स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) द्वारा 31 मार्च को जारी दिशा-निर्देशों में नोवेल कोरोनोवायरस (कोविड-19) के मरीजों की पुष्टि करने के लिए एंटी-मलेरियल दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और एंटीबैक्टीरियल एजिथ्रोमाइसिन वितरित करने के लिए कहा गया था। बाद में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन केवल हेल्थ वर्कर को संक्रमण से बचाने और कोरोना से संक्रमित मरीजों के संपर्क में आए लोगों को दिया जाना चाहिए।
पिछले महीने के अंत में जारी किए गए संशोधित दिशा-निर्देशों ने कहा गया है, “वर्तमान में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार कोरोना वायरस से निपटने में कोई विशेष एंटीवायरल प्रभावी साबित नहीं हुए हैं। हालांकि उपलब्ध जानकारी (अनकंट्रोल्ड क्लिनिकल ट्रॉयल) के आधार पर इन दवाओं को गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों में ऑफ-लेबल इंडिकेशन और आईसीयू मैनेजमेंट की जरुरत के रूप में दिया जा सकता है। 400 मिलीग्राम हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन एक दिन तक दो बार, 200 मिलीग्राम को चार दिनों तक दिन में दो बार, 500 मिलीग्राम एजिथ्रोमाइसिन के कॉम्बिनेशन के साथ 5 दिनों तक दिन में एक बार देना चाहिए। “
भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का निर्यात करने का वादा किया है। सोशल मीडिया पर भारत के इस कदम की कुछ लोगों ने खूब तारीफ की है जबकि कुछ लोगों ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि भारत को पहले अपनी घरेलू आबादी की जरुरतों को पूरा करने पर ध्यान देना चाहिए।
द बेटर इंडिया ने जाने माने बायोकेमिस्ट और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) के पूर्व निदेशक प्रोफेसर जी पद्मनाभन से बात की, जो मलेरिया पर अपने काम के लिए जाने जाते हैं। यहां पेश है हाइड्रोक्लोरोक्विन दवा, मलेरिया पर उनके शोध और कोविड -19 के इलाज में इसकी संभावित प्रभावकारिता से जुड़ी हमारी बातचीत के कुछ अंश।
Professor G Padmanabhan (Source: Wikimedia Commons)
1) भारत में मलेरिया के इलाज के लिए इस दवा का इस्तेमाल पहली बार कब किया गया था?
क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल दूसरे विश्व युद्ध में संयुक्त राज्य द्वारा दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्रों में मलेरिया से अपनी सेना की रक्षा के लिए किया गया था। आजादी के समय भारत में 330 मिलियन की कुल आबादी में 75 मिलियन मलेरिया के मामले थे। मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम की शुरुआत आजादी के बाद और 1950 और 1960 के दशक में हुई थी। 1970 के दशक में मरीजों के इलाज के लिए क्लोरोक्वीन और मच्छरों को नियंत्रित करने के लिए डीडीटी के उपयोग से यह संख्या 100,000 से नीचे आ गई। इसके बाद हालांकि, डीडीटी का उपयोग रोक दिया गया था और मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम भी आगे नहीं बढ़ पाया और बीमारी का प्रकोप दोबारा बढ़ गया। वर्तमान में भारत में प्रति वर्ष मलेरिया के लगभग 2 मिलियन मामले सामने आते हैं।
2) भारत इस दवा के उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र क्यों है?
भारत पूरी दुनिया के लिए जेनेरिक दवाएं (पेटेंट से बाहर) बनाता है और इसे ‘दुनिया की फार्मेसी’ कहा जाता है। जो दवाएं पेटेंट से बाहर हैं, वे भारत में बहुत सस्ती दरों पर बनाई जाती हैं और निर्यात की जाती हैं। क्लोरोक्वीन / हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन इसी श्रेणी से संबंधित है।
एक करोड़ टैबलेट (कोविड-19 के मरीजों, आईसीयू केसेज और अधिक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क के जोखिम से निपटने वाले हेल्थ वर्कर्स सहित) की हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (HCQ) की अनुमानित आवश्यकता के खिलाफ, उपलब्धता अब तक 3.28 करोड़ टैबलेट है, जो कि देश में घरेलू उपयोग के लिए आवश्यक के 3 गुने से अधिक है। 10 अप्रैल को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने दावा किया है कि इसके अलावा, लगभग 2-3 करोड़ से अधिक का स्टॉक किया गया है।
3) क्या आप हमें मलेरिया पर अपने शोध के बारे में संक्षेप में बता सकते हैं? आपके सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्षों में से कुछ के बारे में बताइये?
