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कोरोना हीरोज: IAS की पहल, जिले में हो पर्याप्त मास्क और सैनीटाइज़र!

ध्य-प्रदेश में इस हफ्ते की शुरुआत में कोरोना वायरस के पहले कुछ मामले सामने आए। जबलपुर में चार लोग दुबई और जर्मनी से लौटे हैं और उनका टेस्ट रिजल्ट पॉजिटिव है। पूरे राज्य में 23 मार्च तक कुल 6 लोग कोरोना वायरस पॉजिटिव पाये गए हैं।

इसे देखते हुए पास के सागर जिले में Covid-19 से लड़ने के लिए पूरी तैयारी की गई है। देश के बहुत से प्रांत, मास्क और हैंड सैनीटाइज़र की कमी से जूझ रहे हैं। लेकिन यहाँ पर जिला अधिकारी प्रीती मैथिली नायक यह सुनिश्चित कर रही हैं कि सागर जिले में किसी भी तरह की कोई कमी न हो।

द बेटर इंडिया के साथ बातचीत में प्रीति नायक कहतीं हैं, “हमने भारत सरकार द्वारा जारी किए गए सभी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए, लोगों को हाथ धोने और सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए भी दिशा-निर्देश जारी किए हैं।”

हालांकि, एक हफ्ते पहले आम नागरिकों से बात करते हुए, उन्हें सबसे एक शिकायत मिली कि मास्क और हैंड सैनिटाइजर की कमी है क्योंकि, बहुत से लोगों ने पहले ही इन चीज़ों को स्टॉक में खरीद लिया था। उन्होंने तुरंत जिला सेंट्रल में जेलर को निर्देशित किया। वहां पर हैंडलूम सेंटर है, जहां कुर्ता, साड़ी और दूसरे कपड़ों की बिक्री होती है। प्रीति ने जेलर को निर्देश दिए कि वह कैदियों से कपड़े के मास्क बनवाएं।

एक हफ्ते पहले, सेंट्रल जेल के 55 कैदियों ने एक-दूसरे से उचित दूरी पर बैठकर कपड़े के दो लेयर वाले मास्क बनाने शुरू किए। इन मास्क को अच्छे से धोकर फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। मास्क का माप 8×3 इंच है। उन्होंने अब तक 10, 000 मास्क बनायें हैं और हर दिन, एक हजार मास्क का उत्पादन कर रहे हैं। स्थानीय प्रशासन इन मास्क को स्थानीय रेड क्रॉस शाखा से 10 रुपये में खरीद रहा है।

Prison workers at the Central Jail making face masks.

इन मास्क को प्राथमिकता के आधार पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, डॉक्टरों और पुलिस को मुफ्त में बांटा जा रहा है। आम जनता इन मास्क को स्थानीय दुकानों पर 10 रुपये में खरीद सकती है।

कलेक्टर ने कहा, “अगर मास्क की अधिक मांग है, या जिले के बाहर कोई भी व्यक्ति मास्क खरीदना चाहता है, तो हमें उत्पादन बढ़ाने में ख़ुशी होगी।”

इन कैदियों को हैंडलूम के संचालन का प्रशिक्षण दिया जाता है। Covid ​​-19 से पहले, वे साड़ी, बेडशीट और कुर्ते बनाते थे, जिन्हें स्थानीय बाजार में बेचा जाता है। इन कपड़ों की बिक्री से मिले सारे पैसे उनके बीच बांट दिए जाते हैं।

इसी प्रकार, देवरी में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत काम करने वाले एक महिला स्व-सहायता समूह ने जिला प्रशासन के अनुरोध पर 10 दिन पहले मास्क का निर्माण शुरू किया। कलेक्टर के अनुसार, एक मास्क की कीमत 10 रुपये है और इन 25 प्रशिक्षित कारीगरों द्वारा 10,000 से अधिक मास्क बनाए गए हैं।

इन मास्क को स्थानीय दुकानों और फार्मेसी दुकानों को बेचा जा रहा है। ये महिलाएं एक दिन में 800 मास्क बना रहीं हैं।

Women SHG workers making face masks.

हैंड सैनीटाइज़र के लिए, जिला प्रशासन ने सागर में स्थित एक एक स्थानीय डिस्टिलरी के मालिक से बात की है। वह कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी के प्रावधानों के तहत बड़े स्तर पर इसके निर्माण के लिए तैयार हैं और वो भी मुफ्त में।

जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी हैंड सैनीटाइज़र के निर्माण को सुपरवाइज कर रहे हैं ताकि यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सामग्री के अनुसार बनें, जिसमें हाइड्रोजन पेरोक्साइड, अल्कोहल और ग्लिसरॉल शामिल हैं।

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अब तक, डिस्टिलरी ने 300 लीटर सैनीटाइज़र तैयार किया है, जिसे स्थानीय क्लीनिकों द्वारा उपलब्ध कराये गए कैन में पैक किया गया है। इसे सबसे पहले आइसोलेशन वार्डों, अस्पतालों, फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और पुलिस के लिए भेजा गया है।

“हमारे अस्पतालों में, जिनमें आर्मी हॉस्पिटल भी शामिल हैं, सैनीटाइज़र को पर्याप्त मात्रा में स्टॉक करके रखा गया है। हम सैनीटाइज़र के लिए कोई पैसे नहीं दे रहें हैं इसलिए हम इसे बेचेंगे नहीं। हम इसे जल्द ही एक्साइज दुकानों के ज़रिए सप्लाई करेंगे, जहां से लोग इसे सब्सिडाइज्ड मूल्य पर खरीद सकते हैं। फिलहाल हम इसे अस्पतालों, सेना चिकित्सा केंद्र को दे रहें हैं, जो एक बड़े पैमाने पर आइसोलेशन वार्ड स्थापित कर रहें हैं। हम इसे स्थानीय पुलिस को भी दे रहें हैं,” उन्होंने आगे कहा।

DC Preeti Nayak overseeing preparations.

इसी बीच, स्थानीय प्रशासन की मदद से स्थानीय अस्पतालों में डिसइंफेक्ट्स(रोगाणुनाशक) स्टॉक किए गए हैं और साथ ही, हॉस्पिटल में अतिरिक्त बेड भी लगवाए हैं ताकि आपातकालीन स्थिति को संभाला जा सके।

फिलहाल, जिला COVID-19 से जूझने के लिए अच्छी तरह से तैयार है, और जिले में किसी भी संभावित महामारी को रोकने के लिए सार्वजनिक साधनों का ही इस्तेमाल किया गया है।

मूल लेख: रिनचेन नोरबू वांगचुक

संपादन – अर्चना गुप्ता


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