Site icon The Better India – Hindi

मेड इन इंडिया ई-ऑटो, कम समय में तय करें अधिक दूरी, डीजल-बैटरी से भी है सस्ता!

Hyderabad Startup

हैदराबाद स्थित RACEnergy नाम की कंपनी डीज़ल ऑटो-रिक्शा को इलेक्ट्रिक व्हीकल (Electric Auto) में बदलने के लिए जानी जाती है। कंपनी (Hyderabad Startup) ने 2 हज़ार से अधिक ऑटो-रिक्शा चालकों के अनुभव को जानने के बाद, एक बैटरी-स्वैपिंग मॉडल को विकसित किया है, जिसमें उन्हें 2 वर्ष लगे। यह एक ऐसी तकनीक है, जो यात्रियों को एक बेहतर अनुभव देने के साथ ही चालकों के जीवन को भी बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।

कंपनी के सी.ई.ओ. अरुण श्रेयस बताते हैं, “डीज़ल ऑटो रिक्शा को इलेक्ट्रिक व्हीकल बनाने में करीब 50 हज़ार रुपए की लागत आती है। यह सस्ता है, क्योंकि इसे ‘बैटरी-स्वैपिंग मॉडल’ पर संचालित किया जाता है। जो चालक अपने वाहन को ई.वी. में परिवर्तित करते हैं, उन्हें बैटरी के लिए पहले कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती। चालकों को इसे स्वैप करने के लिए ‘बैटरी-स्वैपिंग स्टेशन’ पर जाना पड़ता है, जहाँ वे उपयोग की गई एनर्जी की कीमत चुकाते हैं।”

वह आगे बताते हैं, “आमतौर पर आई.सी.ई. ऑटोरिक्शा की कीमत 2 से 2.5 लाख रुपए होती है। इसे बदलने में अधिकतम इसका पाँचवां हिस्सा ही खर्च होता है। वाहन के कन्वर्ट हो जाने के बाद, चालकों को इसे चलाने में 40-50 फ़ीसदी तक कम खर्च आता है। चालकों को किट खरीदने में जो खर्च होता है, उसे अपनी सेविंग के अनुसार 12-15 महीनों में रिकवर किया जा सकता है।”

RACEnergy Co-Founders Arun Sreyas Reddy and Gautham Maheswaran (Left).

अरुण ने फिलहाल हैदराबाद में अपने एक बैटरी-स्वैपिंग स्टेशन को स्थापित किया है। उम्मीद है कि अगले 2-3 महीनों में वह ऐसे पाँच और स्टेशनों को शुरू करेंगे। उनके इलेक्ट्रिक किट को दो महीने पहले अंतिम रूप दिया गया था, अब तक उन्हें 300 से अधिक प्री-ऑर्डर मिल चुके हैं। जिसमें उन्होंने 10 वाहनों को कन्वर्ट कर दिया है और अगले कुछ महीनों में सभी ऑर्डरों को पूरा कर दिया जाएगा।

वह कहते हैं, “बैटरी-स्वैपिंग मॉडल में, बैटरी कंपनी द्वारा दी जाती है। जबकि वाहन और ‘रेट्रोफिट किट’ चालक की होती है। वे हमारी बैटरी का इस्तेमाल एक सर्विस के रूप में करते हैं। वाहन मालिकों को इसके प्रबंधन के लिए चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं होती है। इसमें कोई क्लच या गियरबॉक्स नहीं होता है, इसलिए चालक आराम से अधिक दूरी तय कर सकते हैं और पहले की तुलना में अधिक सवारियों को यात्रा करा सकते हैं।”

मूल विशेषताएँ

कोई भी ऑटो चालक आम तौर पर हर दिन करीब 10 से 12 घंटे ड्राइव करते हैं लेकिन, बैटरी-स्वैपिंग का एक लाभ यह भी है कि इसे चार्ज करने में कुछ ही मिनट लगते हैं। जबकि, ‘लिथियम आयन बैटरी’ को चार्ज करने के लिए उन्हें काफी देर तक कतार में रहना पड़ता है।

कंपनी की रिसर्च के मुताबिक, हर बैटरी-स्वैप के साथ इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स 100 किमी तक चलते हैं। जो चालकों की एक दिन की औसत दूरी है। ऐसे कई दिन होते हैं जब वे 80 किमी से 200 किमी से अधिक का दायरा तय करते हैं। ऐसे में, यदि वे फिर से बैटरी-स्वैप करना चाहते हैं, तो उन्हें बस चंद मिनटों का इंतजार ही करना होगा।