मलेरिया पर मेरा शोध दो क्षेत्रों में हुआ है। पहला शोध हीम नामक कण पर किया गया है (हीमोग्लोबिन के साथ जुड़ा हुआ)। हीम मलेरिया पैरासाइट बायोलॉजी में एक मुख्य भूमिका निभाता है। जब परजीवी लाल कोशिका में बढ़ रहा होता है तो यह अमीनो एसिड और हीम का निर्माण करता है और हीमोग्लोबिन को कम कर देता है। परजीवी अपने स्वयं के प्रोटीन संश्लेषण के लिए अमीनो एसिड का उपयोग करता है। अन्य घटक हीम की अधिक मात्रा परजीवी के लिए बहुत विषाक्त होती है। परजीवी मुक्त हीम को हेमोजोइन नामक एक बहुलक में परिवर्तित करता है जो फूड वेक्यूल में इनर्ट ब्राउन पिगमेंट है। क्लोरोक्वीन मुक्त हीम को बांधता है और निष्क्रिय पिगमेंट में इसके रूपांतरण को रोकता है। मुक्त हीम के जमा होने से परजीवी की मृत्यु हो सकती है।
हमने निष्कर्ष पाया कि परजीवी हीमोग्लोबिन से इसे प्राप्त करने के अलावा अपने स्वयं के एंजाइम और जीन का उपयोग करके हीम बनाता है। इस रहस्य का आंशिक रूप से उत्तर दिया जा सकता है, जब हमने पाया कि यदि परजीवी अपना हीम नहीं बनाता है, तो यह मच्छर में विकसित नहीं हो सकता है। हम मलेरिया के प्रसार को रोकने के लिए यही रास्ता अपना रहे हैं।
दूसरे प्रोजेक्ट में हम प्राकृतिक कणों पर एंटीमलेरियल एक्टिविटी देख रहे हैं। हमने पाया है कि हल्दी में पाया जाने वाले करक्यूमिन में एंटीमलेरियल एक्टिविटी होती है। विशेष रूप से, करक्यूमिन और आर्टीमिसिनिन डेरिवेटिव (एआरटी) का कॉम्बिनेशन सामान्य और सेरेब्रल मलेरिया को ठीक करने के लिए चूहों पर बहुत प्रभावी है। हाल ही में, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने मलेरिया रोगियों के इलाज के लिए एआरटी + करक्यूमिन की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए एक क्लिनिकल ट्रायल को मंजूरी दी है और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च (एनआईएमआर) परीक्षण कर रहा है।
सार्स-2 इंफेक्शन से बचने के लिए करक्यूमिन का संयुक्त फूड सप्लीमेंट के रुप में मूल्यांकन काफी दिलचस्प होगा।
4) इसे एक ऐसी दवा के रूप में इस्तेमाल किया गया है जिसका उपयोग कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिए किया जा सकता है, हालांकि कई लोग इस दावे को झूठा बता रहे हैं। उचित परीक्षण के बिना क्या इसका इस्तेमाल करना सुरक्षित है?
