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शादी ज़रा हट के – रख दे दुनिया बदल के!

हाज़िर है आपके सामने एक अनोखी कहानी के साथ | कहानी दो जिंदादिल, आदर्श, साहसी इंसानो की | कहानी जो किसी भी भ्व्य हिन्दी फिल्म से कहीं आगे जाकर यह दर्शाती है कि सच्चें प्यार के मायने शादी से कही बढ़कर हैं| महज एक शादी किस तरह से माध्यम हो सकती है समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का | तो चलिए शुरू करते है सफ़र पढ़ने, सीखने और भाव-विभोर होने का |

तिलक और धना सामाजिक पदयात्री समूह में भाग लेते रहे है।

आमतौर पर मैं शादी समारोह में सम्मिलित होने की शौकीन नही हूँ | परंतु उस दिन सुबह से ही बड़ी उत्सुकता के साथ मे इस शादी मे शामिल होने के बारे मे सोच रही थी| इस शादी में उपहार देने की खुशी ही कुछ और थी | तो ऐसा क्या खास था इस शादी समारोह में, जो मुझे जून-१-२०१२ की सुबह इतना उत्साहित कर रहा था? चलिए जानते हैं की तिलक और धना की शादी ने कैसे एक सामाजिक बदलाव की नींव रखी|

  1. वह शादी समारोह सुविधाहीन बच्चों के शैक्षणिक कोष के लिए चंदा जुटाने का आयोजन था| तौहफे के रूप मे सिर्फ़ और सिर्फ़ चंदा ही स्वीकार्य था और कुछ नहीं |
  2. आठ बाल गृह के बच्चे वहाँ आमंत्रित थे और उन सब ने हमारे साथ उस समारोह मे भाग लिया|
  3. बहुत ही सादे एवम् पारंपरिक तरीके से विवाह सम्पन हुआ| विवाह के सादेपन का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं की दुल्हन भी एकदम सादे लिबास मे अपनी शादी में शामिल हुई, बिना किसी महंगे गहने और कपड़ों के ।
तिलक और धना काफी सालों से दोस्त है और दोनों के अंदर ही सामाजिक और बच्चों से जुड़े कार्यों के लिए विशेष जूनून हैं।

सुनने मे कितना आसान लगता हैं ना ये सब? परंतु इसे सच्चाई में उतारना उतना ही मुश्किल भरा था| कैसे दुल्हन अपने परिवार को इस बात के लिए राज़ी करे, कि वह शादी इसलिए करना चाहती है क्योंकि उसे बच्चा गोद लेना है? दूल्हा अपनी शादी का खर्च खुद उठाना चाहता है, बिना अपने माता पिता या सास-ससुर की मदद लिए? इस आसान से लगने वाले कार्य के लिए अपने परिवार की रज़ामंदी लेने मे तिलक और धना को मात्र २ साल लगे !

रुकिये, आप सोच रहे होंगे कि प्यार में तो इंसान कुछ भी कर सकता है, ये कोई बहुत बड़ी बात नही है| जब तिलक और धना ने शादी करने का फ़ैसला लिया था उस वक़्त उन दोनो के दिलों मे एक दूजे के लिए प्यार के फूल नहीं खिल रहे थे ! थोड़ा अटपटा लगता है ना सुनने में, ऐसे ही है ह्मारी कहानी के नायक और नायिका !

धना अपने जानवरों के प्रति बेहद लगाव और सामाजिक सेवा के जुनून में शादी के ख्याल को लगभग नकार चुकी थी| तिलक भी आजीवन विवाह नहीं करने का निश्चय कर चुका था, क्योंकि उसे पूरा यकीन हो चुका था कि ऐसा जीवन साथी मिलना जो उसके सामाजिक सरोकार एवम् जोखिम लेने की आदत से तालमेल बिठा सके, लगभग नामुमकिन है| परन्तु ईश्वर इन दो बेहतरीन इंसानों को मिलाने कि योजना बना चुके थे !

 

धना

 

थरीसा का जन्म हो चुका था, हमारे नायक और नायिका को करीब लाने के लिए | थरीसा एक छोटी बच्ची, जिसे एक एड्स पीड़ित किशोरी माँ जन्म देकर छोड़ चुकी थी औरे ईश्वर की मर्ज़ी के मुताबिक उस छोटी बच्ची को एड्स नहीं छू पाया था|

इस छोटी बच्ची ने धना के मन में छुपे मातृत्व को जगा दिया| धना इस नन्ही कली को गोद लेने का मन बना चुकी थी, औरे फिर धना ने अपने दोस्त तिलक के सामने शादी का प्रस्ताव रखा ताकि वह थरीसा की माँ बन सके| बाल गृह का प्रयास रहता है कि शिशु को एक साल का होने से पहले ही गोद दे दिया जाए, ताकि उसे नये परिवार के साथ सामंजस्य बिठाने मे आसानी रहे | धना को अपने परिवार को इस सब के लिए राज़ी करने मे वक्त लग गया, और बाल गृह ने थरीसा को किसी और दंपति को सौंप दिया| परंतु जून में आयोजित शादी समारोह रूपी चंदा उगाही कार्यक्रम थरीसा शैक्षणिक कोष के लिए ही था, जो उस नन्ही थरीसा को समर्पित था जिसने इन खूबसूरत इंसानो को हमेशा के लिए मिला दिया!

