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यूपी के इस आईएएस ने बाजार से आधी कीमतों पर बनायी टॉप-क्वालिटी पीपीई किट!

भारत में कोविड-19 के मामलों में तेजी से वृद्धि के साथ ही देश की स्वास्थ्य प्रणाली कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है जिसमें इस संकट से निपटने के लिए फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए सबसे जरुरी चीजों में से एक पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव एक्विपमेंट) किट भी है।

लेकिन यहां कई समस्याएं हैं – देश में इन सुरक्षा किटों की भारी कमी के कारण स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा रही है। इसके अलावा कई निर्माता कंपनियां घटिया और नकली उत्पाद बना रही हैं जिनकी बाजार में बाढ़ आ गई है। लेकिन जो सच में विश्वसनीय और प्रभावी है, उसकी कीमत काफ़ी अधिक है।

हालांकि प्रशासन को कम समय में किफायती लेकिन प्रभावी उपाय की तलाश थी। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से तटवर्ती जिले ने इसके लिए कदम आगे बढ़ाया। आईएएस अधिकारी अरविंद सिंह की देखरेख में लखीमपुर खीरी में ग्रामीण महिलाओं ने मिलकर बड़े पैमाने पर ग्लोबल स्टैंडर्ड पीपीई किट बनाया जिसकी चारों तरफ ख़ूब तारीफ हो रही है।

यहां तक कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भारतीय सेना ने अपने अंतर्गत आने वाले कोविड-19 अस्पतालों में इन पीपीई किटों के थोक सप्लाई का आर्डर दिया है।

लखीमपुर खीरी के मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) अरविंद सिंह ने द बेटर इंडिया को बताया, ‘हर कोई यह सोचकर हैरान है कि गाँव की वंचित और शोषित महिलाओं द्वारा डिजाइन किए गए उत्पाद की क्वालिटी को इतना बड़ा बेंचमार्क कैसे हासिल हुआ जो कि अनुभवी निर्माता कंपनियां भी नहीं कर पायीं?

वक्त के साथ चलना

CDO Arvind Singh

अरविंद सिंह बताते हैं, ‘हमारा जिला बहुत विकसित नहीं है और यहां मल्टी स्पेशियल्टी हेल्थकेयर सुविधाओं की कमी है। इसलिए कोविड-19 के मामले बढ़ने पर स्वास्थ्य कर्मियों की टीमों को तत्काल सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात कर दिया गया।’

हर टीम में 25 सदस्य थे, जिनमें डॉक्टर, नर्स, फार्मासिस्ट, एम्बुलेंस ड्राइवर और चौकीदार शामिल थे जो दिन में दो शिफ्टों में काम करते थे। इस दौरान वे कोरोना वायरस मरीजों के सीधे संपर्क में आ रहे थे। इनके अलावा मरीजों को भोजन पहुंचाने वालों के साथ ही अस्पताल और क्वारंटाइन सेंटर की सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों को भी संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने की जरुरत थी।

“मुझे लगा कि हमारे सभी फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को तत्काल पीपीई किट की आवश्यकता है। इसकी मांग बढ़ती ही जा रही थी, लेकिन देशभर में लॉकडाउन के कारण किट जुटाने में काफी मुश्किलें आ रही थी। सौभाग्य से हमने 25 मार्च को लॉकडाउन होने से कुछ दिन पहले ही स्वंय-सहायता समूहों को स्वदेशी किट के निर्माण में लगा दिया था। ”

अपनी टीम के साथ बैठकर सिंह ने जल्द से जल्द कच्चे माल की खरीद के लिए कोल्ड कॉलिंग सप्लायर को काम पर लगाया। उनकी टीम ने क्वालिटी, डिजाइन, प्रोसेस के साथ-साथ इस पहल में शामिल महिलाओं की कार्यक्षमता सुधारने पर भी विशेष ध्यान दिया। इस पहल को ‘ऑपरेशन कवच’ नाम दिया गया।

Women at SHGs manufacturing the PPE kits

एक बार जब कच्चा माल जमा हो जाता तब महिलाओं को किट के डिजाइन के लिए काफी सावधानीपूर्वक प्रशिक्षित किया जाता था, जिसमें पॉलीप्रोपिलीन कवरॉल, चश्मे, फेस शील्ड, हेडगियर्स, मास्क, दस्ताने और जूतों के कवर बनाने की ट्रेनिंग दी जाती थी।

अरविंद सिंह रोजाना केंद्रों पर जाते थे और बहुत बारीकी से डिजाइन की जांच करते थे। लगभग बीस बार जांच के बाद प्रोडक्ट को फाइनल किया गया। कड़ी मेहनत रंग लायी और स्वास्थ्य विभाग उनके डिजाइन से बहुत प्रभावित हुआ।

फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मियों, सेना के अधिकारियों और पुलिस की मदद

अब तक लखनऊ के नॉर्दर्न कमांड्स आर्मी बेस हॉस्पिटल ने ऑपरेशन कवच को 2000 पीपीई किट का ऑर्डर दिया है। ब्रिगेडियर एन रामाकृष्णन, सिंह के डिजाइन से काफी संतुष्ट थे और उन्होंने पीपीई के थोक ऑर्डर को तुरंत मंजूरी दे दी।

41 वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड के लखनऊ छावनी ने 52 किट का ऑर्डर दिया है, वहीं कुमाऊं इंदौर डिवीजन ने 20 किट जबकि सशस्त्र सीमा बल ने 30 पीपीई किट का ऑर्डर दिया है। ऑर्डर का एक बड़ा हिस्सा पहले ही भेजा जा चुका है।

प्रत्येक किट की कीमत 490 रुपये है, जो सेना और स्वास्थ्य विभाग के सब-मटेरियल के लिए निजी उद्यमों को देने के मुकाबले आधे से भी कम है। ऑर्डर का भुगतान सीधे एसएचजी बैंक खातों में किया जाता है और इस प्रकार यह महिलाओं को सशक्त बनाता है।

Singh and his team supervising the work

अरविंद सिंह बताते हैं, “वर्तमान में जिले के 6 ब्लॉकों, लखीमपुर खीरी, ईसानगर, निघासन, पलिया, गोला और मोहम्मदी में 28 एसएचजी की लगभग 175 महिलाएं काम कर रही हैं। हम इन सभी केंद्रों पर सभी मानक सैनिटरी प्रोटोकॉल और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं, साथ ही इन केन्द्रों को रोजाना दो बार डिसइंफेक्टेड (कीटाणुमुक्त) भी किया जाता है। खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) पूरे ऑपरेशन की निगरानी करते हैं, लेकिन फिर भी मैं हर दिन प्रत्येक केंद्र का दौरा करने की कोशिश करता हूं।’

अरविंद सिंह 2015-बैच के आईएएस ऑफिसर हैं और उन्होंने आईआईटी-आईआईएम से पढ़ाई की है। उन्हें यूपीएससी की परीक्षा में 10वां रैंक हासिल किया था। उन्हें दक्षिण कोरिया और हांगकांग में टेक्निकल रिसर्च में भी काम का अनुभव रहा है। उनका कहना है कि एक बड़ी जनसंख्या में महामारी का डर फैलने से पहले ही उन देशों में कोरोना वायरस की स्थिति के बारे में जागरुकता ने भारत में होने वाली कोरोना की त्रासदी से लड़ने में उनकी काफी मदद की।

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यही वजह है कि ऑपरेशन कवच को इतनी अनोखी सफलता मिली है, जिससे हमारे फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को हर संभव तरीके से मदद मिल रही है।

मूल लेख: सायंतनी नाथ


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