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12 किताबे प्रकाशित करने और प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपती से प्रशंसा पाने के बाद भी चाय बेचते है लक्ष्मण राव !

एक चायवाले से हमारे देश के प्रधानमन्त्री बने श्री नरेन्द्र मोदी को तो हम सभी जानते है। आईये आज जाने एक चायवाले से हिंदी के लेखक बने श्री लक्ष्मण राव से।

रास्ते पर छोटीसी दुकान लगाकर हाथ में चाय की केटली लेके चाय बेचनेवाले लक्ष्मण राव को देखनेवाले लोगो को ये पता नहीं चलता है कि चाय बेचने के अलावा भी उनकी एक अलग दुनिया है, जिसमे वे पढने और लिखने में दिलचस्पी रखते है।

 

लक्ष्मण राव ने 25 किताबे लिखी है और उनमे से 12 प्रकाशित हो चुकी है। इसके साथ साथ वे उच्च शिक्षा की पढाई भी रहे है।

दिल्ली के लोग, जो चाय के साथ किताबे पढना पसंद करते है, उन्हें लक्ष्मण राव से ज़रूर मिलना चाहिए। 63 वर्षीय लक्ष्मण अपने किशोरावस्था से ही किताबे लिख रहे है। दिल्ली में ITO के निकट उनकी चाय की दुकान से उनके द्वारा प्रकाशित किताबे भी आप खरीद सकते है। इसके अलावा Flipkart, Amazon तथा Kindle पर भी उनकी किताबे उपलब्ध है।

उनका जन्म तलेगांव दशासर, महाराष्ट्र में हुआ था। बचपन से ही उन्हें गुलशन नंदा की लिखी किताबे पढने का शौक था। इन किताबो को पढ़ते पढ़ते उन्हें भी लिखने में दिलचस्पी होने लगी।

15 साल की उम्र से वे गुलशन नंदा की किताबे पढ़ रहे है. वे कहते है “मैं हमेशा सोचता था की एक दिन मैं ‘गुलशन नंदा’ बनकर दिखाऊंगा

उनके गाँव में स्कूल नहीं था इसलिए वे अमरावती शहर में रहने लगे  घर के हालात अच्छे न होने के कारण पढाई पूरी करने के लिए वे खुद किसी दुसरे के घर मे ३ साल तक और एक मिल में ५ साल तक काम करते रहे

पढाई के दौरान उनके स्कूल में हुयी एक दुर्घटना से वे बेहद आहत  हुए और लिखने में दिलचस्पी लेने लगे।  रामदास नाम का उनका एक मित्र उनके स्कूल में पढता था। एक दिन रामदास की नदी में डूबकर मौत हो गयी। रामदास एक जिद्दी और झगडालू किस्म का लड़का था पर उसके स्कूल के एक शिक्षक ने उसे समझाया और उसकी जिंदगी बदल दी। उसके बाद रामदास सबका चहेता बन गया था। लक्ष्मण राव ने अपनी पहली किताब रामदास की कहानी पर ही लिखी है।

दिल्ली में बहोत सारे प्रकाशन के ऑफिस होने के कारण उन्होंने दिल्ली जाने का निर्णय लिया। १० वी कक्षा के बाद कुछ साल उन्होंने खेतीबाड़ी की और उसके बाद पिताजी के दिए हुए ४० रुपये लेकर गाँव छोड़ दिया।

परन्तु दिल्ली तक का सफ़र इतना आसान नहीं था। कम पैसे होने के कारण वे सिर्फ भोपाल तक ही पहोच सके। वहा पर ३ महीनों तक वे मजदूरी का काम करते रहे।

जुलाई 1975 में लक्ष्मण राव दिल्ली पहुचें. वे तब 25 साल के युवक थे उस वक्त उनके पास पहनने के लिए सिर्फ 2 जोड़ी कमीज़, दसवी कक्षा की डिग्री और लेखक होने का सपना.. बस इतना ही था।

दिल्ली पहोचने के बाद उन्होंने नौकरी की खोज की, पर असफल रहे। अगले २ साल तक वो मजदूरी का काम करते रहे। उसके बाद उन्होंने पान की दूकान शुरू की। कुछ सालो बाद, उसी दूकान में वे चाय बेचने लगे। और पिछले 20 सालो से वे दिल्ली में चाय बेच रहे है।

उन दो सालो में उन्होंने “नयी दुनिया की नयी कहानी” नाम की एक किताब लिखी। यह किताब दिल्ली में आकर एक लेखक बनने की उनकी अभिलाषा पर आधारित थी। अपनी दोनों किताबे जब वे प्रकाशक के पास लेके गए तो उन लोगो ने मना कर दिया और साथ में हँसी भी उड़ाई। सबको लगता था की चाय वाले की किताब कौन पढ़ेगा। जब एक प्रकाशक ने उन्हें ऑफिस से निकाल दिया, तब उन्होंने निर्णय लिया की वे अपनी किताबो का प्रकाशन बिना किसी की मदद के खुद ही करेंगे।

सन 1979 में उन्होंने 7000 रुपयों की अपनी जमापूंजी खर्च करके अपनी पहली किताब “नयी दुनिया की नयी कहानी” प्रकाशित की। किताब बेचने के लिए लक्ष्मण साइकिल पे सवार होके स्कूल और लाइब्रेरी में जाने लगे। लक्ष्मण लोगो से किताब पढने के लिए विनंती करने लगे।

