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मिलिए उस फर्म से जो कोरोना वैक्सीन के लिए कोल्ड स्टोरेज चेन विकसित कर रही है!

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आज कोरोना महामारी के कारण पूरी मानव जाति सहमी हुई है। दुनिया के कई देशों ने इस खतरनाक वायरस से निजात पाने की उम्मीद में, वैक्सीन लगाने का अभियान शुरू कर दिया है। 

भारत में भी, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, भारत बायोटेक और फाइजर जैसी तीन कंपनियों ने भारत सरकार के समक्ष अपनी-अपनी वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी के लिए आवेदन किया है और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय उनके इस आग्रह पर विचार कर रही है। 

हालांकि, यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि देश में टीकाकरण की व्यवस्था किस तरीके से की जाएगी और सुदूरवर्ती क्षेत्रों में वैक्सीन कैसे पहुँचाए जाएंगे?

ऐसे में, इस टीके के सुरक्षित भंडारण और परिवहन को लेकर भी कई चिन्ताएं उभर रही हैं, लेकिन लक्जमबर्ग की एक चिकित्सा उपकरण निर्माता कंपनी ‘बी मेडिकल सिस्टम’ ने इसका समाधान ढूंढ लिया है।

इस कंपनी ने अब तक, 140 देशों को भंडारण और परिवहन प्रौद्योगिकी की आपूर्ति सुनिश्चित की है और फिलहाल, भारत में भी अपना काम शुरू करने की तैयारी कर रही है।

कंपनी के बारे में

बी मेडिकल सिस्टम की शुरुआत 40 साल पहले हुई। यह मेडिकल रेफ्रिजरेशन उपकरणों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी है। यह कंपनी अल्ट्रा-लो टेम्प्रेचर (यूएलटी) फ्रीजर, रेफ्रिजरेटर, परिवहन उपकरण और रिमोट मॉनिटरिंग सिस्टम सहित प्रयोगशाला, ब्लड बैंक और फार्मेसी के लिए कई तरह के अभिनव समाधान पेश करती है।

इस कड़ी में जेसल देसाई, जो कि एक्सएलआरआई जमशेदपुर से एमबीए करने के बाद बी मेडिकल सिस्टम के साथ काम कर रहे हैं और फिलहाल कंपनी के डिप्टी सीईओ हैं, ने द बेटर इंडिया को बताया, “हम दुनिया में एक जानी मानी कंपनी हैं। हमारे तकनीकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा रिकमेंड किया जाता है। हम मेडिकल रेफ्रिजरेशन उपकरणों को बनाते हैं, जो सुरक्षा, दक्षता और विश्वसनीयता के मामले में सर्वोत्तम होते हैं। डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार उपकरण बनाने के अलावा, हमने कई ऐसे उपकरण भी बनाए, जो मानकों को निर्धारित करते हैं।”

पिछले 20 वर्षों में, कंपनी ने व्यापक पैमाने पर वैक्सीन कोल्ड स्टोरेज चेन को विकसित किया है, जिससे 300 मिलियन से अधिक बच्चों को टीका लगाने में मदद मिली। 

जेसल देसाई

सितंबर 2020 में, कंपनी ने बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (BMC) के साथ एक साझेदार के तौर पर, बीवाईएल नायर चैरिटेबल अस्पताल को स्टोरेज दान किया। 

इसकी एक खास विशेषता यह है कि यूनिट में कभी जंग नहीं लगता है, जो कि मुंबई में उच्च आर्द्रता को देखते हुए महत्वपूर्ण है। 

हालांकि, फिलहाल बी मेडिकल सिस्टम की निर्माण इकाई सिर्फ लक्जमबर्ग में है। लेकिन, भारत और लक्जमबर्ग के प्रधानमंत्री के बीच द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान कंपनी को, यहाँ कोल्ड स्टोरेज चेन विकसित करने के लिए आमंत्रित किया गया। इसके तहत सबसे पहला स्टोर गुजरात में बनाया जाएगा।

इस कड़ी में, एएनआई के साथ एक इंटरव्यू के दौरान, कंपनी के सीईओ एल. प्रोवोस्ट ने कहा कि यह पहली बार है, जब वे अपने देश के बाहर अपने यूनिट को विकसित करने जा रहे हैं।

जेसल कहते हैं, “हमें प्रौद्योगिकी के स्थानांतरण और कारखाने को बनाने में नौ महीने से एक वर्ष लगेंगे। हम यहाँ उपकरणों को बनाने का काम मुम्बई की एक कंपनी, पारेख इंटीग्रेटेड सर्विस के साथ मिल कर शुरू करेंगे।”

तकनीक के विषय में

जेसल कहते हैं कि वैक्सीन के स्टोरेज में उपयुक्त तापमान को नियंत्रित करना अनिवार्य है। इसमें थोड़ी सी चूक की वजह से पूरा वैक्सीन बेकार हो सकता है।

उत्पाद को लेकर जेसल कहते हैं कि उनकी कंपनी को कई तरह के वैक्सीन से निपटने का अनुभव है। उनके उत्पाद की एक खासियत यह है कि एक उपकरण का इस्तेमाल कई टीकों को स्टोर करने के लिए किया जा सकता है। 

इसके अलावा, उनके कोल्ड स्टोरेज सिस्टम कई आकार के होते हैं और ये बिजली, गैस या केरोसिन पर भी काम कर सकते हैं।

वह कहते हैं, “हमारे मेडिकल कोल्ड स्टोरेज यूनिट सभी प्रकार के टीकों के लिए उपयुक्त है। इसमें इबोला वैक्सीन (-80 डिग्री सेल्सियस) से लेकर -70 डिग्री सेल्सियस पर फाइजर वैक्सीन और -20 डिग्री सेल्सियस पर मोडेर्ना वैक्सीन को संग्रहित किया जा सकता है।”

इसके अलावा, उनके पास एक ऐसा सोलर सोल्यूशन भी है, जो धूप न होने पर भी तापमान को एक महीने तक बनाए रख सकता है।

हालांकि, भारत में वैक्सीन वितरण के लिए अभी किसी तारीख की घोषणा नहीं की गई है। इसे लेकर जेसल कहते हैं, वैक्सीन को उत्पादन जब भी शुरू होता है। उनकी फर्म अपने सेवाओं को शुरू कर देगी। 

वह बताते हैं कि कंपनी फिलहाल सिर्फ गुजरात में अपनी इकाई को विकसित पर ध्यान केन्द्रित कर रही है और भारत के किसी अन्य राज्य या दूसरे दूसरे में इकाई को विकसित करने की कोई योजना नहीं है।

कंपनी के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।

मूल लेख  – ROSHINI MUTHUKUMAR

संपादन –  जी. एन. झा

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