ध्यान में डूबा चेहरा, तनी भौहें, रणनीति तय करने में लगा दिमाग, घोड़े-हाथी से सजा रणक्षेत्र और दुविधा यह कि प्यादों को सुरक्षित करें या उनसे हमला करवाएँ!
यह उस खेल से जुड़ी बात है जो सदियों से इंसान की बुद्धिमता की परख के लिए जाना जाता रहा है।
माना जाता है कि शतरंज नाम के इस खेल की शुरुआत छठी सदी में हुई थी। हालांकि, इसकी शुरुआत को लेकर इतिहासकारों के बीच बहस होती रही है।
कई लोग यह दावा करते हैं कि प्राचीन काल में ‘चतुरंग’ नाम से प्रचलित इस खेल का जन्म गुप्त साम्राज्य के दौरान हुआ था। समय के साथ चतुरंग जो पैदल सैनिकों, घुड़सवार सैनिकों, हाथी और रथ के साथ खेला जाता था, भारत से चल कर फारस यानी ईरान तक जा पहुँचा, जहाँ इसे शतरंज का नाम मिला। धीरे-धीरे इसके स्वरूप में बदलाव आया और यह नए मोहरों हाथी, घोड़ा, ऊंट और प्यादे के साथ आज के शतरंज के रूप में सामने आया।
लेकिन अब शतरंज के खेल को एक और नया रूप दिया गया है, जिसमें पहले के सफ़ेद और काले रंग के मोहरों के साथ ग्रे रंग के मोहरे भी होते हैं। शतरंज के इस नये रूप को ट्राईविज़ार्ड नाम दिया गया है। इसमें दो की जगह तीन खिलाड़ी खेलते हैं और तीन राजाओं के बीच युद्ध होता है। शतरंज के इस नये स्वरूप की शुरुआत आदित्य निगम ने की है।
शतरंज के खेल में तीन खिलाड़ियों को शामिल करने का विचार पहली बार आदित्य निगम के मन में तब आया, जब वे मात्र 5 वर्ष के थे।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए आदित्य कहते हैं, “जब मैं छोटा था, तो अपने भाइयों और दोस्तों के साथ शतरंज खेलता था। दुख की बात यह होती कि हममें से कोई दो खेलते और बाकी को खेल देखना होता। ज़ाहिर-सी बात है कि यह किसी को पसंद नहीं आता था। तभी मैं यह सोचने लगा कि क्यों न इस खेल के ढाँचे को बदला जाए और अधिक खिलाड़ियों को शामिल कर इसका रोमांच बढ़ाया जाए। इस विचार को मैं कभी भुला नहीं पाया। इंजीनियरिंग के पहले साल के बाद मैंने इसे अमली जामा पहनाने का निर्णय लिया। इसके बाद मैं इस खेल में बदलाव लाने की कोशिश में लग गया।“
शतरंज की दुनिया में बदलाव लाने के लिए आदित्य निगम ने साल 2011 में रिसर्च करना शुरू किया। ये एक ऐसे कोड को विकसित करने में लग गए, जो शतरंज को एक नया स्वरूप दे सके।
आदित्य के भाई और इस नई खोज में उनके साथी आशीष निगम कहते हैं, “हमारा इरादा इस खेल को और भी रोमांचक बनाने का था। इस संस्करण में पुराने शतरंज की सभी विशेषताओं को नये और जटिल मनोवैज्ञानिक पहलुओं के साथ बनाये रखा गया है। यहाँ अपनी मर्ज़ी से खिलाड़ियों के बीच गठबंधन बनाए और तोड़े जा सकते हैं। एक तरफ जहाँ सभी नियमों को मुख्य धारा के खेल के समान रखा गया है, वहीं हमने इसे कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है, क्योंकि अब एक खिलाड़ी एक साथ दो खिलाड़ियों को ‘चेकमेट’ कर सकता है।“
