हिमाचल प्रदेश में चीड़ के पेड़ बड़े पैमाने पर हैं और गर्मी के मौसम में यहाँ आग लगना सामान्य बात है। इस वजह से पर्यावरण को भारी नुकसान होने के साथ-साथ आम जनजीवन भी काफी प्रभावित होता है। ऊँचे पहाड़ों और खूबसूरत वादियों के बीच एक छोटे से शहर दगशाई में पले-बढ़े अभिनव तलवार ने एक स्टार्टअप के जरिए इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास किया है।
अभिनव कहते हैं, “मैंने अपने जीवन में इस समस्या को करीब से समझा है। खासकर, गर्मी का मौसम अधिक कष्टकारी होता है। क्योंकि, इस दौरान पेड़ से कांटे गिरते हैं, जो अत्यधिक ज्वलनशील होते हैं और एक छोटी सी चिंगारी पूरे जंगल को तबाह कर देती है। जिससे बेहिसाब नुकसान होता है।”
एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, कई स्थानीय समुदायों द्वारा अपशिष्ट जलाने और स्लेश-एंड-बर्न खेती का अभ्यास करने के कारण परिस्थितियाँ और कठिन हो जाती है। राज्य के वन विभाग के एक अध्ययन के अनुसार साल 2017-18 में, जंगल में आग लगने के कुल 1,168 मामले सामने आए, जिससे 9,400 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि प्रभावित हुई।
इसके अलावा, इन काँटों के एंटी माइक्रोबियल गुणों के कारण जंगल में पेड़-पौधों के विकास में भी बाधा होती है।
अभिनव ने निकाला समाधान
इस समस्या को देखते हुए अभिनव ने अपने साथी, मैत्री वी के साथ मिलकर साल 2019 में, अपने वेंचर वाशिन कम्पोजिट्स को शुरू किया, जिसके तहत उनका उद्देश्य इन काँटों से पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों को बनाने का है।
इस जोड़ी का इरादा न सिर्फ पर्यावरण की रक्षा करना है, बल्कि नियमित रूप से उपयोग की जाने वाली वस्तुओं में प्लास्टिक के इस्तेमाल को भी कम करना है।
दिल्ली स्थित यह स्टार्टअप चीड़ के इन काँटों से अब तक बायोडिग्रेडेबल फेस शील्ड, चम्मच, मग से लेकर प्लेट्स, बाउल्स और ग्लास जैसी कई अविश्वसनीय उत्पादों का निर्माण कर चुकी है और आज उनके उत्पादों की माँग पूरे देश में है।
अभिनव और मैत्री अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं। अभिनव, जो कि वर्तमान समय में कंपनी के सीईओ हैं, उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग किया है और मेटलर्जी में गहरा अनुभव रखते हैं। जबकि, मैत्री जो कि आर्ट्स ग्रेजुएट हैं और उनके पास ऊर्जा क्षेत्र में काम करने का अनुभव है, फिलहाल कंपनी की सीओओ हैं।
इतने अलग पृष्ठभूमि से आने के बावजूद दोनों के विचार जंगल की आग के समाधान को खोजने के लिए एक बिंदु पर मिले और साल 2019 में उन्होंने अपनी सेविंग्स से वाशिन कम्पोजिट्स को शुरू किया।
इस कड़ी में मैत्री कहतीं हैं, “शुरूआती दिनों में, हमने बाँस, गेहूँ और चावल की भूसी, जैसी कई सामग्रियों से उत्पाद बनाए। लेकिन, हमें एहसास हुआ कि इसे रिसाइकल या अपसाइकल करना आसान है। वहीं, हमने देखा कि चीड़ के काँटों को लेकर कोई रचनात्मक काम नहीं कर रहा है – राल (रेसिन) जैसे ज्वलनशील उत्पादों को बनाने के अलावा। इसी को देखते हुए हमने कुछ अलग करने का विचार किया। हम कुछ ऐसा बनाना चाहते थे, जिसका इस्तेमाल दैनिक रूप से हो सके।”
हालांकि वाशिन की यात्रा चीड़ के काँटों से बायो-एग्रो खाद और हेडबैंड को बनाने से शुरू हुई, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने चीड़ के काँटों से इको-फ्रेंडली, बायोडिग्रेडेबल फेस शील्ड बना दिया।
अभिनव बताते हैं, “हम मार्च से फेस शील्ड बना रहे हैं। बायोडिग्रेडेबल फेस शील्ड के हेडबैंड को चीड़ के काँटों से बनाया जाता है। जबकि, इसका सामने वाला हिस्सा प्लास्टिक का ही है। क्योंकि, बायोमास अपारदर्शी होता है। जिससे देखा नहीं जा सकता है। यह जंगलों में आग की समस्या से निजात दिलाने के साथ-साथ प्लास्टिक के व्यवहार को कम कर, पर्यावरण संरक्षण में भी उल्लेखनीय योगदान कर सकता है।”
मैत्री बताती हैं, “हम अभी तक एक लाख से अधिक फेस शील्ड बेच चुके हैं। इसके लिए हमने मार्केट को दो तरीके से एप्रोच किया है। पहला तो यह है कि अमेजन के जरिए अपने उत्पादों को ग्राहकों तक सीधे पहुँचा रहे हैं, जबकि दूसरे के तहत हम इंस्टीट्यूशनल सेल को बढ़ावा दे रहे हैं। हमें उड़ीसा सरकार और बेंगलुरु नगर पालिका की ओर से भी ऑर्डर मिल चुके हैं।”
फेस शील्ड बनाने के लिए चीड़ के काँटों को स्थानीय श्रमिकों द्वारा एकत्र किया जाता है। फिर, कॉम्पैक्ट ब्लॉकों में पैक करने के बाद अहमदाबाद, मैसूरु और बड़ौदा के मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में भेजा जाता है। वहीं, मोल्डिंग से लेकर पैकेजिंग तक का काम वाशिन कम्पोजिट्स के प्रोडक्शन यूनिट में किया जाता है।
वाशिन कम्पोजिट्स के उत्पाद अमेजन पर तो उपलब्ध हैं ही, कंपनी कई बड़े वितरकों के जरिए जल्द ही बी 2 बी सेल्स में अपने दायरे को बढ़ाने की योजना बना रही है। उनका उद्देश्य अपने उत्पादों को आम लोगों तक आसानी से पहुँचाने की है, ताकि यह अधिक व्यावहारिक हो और प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने में मदद मिले।
मैत्री अंत में कहती हैं, “यदि हम अपने कार्यों से जंगल में आग की घटना को कम कर सकते हैं, तो यह हमारी बड़ी उपलब्धि होगी। पर्यावरण की रक्षा की जिम्मेदारी हम सब की है, चाहे हम उत्पादक हों या उपभोक्ता। इस नवाचार के जरिए, एक बदलाव की शुरूआत कर रहे हैं।”
यह भी पढ़ें – खेतों में माँ-बाप को दिन-रात मेहनत करते देख किए आविष्कार, राष्ट्रपति से मिला सम्मान
संपादन – जी. एन. झा
मूल लेख – ANANYA BARUA