस कैंटीन की शुरुआत की। दिन के दौरान कॉलेज परिसर में चाय बेचते और रात में गेट के बाहर फुटपाथ पर सो जाते। मिलन दा ने संघर्ष किया और धीरे-धीरे अपना कारोबार बढ़ाया, कोलकाता में जमीन खरीदी, और अपने माता-पिता को अपने साथ रहने के लिए ले आये।
मिलन दा ने कैंसर के साथ लंबी लड़ाई के बाद 23 जुलाई को अपना आखिरी सांस ली। परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटे हैं।
जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों के सोशल मीडिया अकाउंट्स मिलन दा के किस्सों से भरे हुए हैं। कई छात्रों ने कोलकाता में इस प्रतिष्ठित कैंटीन में बिताए गए अनमोल क्षणों को याद किया। अब, यह देखना है कि क्या उनकी पत्नी और बेटे मिलन दा की इस विरासत को आगे बढ़ाएंगे?