उषा (बदला हुआ नाम) पूर्णिया की रहने वाली है, नौ साल की यह बच्ची थैलासीमिया नामक गंभीर रोग से पीड़ित है। उसे हर 15 से 25 दिन के अंतराल पर ए-निगेटिव ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन में उसके लिए स्थिति गंभीर हो गयी। एक तो कहीं भी आने जाने के तमाम रास्ते बंद हो गये थे, दूसरा उसका ए-निगेटिव ब्लड जो रेयर ग्रुप माना जाता है, वह मिलना मुश्किल हो गया था। तमाम तरह की कोशिशों के बाद परेशान हो चुके उसके माता-पिता ने बिहार में रक्तदान को प्रोत्साहित करने और थैलासीमिया पीड़ित बच्चों की मदद करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मुकेश हिसारिया से संपर्क किया। उन्होंने सोशल मीडिया पर इस बच्ची के बारे में अपील की और पूर्णिया में ही उन्हें ए निगेटिव ब्लड ग्रुप का डोनर मिल गया और उनकी समस्या हल हो गयी।
बिहार में उषा जैसे अमूमन 4000 बच्चे हैं, जो थैलासीमिया रोग से पीड़ित हैं। ये कोरोना की वजह से किये गये लॉकडाउन में अपने बच्चों को नियमित ब्लड उपलब्ध कराने में कई तरह की परेशानियों का अनुभव कर रहे हैं। ऐसे मुश्किल वक्त में मुकेश हिसारिया उनके काम आ रहे हैं। वह अब तक ऐसे 22 बच्चों को खून उपलब्ध करा चुके हैं। इसके अलावा ऐसे बच्चों को नियमित दवा की जरूरत होती है, वह उसे भी उन तक उपलब्ध कराने में मदद कर रहे हैं। चूंकि इनमें से ज्यादातर बच्चे गरीब परिवार से आते हैं, इसलिए उनके परिवार में इन दिनों खाने-पीने की भी दिक्कत हो रही है। वह उन्हें मुफ्त राशन भी उपलब्ध करा रहे हैं।
मुकेश हिसारिया ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं पहले से ही इन थैलासीमिया पीड़ित बच्चों की मदद करता रहा हूं। मगर कोरोना और लॉकडाउन की वजह से मैं दूसरे मसलों में उलझ गया और इन बच्चों के बारे में भूल गया। ऐसे में एक दिन पटना की एक महिला का फोन आया, जो अपने बच्चे को ब्लड चढ़ाने के लिए परेशान थीं। उनके फोन के बाद मुझे लगा कि ऐसे परिवार तो इस वक्त काफी परेशान होंगे। फिर मैंने अपने संपर्क के ऐसे परिवारों को फोन लगाना शुरू किया। मुझे हैरत हुई कि इनमें से कई लोगों के फोन बंद थे, डिस्कनेक्ट हो गये थे। फिर मैंने 20-20, 50-50 रुपये उस नंबर पर डाल कर उन्हें एक्टिव किया। बात की तो पता चला कि पैसों के अभाव में उनके फोन बंद हो गये थे। फिर मुझे लगा कि स्थिति काफी नाजुक है और इनकी मदद करना काफी जरूरी है।”
मुकेश कहते हैं कि 2 अप्रैल से मैंने यह काम शुरू किया। उन परिवारों के लिए बच्चों को ब्लड चढ़ाने की समस्या तो थी ही, साथ ही भोजन-पानी की भी दिक्कत थी और थैलासीमिया की वजह से उन्हें जो नियमित दवा खानी होती है, वह भी उपलब्ध कराना था। यानी हमें तीन मोर्चों पर काम करना था।
मुकेश ने बताया कि उन्होंने पहले संपर्क में आये परिवारों के खाते में 500-500 रुपये डाले, ताकि उनके राशन-पानी का इंतजाम हो सके। फिर उनके शहरों में सामाजिक कार्य से जुड़े लोगों को प्रोत्साहित किया कि वे उनकी मदद करें। उन्होंने लोगों के सहयोग से एक लाख रुपये की ऐसी दवा खरीदी, जो इन बच्चों के नियमित उपयोग के लिए जरूरी है।
मुकेश कहते हैं , “अब हम इस दवा को उनके शहर में दवा दुकानों में इस शर्त पर उपलब्ध करा रहे हैं कि दवा दुकानदार खरीद मूल्य पर इस दवा को पीड़ित बच्चों को उपलब्ध करायें। और जो अत्यंत गरीब परिवार हैं, उन्हें मुफ्त में दें। हमें कई दुकानदारों का सहयोग मिल रहा है, कई दुकानदार सहयोग नहीं कर रहे, मगर हम कोशिश कर रहे हैं।”
इसके अलावा मुकेश अब तक अपने मित्रों और परिचितों की मदद से 22 ऐसे बच्चों को खून की उपलब्धता करवा चुके हैं। उन्हें राज्य सरकार के अधिकारियों से आग्रह कर ऐसे आदेश जारी करवाये हैं कि थैलीसीमिया कार्ड वाले बच्चों को इस लॉक डाउन में कहीं आने जाने में रोक न हो। उन्हें खून देने वालों को भी दिक्कत न हो, इसके लिए वे जिला प्रशासन से अनुरोध करते हैं।
वे कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में थैलासीमिया पीड़ित बच्चों के लिए एक निश्चित फंड होता है, अमूमन यह राशि उपयोग नहीं हो पाती। इस संकट की घड़ी में उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि इस राशि से राज्य के बच्चों के खाते में कुछ पैसे दो से पांच हजार डलवाये जायें ताकि इस संकट की स्थिति में उन्हें खाने-पीने, दवा और कहीं आने जाने में पैसों की दिक्कत न हो।
पटना की रश्मि कहती हैं कि मुकेश जी से संपर्क करने के बाद इन्होंने मेरे लिए मदद की कोशिश की थी, मगर इस बीच रेड क्रास से भी मुझे मदद मिल गयी। आरा की चार साल की मुनमुन, नवादा की राशि, बिहार शरीफ के गौरव(सभी बदले नाम) के परिवार वाले इस संकट में मुकेश हिसारिया से मिले मदद की वजह से उन्हें काफी राहत मिली।