इनके इस जुनून ने जल्द ही इन्हें सफलता दिलाई। आईआईटी, रुड़की ने अगस्त 2018 में इनके आविष्कार ट्राईविज़ार्ड चेसबोर्ड का इस्तेमाल कर अब तक का पहला ‘तीन खिलाड़ियों के शतरंज टूर्नामेंट’ का आयोजन किया।
इस खेल के बारे में इस प्रतियोगिता के विजेताओं में से एक विवेक वर्मा बताते हैं, “इस संस्करण में मैच जटिलताओं की नयी ऊंचाइयों को छूता है, क्योंकि अब आपको दो खिलाड़ियों की चालों का सामना करना है। आपको फटाफट अपनी चाल को सोचते और चलते समय हमले और बचाव, दोनों का एक साथ ध्यान रखना है। जो बात इसे और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाती है, वो यह कि आप जीतने के लिए इसमें पुराने सिद्धांतों और रणनीतियों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। ट्राईविज़ार्ड चेस की मांग है कि इसका खिलाड़ी हर समय सक्रिय और चौकन्ना रहे।“
आदित्य बताते हैं, “हमारा विचार खिलाड़ियों की संख्या बढ़ा कर शतरंज को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाना था। हालांकि नियम बदले नहीं गए हैं। यहाँ घड़ी की सुई के अनुसार सफ़ेद मोहरों वाला खिलाड़ी अपनी चाल पहले चलता है, उसके बाद ग्रे और अंत में ब्लैक मोहरों वाला खिलाड़ी।“
वित्तीय टेक्नोलॉजी पर आधारित एप्प पास्ब्रूक को शुरू करने के दो साल बाद आदित्य अब ट्राईविज़ार्ड चेस को एक पूर्ण व्यवसाय बनाने की ओर बढ़ रहे हैं, ताकि वे इस खेल की दुनिया में एक क्रांति ला पाएँ। जैसा कि हर नए आविष्कार के साथ होता है, इस अनोखे खेल को बनाने में भी कई बाधाएँ आईं।
आदित्य बताते हैं, “लोगों ने अपने तर्कों से मुझे हतोत्साहित करने की कोशिश की। इसे संभव बनाने में मुझे बहुत धैर्य और कड़ी मेहनत के साथ परिवार के सहयोग की ज़रूरत पड़ी। एक समय ऐसा आया, जब रिसर्च से ले कर डिज़ाइन तक सब तैयार होने के बाद भी हमें संसाधनों की कमी के कारण पीछे हटना पड़ गया था। निर्माताओं को हमारे हिसाब से चेसबोर्ड और चेसपीस बनाने के लिए तैयार करना, वह भी सीमित संख्या में, बहुत बड़ी चुनौती थी। पर आखिरकार सब संभव हो सका।“
अब आदित्य इस खेल का ऑनलाइन संस्करण निकालने का विचार कर रहे हैं। ऑनलाइन संस्करण आने के बाद खिलाड़ी कम्प्यूटर पर यह गेम खेल सकेंगे और आगे चल कर कम्प्यूटर भी एक खिलाड़ी के रूप में सामने आएगा। इसके अलावा, आदित्य ट्राईविज़ार्ड चेस के लिए ट्रेनिंग और ग्रूमिंग की कक्षाओं का आयोजन भी कर रहे हैं।
आदित्य कहते हैं, “ऐसा माना जाता है कि चेस का आविष्कार भारत में हुआ था। मुझे उम्मीद है कि इस आविष्कार के बाद हम भारत में अंतरराष्ट्रीय ट्राईविज़ार्ड टूर्नामेंट का आयोजन कर सकेंगे, जो देश के लिए एक उपलब्धि होगी।“
आदित्य को हमारी शुभकामनाएँ!
ट्राईविज़ार्ड चेस के बारे में अधिक जानकारी के लिए aditya@triwizardchess.com.पर संपर्क करें। आप यह ट्राईविज़ार्ड चेस द बेटर इंडिया- शॉप से खरीद सकते हैं!
संपादन: मनोज झा