चीनी और फ्रांसीसी ग्रुप्स द्वारा क्लोरोक्विन फॉस्फेट और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के क्लिनिकल ट्रायल में पाया गया है कि यह दवा प्रभावी है। फ्रांसीसी समूह ने यह भी पाया है कि एचसीक्यू एजिथ्रोमाइसिन के कॉम्बिनेशन के साथ अधिक प्रभावी है। आलोचना का कारण यह है कि क्लिनिकल ट्रायल उचित अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरुप नहीं हैं। किसी भी अन्य दवा के अभाव में, वैक्सीन की उपलब्धता में एचसीक्यू को अमेरिका और कुछ अन्य देशों में अपनाया गया है। हाल ही में भारत ने भी इस कॉम्बिनेशन (टीवी न्यूज) को मंजूरी दी है। हालांकि, यूनाइटेड किंगडम अभी क्लिनिकल ट्रायल के रिजल्ट का इंतजार कर रहा है। एक न्यूज रिपोर्ट के अनुसार कि स्वीडिश अस्पतालों ने इसके साइड इफेक्ट्स को देखते हुए इसका उपयोग करना बंद कर दिया है।
फ्रेंच शोधकर्ताओं के एक समूह द्वारा किए गए अध्ययन को 20 मार्च को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंटीमाइक्रोबियल एजेंट्स में प्रकाशित किया गया था। क्लोरोक्विन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को SARS-CoV-2 पर प्रभावी पाया गया है और दावा किया गया है कि चीनी कोविड-19 मरीजों में भी यह प्रभावी होगा। हालांकि उनके क्लिनिकल प्रजेंटेशन के आधार पर एजिथ्रोमाइसिन को उपचार में शामिल किया गया था। छह एसिम्पटोमैटिक मरीज के छोटे सैंपल साइज, 22 अपर रिस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन और 8 लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन लक्षणों के बावजूद “हमारे सर्वे से पता चलता है कि कोविड -19 रोगियों में वायरल लोड में कमी / गायब होने के साथ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन उपचार महत्वपूर्ण रूप से जुड़ा हुआ है और इसका प्रभाव एज़िथ्रोमाइसिन द्वारा बढ़ता है।
5) क्या इस ड्रग के बारे में कोई खास बात या विशेषता है जिसे भारत के लोगों को कोविड -19 के इलाज में इसकी प्रभावकारिता के बारे में अफवाहों को देखते हुए जानना चाहिए?
सभी परिणाम मलेरिया परजीवी के प्रभावी इलाज के प्रयोग पर आधारित हैं। दवा एंडोसोम (मलेरिया परजीवी में फूड वैक्यूल के बराबर) में प्रवेश कर सकती है और पीएच को बढ़ा सकती है। एंडोसोम सामान्य रूप से अम्लीय होता है और वायरस को रेप्लिकेट के लिए इसकी आवश्यकता होती है। जब पीएच बढ़ता है, तो दवा एंडोसोम में फंस जाती है (यह बाहर नहीं आ सकती) और वायरल मल्टीप्लिकेशन को रोकती है। हाल ही में, यह भी प्रस्तावित किया गया है कि हीमोग्लोबिन (लाल कोशिका के बाहर) से प्राप्त मुक्त हीम एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम, एआरडीएस के लिए जिम्मेदार है। जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है, एचसीक्यू मुक्त हीम को बांध सकता है और टॉक्सिसिटी से राहत दे सकता है।
(Image Courtesy indiamart)
एंटीमलेरियल के बीच क्लोरोक्वीन को काफी सुरक्षित माना जाता है और यह कई दशकों से इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, क्लोरोक्वीन रेसिस्टेंस फाल्सीपेरम मलेरिया में व्यापक है, हालांकि यह अभी भी विवाक्स मलेरिया में प्रभावी है। फाल्सीपेरम मलेरिया के लिए एआरटी-बेस्ड कॉम्बिनेशन पहली पसंद है है। कोविड -19 के मामले में, एचसीक्यू उपचार के दुष्प्रभाव पूरी तरह से ज्ञात नहीं हैं। चूंकि, कुछ देशों ने इसे अपना लिया है और परीक्षण कर रहे हैं, जल्द ही प्रभावकारिता और सुरक्षा के पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध होंगे। जनता को जागरूक करने की आवश्यकता है कि यह एक प्रिस्क्रिप्शन दवा है और डॉक्टरों को यह तय करना चाहिए कि इसका उपयोग कब करना है। अपनी मर्जी से इस दवा का उपयोग करने से बचने की आवश्यकता है।