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एक अमरीकी जो भारत आकर भारत का ही बन गया और अब दुसरो को भी यहाँ आने के लिए प्रेरित कर रहा है

हमने अक़्सर भारत से लोगों को विदेश जाकर पढाई करते हुए देखा है। विदेश में  नौकरी पाकर फिर कभी अपने देश न लौटने वाले भारतीयों को भी देखा है।

लेकिन यहाँ कहानी कुछ और ही है। ये कहानी एक ऐसे अमेरिकी नागरिक की है जो दो साल पहले बंगलुरु आया और हमेशा के लिए यही का होकर रह गया।

छब्बीस् वर्षीय ट्रॉय अर्सटलिंग, जो एक बेहद ऊर्जावान और प्रसन्नचित व्यक्ति हैं, ने न केवल हिंदुस्तान को अपना घर माना है बल्कि और कई अप्रवासी भारतीयों एवं विदेशीयों को यहाँ काम करने के अवसर भी प्रदान कर रहे हैं।

ट्रॉय उनके लिए न केवल स्वैच्छिक बल्कि फुल टाइम उच्च वेतन वाली नौकरियाँ, और नए  नए टेक्नोलॉजी स्टार्ट अप में सहायता करते हैं जो बंगलुरु और अन्य स्थानो पर भी होते हैं|

” मार्केटिंग, डिज़ाइन, टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में प्रतिभा की कमी है। हालाँकि बंगलुरु  में टेक्नोलॉजी एवम् इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी से जुड़े लोगों की कमी नहीं है, लेकिन अभी भी जरुरत के हिसाब से वो पर्याप्त् नहीं हैं। वहीँ दूसरी तरफ दुनिया के कई हिस्सों में कई प्रतिभावान लोग हैं जिन्हें समुचित मौका नहीं मिल पाता। उन लोगो को यहाँ मौका दिया जा सकता है और साथ ही साथ यहां की कमी को पूरा किया जा सकता है- ट्रॉय कहते हैं।

अप्रवासी भारतीयों और विदेशियों के लिए भारत में अच्छे रोजगार के अवसर प्रदान करना‘-ट्रॉय की रिक्रूटमेंट कम्पनी ‘ब्रेनगेन‘ का जन्म इसी विचारधारा से हुआ था| इस कंम्पनी का आरंभ  २०१४  में हुआ था। अब तक ब्रेन गेन कंपनी १५ उम्मीदवारों को नियुक्त कर चुकी है जो सात विभिन्न् देशों से हैं | इन देशों में संयुक्त राष्ट्र, चीन, स्पेन, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, पोलैंड और भारत शामिल हैं|

हर नियुक्त किये गए व्यक्ति के लिए नियोक्ता कम्पनी को उम्मीदवार के प्रथम वर्ष के वेतन का १५  प्रतिशत ब्रेन गेन को देना होता है| ब्रेन गेन उम्मीदवारों से कोई शुल्क नहीं लेती है।

ट्रॉय कहते हैं- “हम लोगों को अपने देश से निकल कर दूसरे देशों में काम करने का अनुभव देना चाहते हैं।”

प्रारंभिक जीवन

भले ही ट्रॉय एक वर्ष पूर्व ही बिजनेसमैन बने हैं पर उनमें बिज़नस की समझ बचपन से थी| वो बचपन में पोकेमोन कार्ड्स बेचा करते थे और कभी कभी अपने पिता के व्यापार में भी सहायता करते थे। वो केवल ९ वर्ष के थे जब एक ८ हफ्ते लम्बे आवासीय कैंप पर अकेले ही चले गए थे। उन्हें नए लोगों से मिलना बहुत पसंद था और आज भी है| ट्रॉय दुनिया भर में नए नए अवसर ढूंढना चाहते थे।

भारत आने से पूर्व वो दक्षिण कोरिया गए थे जहाँ वो बच्चों को अंग्रेजी सिखाया करते थे। ट्रॉय बैंगलोर एक छह महीने की फ़ेलोशिप के लिए आये थे जिसमें युवा नेताओ को दुनियाभर के सामाजिक उदयमों के उभरते बाजार से जोड़ा जा रहा था। इसी दौरान उन्हें Zoomcar के साथ काम करने का अवसर मिला जो एक कार की रेंटल कंपनी है। उन्होंने ने एक साल तक वहाँ काम किया,तब जा कर उन्होंने ब्रेन गेन की शुरुआत की।

ट्रॉय कहते हैं-

“ये आसान नहीं था। मुझे रिक्रूटमेंट कम्पनी चलाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन मेरे यहाँ काफी अच्छे संपर्क बन गए थे। मैंने बहुत सारी कम्पनियों से सम्पर्क किया तब जाकर मुझे ये १५ कम्पनियां मिली जो विदेशी लोगों को नियुक्त करना चाहती थीं।”

उन्होंने ने उनसे पूछा की वो किस तरह के प्रोफेशनल्स चाहते थे, फिर उसी अनुसार उन्होंने संभावित उम्मीदवारों को ढूंढना शुरू किया। ट्रॉय वापस अमरीका गए और वहाँ के बड़े बड़े बिज़नेस स्कूलों जैसे हार्वर्ड एंड कॉर्नेल से सम्पर्क किया जहाँ उन्हें कुछ छात्र मिले जो भारत में काम करने के इच्छुक थे।