लक्ष्मण राव ने “भारतीय साहित्य कला प्रकाशन” नाम की अपनी खुद की प्रकाशन संस्था स्थापन की।

लक्ष्मण हर साल अपने ४ किताबो की ५०० प्रतिया प्रकाशित करते है। एक किताब प्रकाशित करने के लिए उन्हें लगभग 25000-30000 रुपये खर्च करने पड़ते है। वे कहते है कि उनकी चाय की दुकान पे हर महीने १०० किताबे बिकती है। बाकी किताबे वे इंटरनेट पे बेचते है। आजकल वे अपने २ नयी किताबो पर काम कर रहे है।

उनकी पहली किताब प्रकाशित होने के बाद लोग उन्हें पहचानने लगे है। सन 1984 में कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ट नेता को उनके बारे में जब पता चला तब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को ये बात बताई. प्रधानमंत्री ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया और उन्हें लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। जब लक्ष्मण ने प्रधानमंत्री से कहा की वे उनके जीवन पे एक किताब लिखना चाहते है, तब प्रधानमंत्री ने कहा कि वे उनके राजकीय जीवन पर कुछ लिखे। इसलिए लक्ष्मण ने “प्रधानमंत्री” नामक एक नाटक लिखा।

लक्ष्मण कहते है, “मैं अपना लिखा हुआ नाटक श्रीमती इंदिरा गाँधी को समर्पित करना चाहता था। पर दुर्भाग्यवश उनकी मौत हो गयी और मेरा सपना अधुरा रह गया।”

लक्ष्मण अब लेखन के अलावा पढाई में भी दिलचस्पी ले रहे है

उम्र के चालीसवे साल में उन्होंने 12वी कक्षा की सीबीएसई परीक्षा पत्रचार स्कूल, दिल्ली से उत्तीर्ण की और उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन (स्नातक) पूरा किया फिलहाल वे हिंदी विषय में IGNOU से M.A. कर रहे है   

 

लक्ष्मण कहते है, “मैं अपनी पुस्तके हिंदी में लिखता हूँ ताकि देश की सामान्य जनता उसे पढ़ सके। इसलिए मैं ज्यादा से ज्यादा हिंदी की किताबे पढने लगा। हर इतवार को मैं दर्यागंज के पुराने किताबो के बाज़ार में जाके हिंदी किताबे खरीदता था। ”

‘रामदास’ की तरह उनकी सारी किताबे सत्य घटनाओं पर आधारित है।

लक्ष्मण राव बताते है, “कुछ विद्यार्थी मेरे चाय की दूकान पे एक लड़की के बारे में बात करते थे जो स्कूल में हमेशा कम बोलती थी। मैं रेनू नाम की उस लड़की से मिला और उसके जीवन पर आधारित ‘रेनू’ नामक किताब लिख दी।”

‘रेनू’ एक ऐसी किताब थी जो लक्ष्मण ने पूर्व राष्टपती  श्रीमती प्रतिभा पाटील को तोहफे में दी। राष्ट्रपति उनके इस किताब से काफी प्रभावित हुई और उन्होंने लक्ष्मण को परिवार सहित 23 जुलाई, 2009 को राष्ट्रपति भवन आने का न्यौता दिया।

लक्ष्मण राव का अपनी चाय की दुकान बंद करने का कोई इरादा नहीं है। वे अपनी पत्नी और दो बेटे, जो उच्च शिक्षा की पढाई कर रहे है, उनके साथ रहते है। उनका कहना है कि “किताबे बेचने से जो राशी मिलती है वो मैं किताबे प्रकाशित करने के लिये इस्तेमाल करता  हूँ । और इस दुकान की आमदनी से मेरा घर चलता है।”

वे अब किताबे घर घर जाके नहीं बेचते है। “रामदास” उनकी अबतक की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब है, जिसकी अभी तीसरी आवृत्ति प्रकाशित हुयी है। इसकी 3000 से ज्यादा प्रतिया बिकी है और इसके उपर एक नाटक भी बना है।

वे अपनी नयी किताब “ब्यारीस्टर गाँधी” लिख रहे है जो महात्मा गांधी के जीवन पर आधारित है। वो “दंश” नामक सामाजिक विषय पर भी एक किताब लिख रहे है। उनकी “नर्मदा”, “परंपरा से जुडी भारतीय राजनीती”, “अहंकार” और “अभिव्यक्ति” जैसी किताबे प्रसिद्ध है।

लक्ष्मण राव बहुत विश्वास के साथ कहते है, “मैं अपनी जिंदगी से संतुष्ट हूँ। मुझे आगे बढना है। मुझे उम्मीद है कि एक दिन इन किताबो से मैं बहोत सारे पैसे कमाऊंगा और अपनी चाय की दूकान बंद करके सिर्फ किताबे लिखने में जीवन व्यतीत करूँगा। और वो दिन अब दूर नहीं।”

लक्ष्मण राव के बारे में अधिक जानने के लिये आप laxmanrao.bskp@gmail.com इस ईमेल पर या उनके फेसबुक पेज पर लिख सकते है। उनकी किताबे Flipkart, Amazon and Kindle पर खरीदने के लिये उपलब्ध है।

मूल लेख तान्या सिंग–द्वारा लिखित

 

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