“औरतों को हमेशा ही बस एक जिस्म और एक चीज़ की तरह देखा जाता रहा है, पर औरतें किसी मर्द के लिए, अपने पति के लिए ऐसा नहीं सोच सकती। शायद इसीलिए सब इतने क्रोधित हो गये!”
ये वक्तव्य है हिंदी और अंग्रेजी की एक उम्दा लेखिका मृदुला गर्ग का, जिनका उपन्यास ‘चित्तकोबरा’ उनकी गिरफ्तारी का कारण बन गया।
इसी साल जनवरी में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में मृदुला गर्ग ने अपनी किताब ‘द लास्ट ईमेल’ लॉन्च की थी। 25 अक्टूबर 1938 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में जन्मी मृदुला गर्ग हिंदी की सबसे लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक तथा निबंध संग्रह सब मिलाकर उन्होंने लगभग 30 किताबें लिखी हैं। उनके उपन्यास और कहानियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है जिनमें जर्मन, चेक तथा जापानी भी शामिल हैं।
उन्होंने साल 1960 में अर्थशास्त्र में डीग्री प्राप्त की और फिर तीन साल तक दिल्ली विश्विद्यालय में प्रोफेसर रहीं। मृदुला को उनकी लेखन शैली और नयेपन के लिए हमेशा ही आलोचकों ने सराहा। उन्होंने कोलकाता की रविवार मैगज़ीन के लिए ‘परिवार’ के नाम से पांच साल तक और इंडिया टुडे के लिए ‘कटाक्ष’ नामक कॉलम सात साल तक लिखा।
उनके दोनों ही कॉलम अपने समय पर काफी चर्चा में रहे। वे पर्यावरण सम्बंधित, औरतों व बच्चों के मुद्दों पर प्रखर रूप से लिखती हैं। उनका सबसे पहला उपन्यास ‘उसके हिस्से की धुप था।’ इसके अलावा उन्होंने ‘चित्तकोबरा’, ‘अनित्य’, ‘मैं और मैं’, ‘कठगुलाब’, ‘मिलजुल मन’ और ‘वसु का कुटुम’ आदि लिखा।
उनके उपन्यास और कहानियों को हमेशा ही सराहना मिली। पर साल 1979 में आये उनके उपन्यास ‘चित्ताकोबरा’ ने उन्हें विवाद में खड़ा कर दिया। इस उपन्यास में उनकी नायिका एक शादीशुदा औरत है, जो अपनी शादी से संतुष्ट नहीं है। इस उपन्यास के कुछ पन्नों में उन्होंने बहुत ही स्पष्ट रूप में औरतों की इच्छाएं और उनकी सेक्शुयालिटी पर बात की है।
इस उपन्यास के प्रकाशित होने के कुछ दिन बाद, हिंदी मैगज़ीन ‘सरिता’ ने किताब के बस कुछ पन्नों को छापते हुए एक लेख लिखा और उस लेख में उन्होंने किताब को अश्लील घोषित कर दिया। इसके बाद यह एक स्कैंडल बन गया। मृदुला के खिलाफ मुकदमा चला, उनकी गिरफ्तारी का आदेश निकला और यहाँ तक कि किताब की कई हज़ार कॉपियों को जब्त कर लिया गया।
हालांकि, वे जेल जाने से बच गयी, पर यह मुकदमा सालों तक चला, जिसे अंत में मृदुला जीत गयी। द स्क्रोल को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि जिन्होंने भी इस किताब को अश्लील कहा शायद ही उन्होंने किताब पढ़ी हो। यहाँ तक कि ‘सारिका’ के लेख को लिखने वाली लेखिका ने भी कबूला कि उन्होंने कभी भी यह उपन्यास नहीं पढ़ा। पर फिर भी उनके संपादक ने लोगों से इसके खिलाफ़ पत्र मंगवाए।
‘चित्ताकोबरा’ के विवाद के बाद बहुत से लोगों ने सोचा होगा कि शायद अब मृदुला कभी इस तरह के विषय पर नहीं लिखेंगी। पर मृदुला ने उन्हें गलत साबित कर दिया। जब साहित्यिक गलियारों में उनके मुकदमे पर चर्चा हो रही थी तब मृदुला अपनी एक और किताब लिखने में व्यस्त थीं!
साल 1980 में ही उनकी ‘अनित्य’ प्रकाशित हुई।
उनकी किताबों का सिलसिला जारी ही रहा। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से हमेशा ही समाज की यथार्थ तस्वीर दुनिया के सामने रखी है। इसके लिए उन्हें साहित्यकार सम्मान, साहित्य भूषण और साहित्य अकादमी पुरुस्कार से भी सम्मानित किया गया। उन्हें कई बार अलग-अलग संस्थानों ने अलग-अलग सम्मानों से नवाजा।
मृदुला की लेखनी आज भी जारी है और हम उम्मीद करते हैं कि वे ऐसे ही समाज के अनकही सच्चाईयों को उजागर करती रहेंगी।
संपादन – मानबी कटोच