भारतीय खान-पान में खीरा एक लोकप्रिय साइड डिश या स्नैक है। इसका इस्तेमाल हम सभी अक्सर सलाद के रूप में करते हैं।
लेकिन, क्या कभी आपने सोचा है कि इसके छिलके से बॉयोडिग्रेडेबल पैकेजिंग मैटेरियल बनाया जा सकता है?
खैर, यह कमाल किया है भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर (IIT Kharagpur) की शोधार्थी प्रोफेसर जयीता मित्रा और साई प्रसन्ना ने। उन्होंने इन छिलकों से पर्यावरण के अनुकूल पैकेजिंग मैटेरियल बना दिया, जो सौ फीसदी बॉयोडिग्रेडेबल है।
बता दें कि खीरे में न सिर्फ उच्च सेल्यूलोज सामग्री होती है, बल्कि ये बायोडिग्रेडेबल भी होते हैं। और, यदि खीरे को जैविक तरीके से उगाया जाए, तो ये पूरी तरह से नॉन टॉक्सिक भी होते हैं।
चूंकि, इससे पर्यावरण पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए पैकेजिंग मैटेरियल बनाने के लिए यह एक आदर्श स्रोत है। इसका इस्तेमाल खाने की पैकिंग से लेकर पेपर पर वाटर प्रूफ कोटिंग तक में किया जा सकता है।
इसे लेकर प्रोफेसर जयीता मित्रा ने बताया, “केले के छिलके या कसावा के पौधे से पैकेजिंग मैटेरियल नहीं बनाए जा सकते, क्योंकि उसमें पर्याप्त गुणों की कमी होती है। जबकि, कई परीक्षणों के आधार पर हमने पाया कि खीरे के छिलके में, किसी अन्य फल या सब्जी की तुलना में अधिक सेल्यूलोज होती है। इसका इस्तेमाल सुरक्षित पैकेजिंग मैटेरियल बनाने के लिए किया जा सकता है।”
पैकेजिंग मैटेरियल के विषय में
साल 2018 के शुरुआती दिनों में, फेलो रिसर्च स्कॉलर प्रोफेसर जयीता मित्रा और साई प्रसन्ना ने एक साथ बॉयोडिग्रेडेबल पैकेजिंग मैटेरियल बनाने के लिए प्रयोग शुरू किया।
इस कड़ी में मित्रा ने बताया, “पर्यावरण के अनुकूल मैटेरियल बनाने के लिए हमें माइक्रोमोलेकुल की जरूरत थी। ये सामान्यतः कार्बोहाइड्रेट या प्रोटीन स्रोतों में पाए जाते हैं। शुरुआती दिनों में, हमने केले और संतरे के छिलके का परीक्षण किया। लेकिन, वांक्षित परिणाम नहीं मिले।”
वह आगे बताती हैं, “इसके बाद, हमने खीरे के छिलके को आजमाया। परीक्षण के बाद, हमने देखा कि इसमें एक प्रचुर मात्रा में सेल्यूलोज है।”
क्या है प्रक्रिया
प्रयोगशाला में एसिड हाइड्रोलिसिस तकनीक के जरिए, खीरे के छिलके से पानी, एसिड और क्षार में घुलनशील अणुओं को निकाला जाता है। फिर, एक मानकीकृत विधि के तहत, सेल्यूलोज नैनोक्रेसील्स को निकाला जाता है। जिसमें ऑक्सीजन पारगम्यता कम होती है और पैकेजिंग मैटेरियल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए पर्याप्त मजबूत होती है।
मित्रा कहती हैं, “सेल्यूलोज नैनोक्रेसील्स ऑर्गेनिक फिलर्स के रूप में उपयोगी है। ये मैटेरियल को मजबूती प्रदान करते हैं और बायोपॉलिमर के कार्य को बढ़ाते हैं। इससे हमने रैपर बनाया और कई सब्जियों के चारों ओर लपेट कर देखा। फिर, हमने इसकी मजबूती को परखने के लिए और परीक्षण किए। जैसे – यह कितने समय तक सब्जी को खराब होने से बचा सकता है और डीग्रेड होने के लिए कितना समय लगता है। यह सभी परीक्षणों में सफल रहा।”
हालांकि, शोध प्रक्रिया अभी जारी है और इसका पेटेंट हासिल करना बाकी है। इसलिए मित्रा अभी इसके बारे में ज्यादा उल्लेख नहीं कर सकती हैं।
यद्यपि, कई कंपनियों ने उनसे संपर्क भी किया है, जो इस पैकेजिंग मैटेरियल का व्यवसायीकरण करना चाहते हैं। फिलहाल मित्रा इसके लागत और अन्य पहलुओं पर काम कर रही हैं।
मूल लेख – ROSHINI MUTHUKUMAR
संपादन – जी. एन. झा
यह भी पढ़ें – इंजीनयरिंग छोड़ बने किसान, बिजली की समस्या हल कर, बदल दी पूरे गाँव की तस्वीर
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।