“मैं हैरान था, मुझे लगा था लोग भारत आकर काम करने के लिए तैयार नहीं होंगे पर ऐसा कुछ नहीं था।”

 

 

“वो लोग काफी उत्साहित थे भारत आने के लिए, उन्हें ज्यादा दिलचस्पी जॉब प्रोफाइल में थी जो मैं उन्हें दिला रहा था| इसलिए अच्छी नौकरियां ढूंढना मेरे लिए और ज्यादा जरुरी हो गया था।

-ट्रॉय कहते हैं।

भारत के रंग में रंग गए है ट्रॉय 

ब्रेन गेन के अलावा ट्रॉय खुद को व्यस्त रखने के लिए बहुत सारी दिलचस्प चीज़ें करते हैं जैसे एनीमेशन फ़िल्मों को आवाज़ देना ,या स्यांटा क्लॉज़ बनना।

ट्रॉय का भारत के लिए प्रेम बढ़ता ही जा रहा है और साथ ही साथ वो यहाँ के मौसम के साथ भी ढ़ल चुके हैं। वो जिस तरह नये उम्मीदवारों का ख्याल रखते हैं ये साफ़ नज़र आता है कि वो किस तरह यहाँ के रंग में रंग चुके हैं। वो उनका स्वागत खुद करते हैं और उन्हें लेने एयरपोर्ट जाते हैं। वे एयरपोर्ट से उन्हें प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय MTR ले जाकर नाश्ता करवाते हैं। इसके बाद वे उन्हें जरुरीें खरीददारी करवाते हैं। उनके रहने से लेकर सभी जरुरी सुविधाओं का ध्यान ट्रॉय खुद रखते हैं। उनके फोन पर लगातार मेसेज आते रहते हैं जिनमें हर मसले पर उनकी सलाह मांगी जाती है,यहाँ तक की खटमल कैसे भगाए जाएं- इस पर भी!

ट्रॉय के प्रयासों से न केवल भारतीय टेक्नोलॉजी स्टार्ट अप के लिए प्रतिभावान व्यक्ति मिले हैं बल्कि उनलोगो के लिए एक ऐसे देश में काम करने और रहने का अनुभव मिला है जहाँ उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था।

“इस वजह से उन लोगों की भारत को लेकर धारणा भी बदली है। एक लड़की थी जो भारत नहीं आना चाहती थी। उसके माता पिता को चिंता थी की वो यहाँ सुरक्षित होगी या नहीं क्योंकि उन्होंने बहुत सारी छेड़खानी की घटनाओं के बारे में सुन रखा था। पर अब उसे भारत आये दो महीने हो चुके हैं और वो यहाँ बहुत खुश है। भारत को लेकर उसकी सोच अब पूरी तरह बदल चुकी है

-ट्रॉय बताते हैं।

ट्रॉय सिर्फ विदेशियों को ही नहीं बल्कि भारतीय मूल के लोगों और प्रवासी भारतियों को भी भारत लाने में मदद करते हैं।

२२ वर्षीय अपूर्व भी उन्ही में से एक है, जो भारतीय मूल के होते हुए भी कभी भारत नहीं आये थे। उन्होंने कंप्यूटर साइंस की पढाई की थी और ट्रॉय ने उन्हें बेंगलुरु में एक अच्छी नौकरी दिलाने में मदद की थी। दो महीने यहाँ काम करने के बाद अपुर्व अभी अमरीका में हैं पर जल्दी ही वो भारत आने की तैयारी में हैं।

भविष्य 

ट्रॉय आगे चल कर अलग अलग क्षेत्रो के लोगों को भारत लाना चाहते हैं। उन्हें कई उच्च शिक्षित लोगों, मसलन केमिकल एवम् मैकेनिकल इंजीनियर, वैज्ञानिक और अन्य लोगों के आवेदन प्राप्त हुए हैं लेकिन ट्रॉय अभी उनके लिए उपयुक्त नौकरियां नही ढूंढ पाये हैं।

भारत के आलावा ट्रॉय मलेशिया में भी २ कम्पनियां शुरू करने जा रहे हैं जहाँ वो भारतीयों को भेजेंगे। भविष्य में वे विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का विकास करना चाहते हैं।

जो लोग अपने जीवन की दिशा बदलना चाहते हैं, नयी नयी जगहों पर काम करना चाहते हैं उनके लिए  ट्रॉय कहते हैं-

“जो लोग यह सोच कर शुरुआत नहीं करते की वो तैयार नहीं हैं, वो कभी तैयार नहीं होते। यहाँ तक की मैं भी अभी तक तैयार नहीं हूँ लेकिन फिर भी मैं कर रहा हूँ और अभी तक सब ठीक रहा है। अगर आपके पास कोई आईडिया है और आपको उसपर भरोसा है तो आपको शुरुवात कर देनी चाहिए।”

ब्रेन गेन के बारे में अधिक जानकारी के लिए troy@braingain.co पर ट्रॉय से संपर्क करे। अथवा उनके वेबसाइट पर जाए।


मूल लेख – श्रेया पारीक 

 

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