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स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में हुए कई बदलाव, कोरोना भी आएगा पॉलिसी के दायरे में!

स्वास्थ्य बीमा पॉलिसीधारकों के लिए अच्छी खबर है। भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने प्री- एग्ज़िस्टिंग डिजीज (PED) यानी पहले से मौजूद बीमारियों की परिभाषा में बदलाव किया है। इस बदलाव से स्वास्थ्य बीमा में रिजेक्ट किए जाने वाले मेडिकल क्लेम की दर कम होने की संभावना है। यह घोषणा 10 फरवरी 2020 को की गई है।

अगर आप पॉलिसी होल्डर हैं तो ये बातें आपको जानना ज़रूरी है –

नए बदलाव के मुताबिक, अगर स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेने के तीन महीनों के भीतर एक पॉलिसीधारक को किसी भी बीमारी से पीड़ित होने का पता चलता है उसे प्री- एग्ज़िस्टिंग डिजीज यानी पीईडी नहीं माना जाएगा।

क्या होते हैं प्री- एग्ज़िस्टिंग डिजीज

ऐसी बीमारी या जख़्म जो पॉलिसीधारक को नई स्वास्थ्य पॉलिसी योजना शुरू करने से पहले हुई है, उसे बीमा कंपनियां प्री- एग्जिस्टिंग स्थिति मानती हैं। किसी पॉलिसीधारक के स्वास्थ्य पॉलिसी लेने के तीन महीने के भीतर अगर बीमारी का पता चलता है तो ऐसी स्थिति को भी पीईडी माना जाता है।

डायबिटीज, कैंसर, चिंता, अवसाद, ल्यूपस कुछ उदाहरण हैं जो प्री- एग्जिस्टिंग स्थिति के तहत आते हैं। ये ज्यादातर स्थाई रोग होते हैं या लंबे समय तक इनके इलाज की ज़रूरत होती है।

For representational purposes only. (Source: Flickr/mynameissharsha)

मुख्य विशेषताएं:

  1. सितंबर 2019 में जारी सर्कुलर में कहा गया था कि अगर पॉलिसीधारक को स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी खरीदने के तीन महीने के भीतर कुछ बीमारियां होने का पता चलता है, तो उसे प्री- एग्ज़िस्टिंग डिजीज माना जाएगा।  हालांकि, जारी किए गए नए सर्कुलर के मुताबिक अब ऐसा नहीं होगा। अब से स्वास्थ्य बीमा खरीदने के तीन महीने के भीतर या बाद में बीमारी की पहचान होने पर उसे प्री- एग्ज़िस्टिंग डिजीज नहीं माना जाएगा।
  2. पिछले सर्कुलर में कहा गया था कि पॉलिसी की प्रभावी तारीख से लेकर 48 महीने तक डॉक्टरों से ली गई सलाह या इलाज को प्री- एग्जिस्टिंग स्थिति माना जाएगा। नए विनियमन में “पॉलिसी की प्रभावी तारीख के 48 महीने पहले” शब्द को शामिल किया गया है। यानि अब हेल्थ पॉलिसी जारी होने के 48 महीने पहले डॉक्टर द्वारा पहचान की गई बीमारियों को प्री-एग्जिस्टिंग बीमारियों में गिना जाएगा।

उदाहरण के लिए: राज 01 जनवरी 2016 को एक स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेता है और वह अपने पॉलिसी फार्म में यह घोषित करता है कि उसे जनवरी 2013 में डायबिटीज का पता चला था। ऐसे में, डायबिटीज को उसकी पॉलिसी में पीईडी माना जाता है। डायबिटीज के लिए उनका कवरेज पॉलिसी में कवर होनेवाली प्री- एग्ज़िस्टिंग डिजीज (पहले से मौजूद रोग) के कवरेज की शर्तों पर निर्भर करेगा।
अब पुराने विनियमन के अनुसार, यदि वह 2020 में अपनी पॉलिसी रिन्यू नहीं कराता है और 01 जनवरी 2021 में भी रिन्यू नहीं कराता है, तो डायबिटीज को अभी भी एक पीईडी माना जा सकता है, क्योंकि यह मूल पॉलिसी की प्रभावी तारीख से 4 साल के भीतर था।

लेकिन, नया संशोधन यह स्पष्ट करता है कि ऐसे केस में डायबिटीज को पीईडी नहीं माना जाएगा और इससे रोगी को डायबिटीज से संबंधित जटिलताओं के लिए कवरेज मिलेगा।

अप्रैल 2019 में, IRDAI ने यह सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए कि स्वास्थ्य कवर अधिक समावेशी हो और लिंग या पहचान के आधार पर भेदभाव न हो। IRDAI ने यह भी कहा था कि स्वास्थ्य बीमा कंपनियां मानसिक बीमारियों को अपने पैकेज से बाहर नहीं कर सकती हैं।

इसके अलावा IRDAI ने बीमा कंपनियों को निर्देश दिया है कि कोरोना को भी हेल्थ इंश्योरेंस के तहत कवर किया जाए। यह भी सुनिश्चित करने को कहा था कि कोरोना वायरस से जुड़े दावों का निपटान शीघ्रता से हो।

मूल लेख- विद्या राजा

संपादन – अर्चना गुप्ता


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