यह कहानी बिहार के एक ऐसे व्यक्ति की है, जिसने देश के मशहूर मैनेजमेंट संस्थान में पढ़ाई की, बड़ी-बड़ी कंपनियों में ऊंचे ओहदे पर काम किया लेकिन किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक दिन उन्होंने नौकरी छोड़कर किसानी की शुरूआत कर दी। आज प्रोसेसिंग के क्षेत्र में वह लगातार आगे बढ़ रहे हैं।
मूल रूप से बिहार के औरंगाबाद जिला के नवीनगर में रहने वाले राजेश सिंह एक्सएलआरआई जमशेदपुर से मास्टर्स इन एग्री बिजनेस मैनेजमेंट में गोल्ड मेडल हासिल करने के बाद उषा मार्टिन एग्रो लिमिटेड में बतौर कार्यकारी निदेशक काम कर रहे थे।
कृषि आधारित उद्योग में करीब 14 वर्षों तक काम करने के बाद उन्होंने तय किया कि क्यों न खुद का कुछ शुरू किया जाए और इसी सोच के साथ उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी, तब उनका वेतन प्रति माह 1 लाख रुपए से भी अधिक था।
राजेश के इस फैसले से उनके परिवार वाले नाराज भी थे, लेकिन राजेश ने ठान लिया कि उन्हें कुछ अलग करना है।
द बेटर इंडिया से बातचीत के दौरान राजेश बताते हैं, “मैंने साल 2014 में नौकरी छोड़ने के बाद, गया में 45 एकड़ जमीन को लीज पर लिया और करीब 5 लाख रुपए की लागत से अपने वेंचर ‘महात्मा बुद्ध एग्री क्लिनिक एंड एग्री बिजनेस सेंटर’ को शुरू किया।”
इसके तहत, उन्होंने लेमनग्रास, तुलसी और पुदीने का उत्पादन और प्रोसेस कर तेल बनाने का बिजनेस शुरू किया और कुछ ही समय में बाजार में उनके उत्पादों की माँग बढ़ने लगी।
राजेश बताते हैं, “महज 2 वर्षों में, हमसे आस-पास के कई किसान जुड़े। इससे हमारा उत्साह बढ़ा और हमने 2016 में अपने दायरे को बढ़ाने का विचार किया। आज मैं हर दिन 200-300 किलो मशरूम का उत्पादन करने के अलावा बड़े पैमाने पर बेबी कॉर्न की भी खेती करता हूँ।”
फिलहाल, राजेश के पास 3 प्रोसेसिंग यूनिट हैं, जिसके तहत वह हर साल 500 टन से अधिक औषधीय तेल बनाने के साथ-साथ मोरिंगा, बेबी कॉर्न और मशरूम का पाउडर बना कर बिहार के कई जिलों के अलावा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और झारखंड में आपूर्ति करते हैं, जिससे उनका वार्षिक टर्नओवर 1 करोड़ रुपए से अधिक है।
कैसे बनाते हैं औषधीय तेल
राजेश बताते हैं, “मैंने तुलसी, पुदीने और लेमनग्रास का तेल बनाने के लिए अपने एक डिस्टिलेशन यूनिट को स्थापित किया है। इसमें एक 1 टन की टंकी लगी हुई, जिसमें पत्तों को डाला जाता है। इसके ठीक नीचे पान रख कर उसे गर्म किया जाता है। इससे वाष्प बनता है, जिसे एक पाइप के जरिए कंडेनसर में डाला जाता है। यहाँ वाष्प, द्रव के रूप में बदल जाता है और इसमें पानी और तेल, दोनों मिले होते हैं। इन्हें नीचे लगे सेपरेटर की मदद से अलग किया जाता है।”
मोरिंगा पाउडर बनाने की तकनीक
राजेश ने मोरिंगा पाउडर बनाने के लिए अपने पास एक सोलर ड्रायर रखा है, जिसमें मोरिंगा की पत्तियों को सूखाने के बाद, इसे ग्राइंडर में पाउडर बनाया जाता है।
इसके बाद, पाउडर को शीशे के बोतल में पैक किया जाता है, राजेश के अपने ब्रांड का नाम ‘कैवाल’ रखा है।
मशरूम और बेबी कॉर्न के लिए केनिंग प्लांट