 

तिलक

 

तिलक को मैं कुछ समय से जानती हूँ, पहली बार तिलक से मेरी मुलाकात से इंडिया अगेंस्ट करप्शन  आंदोलन के दौरान हुई थी। फिर मुझे ज्ञात हुआ कि तिलक ने अपना जीवन सुविधाहीन बच्चों को समर्पित कर रखा है । ‘सेवई करंगल’ नामक संस्था के सह-संस्थापक के रूप में वह और नंदन ८ बाल गृहो की देख रेख एवं सहायता का जिम्मा उठा रहे है । यह संस्था चेन्नई शहर के इन ८ बाल गृहो को न सिर्फ चंदा प्रदान करती है, बल्कि यह सुनिश्चित किया  जाता है की लोग इन बाल गृहो और उसमे रहने वाले बच्चो के साथ एक जुड़ाव अनुभव करे । चेन्नई पैदल-यात्री संघ (Chennai Trekking Club) द्वारा आयोजित मासिक पद-यात्राओं में चेन्नई के रहवासी इन बच्चो के जन्मदिन मनाकर, उन्हें अपने साथ ख़ुशनुमा पद यात्राओं में सम्मलित कर इन बच्चो के साथ एक अनकहा रिश्ता बुन लेते है ।

 

तिलक इस बात पर ख़ासा जोर देते हैं कि बच्चो को किसी भी चीज से बढाकर प्यार और एक अच्छी देख-रेख की ज़रूरत होतीं हैं । तिलक इन बाल गृहों की आधारभूत जरूरतो के लिए चंदा इक्कठा करते है, जिसमे शामिल है बच्चों के रहने के लिए आवास, पीने के लिए शुद्ध पानी, स्कूल की किताबें , गणवेष , और उनकी शिक्षा की व्यवस्था करना । तिलक और उनके अन्य सव्यसेवक साथी इन बाल गृहों में दीपावली पर विशेष आयोजन करते है । तिलक एक वृद्धाश्रम को भी सहायता प्रदान करते हैं । पिछले ४ साल में  तिलक तक़रीबन ७ लाख रुपए का चंदा इक्कठा कर चुके हैं ।

 

तिलक इस बात की विशेष निगरानी रखते है कि चंदे के पैसा का सार्थक उपयोग हों । एक बार तिलक के साथ यात्रा के दौरान  हम लोग निकट  के बाल गृह में अचानक  पहुंच गये। तिलक ने बताया इस तरह बिना बताये यहाँ पहुंच जाना हमे इन बाल गृहों की वास्तविक स्थिति से अवगत करवाता हैं और साथ ही यहाँ कार्य कर रहे कर्मचारियों पर एक तरह से अच्छा काम करने का दबाव बना रहता है ।

 

इस सहभागिता और चंदा उगाही के कार्यक्रम के साथ साथ यह संस्था एक सही राह सुझाने वाला कायक्रम “नेविगेटर” संचालित करती है जो की काफी हद तक अमरीका में चलने वाले कार्यक्रम “बिग ब्रदर बिग सिस्टर ” के सदृश है। इसके अलवा बच्चों में मौलिक सृजनशीलता का विकास करने के लिए कार्यशालाएँ भी आयोजित करती है ।

 

तिलक चेन्नई के ८ बाल गृहों से जुड़े है और यहाँ के सभी बच्चें तिलक की शादी में मेहमान बन शरीक हुए।

 

तिलक कोई अमीर परिवार से तालुक्कात नहीं रखते हैं । वे अपना समय अपने रोजगार और जूनून दोनों को देते हुए बड़ी शिद्दत के साथ जीवन जी रहे है । धना भी पैसे से अमीर न होते हुए भी दिल की बहुत अमीर हैं ।

 

तिलक और धना, जिन्होंने शादी करने का निर्णय इसलिये लिया ताकि वे एक एड्स पीड़ित माँ की एड्स रहित बच्ची को गोद ले सकें । हम सब इस साहसी जोड़े की सफलता एवं असीम  खुशियों  की हार्दिक कामना करते हैं|

हमारे देश के इन दो आम (पर अपने आप में बहुत ही ख़ास ) नागरिको ने सात फेरें सिर्फ विवाह बंधन में  बंधने के लिए नहीं, अपितु हमारी  परम्परवादी सोच को आजादी प्रदान कर हम सब के सामने एक उदहारण पेश किया हैं । इन्होने विवाह जैसी संस्था को नया अर्थ प्रदान किया है । कितने सारे बच्चों के जीवन में वे आशा की किरण बने हैं । हम उनकी हिम्मत और आदर्श को सलाम करते हैं ।
मूल लेख: भावना निस्सीमा

रूपांतरण: विश्वास कोठारी

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