Electric Auto Rickshaw

अरुण बताते हैं, “अपनी खास विशेषताओं के कारण यह तीन-पहिया वाहनों के बाजार में एक शक्तिशाली पावरट्रेन साबित होगा। कुछ ही महीनों में, अपने आधिकारिक लॉन्च के दौरान हम मोटर पावर, टॉर्क के संबंध में विशेष विवरणों की घोषणा करेंगे। हालांकि, अभी हम यह बता सकते हैं कि हमारा ऑटो 60 किमी प्रति घंटे की गति से चलने में सक्षम होगा।”

क्यों है बेहतर विकल्प

कंपनी का मानना है कि चार्जिंग निजी वाहनों के लिए बेहतर है। क्योंकि, इसका इस्तेमाल कम होता है और अधिकांश समय यह आपके घर या ऑफिस में रहते हैं। इस तरह, दोनों ही जगहों पर इन्हें काफ़ी आसानी से चार्ज किया जा सकता है।

अरुण का कहना है, “व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए स्वैपिंग तकनीक बेहतर विकल्प है। क्योंकि, चालक अपने वाहनों को चार्ज करने में अधिक समय बर्बाद नहीं कर सकते हैं। रिसर्च के दौरान, मैंने करीब 200 ऑटो चालकों के घरों का दौरा किया और पाया कि उनके घरों की वायरिंग ई.वी. बैटरी को चार्ज करने के लिए सक्षम नहीं है। उनकी स्थिति को देखते हुए यह काम उनके घर में ए.सी. चलाने जैसा होगा।“

वह आगे बताते हैं, “यदि हम शहर में ऐसा चार्जिंग स्टेशन बनाएं, जहाँ  1,00,000 ऑटो को लगाया जा सके, तो इसके लिए जगह की कमी हो जाएगी। ऐसे में, ऑटो-रिक्शा चालकों के लिए स्वैपिंग एक बेहतर विकल्प है। यह सस्ता है और इसमें न्यूनतम निवेश के साथ-साथ समय की भी बचत होती है। साथ ही, स्वैपिंग पेट्रोल या डीज़ल के मुकाबले 50% अधिक सस्ता है।

क्या है स्वैपिंग की प्रक्रिया

स्वैपिंग स्टेशन पर वाहन आने के बाद, ब्लूटूथ वायरलेस सिस्टम के लिए त्रीस्तरीय (तीन स्तर) प्रमाणीकरण प्रक्रिया शुरू की जाती है। 

i. यहाँ सबसे पहले चालकों को एक नंबर जमा करना होता है। 

ii. इसके बाद, सभी जानकारियों को इकट्ठा कर चालक को यह बताया जाता है कि कितनी ऊर्जा का इस्तेमाल किया गया और बिल कितना आया।

iii. उसके बाद वे नकद या प्रीपेड सिस्टम के ज़रिए भुगतान कर सकते हैं। कंपनी द्वारा भुगतान के लिए आर.एफ.आई.डी. सिस्टम को भी विकसित किया जा रहा है।

क्या है भविष्य की योजना

अरुण अपने उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए कुछ मूल उपकरण निर्माता (OEMs) कंपनियों के साथ भी काम कर रहें हैं।

उन्होंने बताया कि, “वे बैटरी स्वैपिंग को लेकर उत्साहित हैं। क्योंकि, उसके बिना बैटरी के ई-ऑटो को काफ़ी सस्ते दर पर बेचा जा सकता है। आने वाले वर्षों में जब स्वैपिंग तकनीक का चलन बढ़ जाएगा तब, पेट्रोल, डीज़ल और सीएनजी ऑटो-रिक्शा की तरह ही, इसके भी कई मानक होंगे। पेट्रोल से डीज़ल में शिफ्ट करने में काफी बदलाव और निवेश की जरूरत होती है लेकिन, एक बैटरी सिस्टम से दूसरे में जाना आसान है।”

मूल लेख – RINCHEN NORBU WANGCHUK

संपादन – प्रीति महावर

यह भी पढ़ें – नागालैंड: छात्रों ने मिनी-हाइड्रो पावर प्लांट लगा, गाँव को बनाया आत्मनिर्भर!

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

electric auto, electric auto, electric auto

Exit mobile version