राजेश बताते हैं, “ताजा मशरूम और बेबी कॉर्न की अधिकतम आयु 3 दिनों की होती है, लेकिन इतने कम समय में बाजार में इसकी आपूर्ति कभी-कभी मुश्किल हो जाती है। इसी को देखते हुए हमने केनिंग प्लांट को लगाने का फैसला किया, जिसमें एक बार में 400 किलो उत्पाद को 6 महीने के लिए संरक्षित किया जा सकता है।
इसके अलावा, राजेश मशरूम और बेबी कॉर्न का पाउडर भी बनाते हैं, जिसे सूप या रोटी बनाने में इस्तेमाल में लाया जाता है।
शुरू की खुद की फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी
साल 2017 में राजेश ने अपने टेकारी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी की शुरूआत की। फिलहाल, इससे 700 से अधिक किसान जुड़े हुए हैं। इसके तहत, किसानों को बेहतर बाजार तलाशने में मदद करने के साथ ही, उन्हें अपने उत्पादों में मूल्यवर्धन की जानकारी भी देते हैं, ताकि उनकी आय बेहतर हो सके।
राजेश बताते हैं, “मुझे किसानों के लिए मौके बनाने के प्रयास में समर्थ जैसे संस्थानों का भी भरपूर साथ मिला, जो कि किसानों की बेहतरी की दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही है। फिलहाल, हम एक साझेदार के तौर पर, बिहार के 12000 से अधिक किसानों से जुड़े हुए हैं और मैंने अभी तक 4 हजार से अधिक किसानों को आधुनिक खेती के लिए प्रशिक्षित किया है।”
इसे लेकर, समर्थ के सह-संस्थापक मयंक जैन कहते हैं, “मैं दिल्ली में पला-बढ़ा हूँ, लेकिन साल 2015 में, मैंने और मेरे साथी प्रभात जी ने मिलकर गया में अपना कृषि आधारित बिजनेस शुरू करने का फैसला किया। राजेश जी से भी मुलाकात इसी दौरान हुई। शुरूआत में हम प्याज की खेती करते थे, लेकिन बाद में हमने मशरूम की खेती करने का विचार किया, जिसमें उनका अनुभव काफी काम आया। आज हम एक पार्टनर के तौर पर काम करते हैं। हमारा दायित्व मार्केटिंग प्लान को देखना है, जबकि राजेश जी का उत्पादों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने का।”
मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए अलग प्रयास
राजेश बताते हैं, “मैंने किसानों को मशरूम की खेती के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए कुछ अलग प्रयास किया है। इसके तहत, मैं एक बैग में खाद तैयार कर, उसमें मशरूम के बीजों को लगा देता हूँ। ये बैग 5 किलो के होते हैं। 15 दिनों में इसमें मशरूम आने लगती है और इसमें किसानों को सिर्फ नियमित रूप से पानी देने की जरूरत होती है। एक बैग पर 60 रुपए की लागत आती है और महज दो महीने में इससे 150 रुपए की कमाई होती है।”
इस बारे में, गया के बाँके बाजार में रहने वाली एक महिला किसान रिंकू कुमारी कहती हैं, “मैं साल 2015 से मशरूम की खेती कर रही हूँ। इसी दौरान मेरी मुलाकात राजेश जी से हुई थी। उन्होंने मेरी शुरू से ही काफी मदद की। यही कारण है कि जहाँ मैं पहले 10-12 में मशरूम की खेती करती थी, अब करीब 1000 बैग में मशरूम उगाती हूँ।”
बिहार में अपार संभावनाएं
राजेश कहते हैं, “बिहार में उद्योग की कमी है, जिस वजह से लोगों को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है, लेकिन यहाँ कृषि आधारित उद्योग की अपार संभावनाएं हैं। बस जरूरत है, पढ़े-लिखे लोगों को इस ओर एक कदम बढ़ाने की।”
यदि आपको हमारी इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप राजेश से 8674829456 पर संपर्क कर सकते हैं।
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