१५ अगस्त १९४७ को हमारा देश आज़ाद हो गया। अंग्रेजो की गुलामी करते हम देशवासियो को आगे बढ़ने की एक नयी राह मिली। आज़ादी मिलते ही देश का संविधान बनाया गया और उसमे हर उस वर्ग के लिए विशेष प्रावधान बनाये गए जो आज़ादी के बाद भी पिछड़े हुए रह सकते थे। महिलाओ को भी आगे बढ़ने का मौका दिया गया। इन सबका नतीजा ये हुआ की आज हमारा देश दुनिया के सबसे प्रगतिशील देशो में से एक माना जाता है।
परंतु इसी देश में एक समुदाय ऐसा है जिसे आज़ादी के बाद भी आज़ाद होने में ६८ साल लग गए। जी हाँ ये समुदाय है हिजड़ो का, जिन्हें १४ फरवरी २०१४ से पहले अपनी अलग पहचान बनाने का भी अधिकार नहीं था। परंतु इस दिन देश के सर्वोच्च न्यायलय ने हिजड़ो को तीसरा लिंग मानने का ऐतेहासिक फैसला सुनाया।
‘हिजड़ा’ ये शब्द सुनते ही हमारे ज़हन में एक ऐसे शख्स की तस्वीर उभरती है जो शादी ब्याह में या बच्चे के जन्म पर नाच गाकर पैसे मांगते है।
या बसो और ट्रेनों में बददुआ देने की धमकी देकर पैसे ऐंठते है। हम अक्सर इन लोगो के साये से भी घबराते है। पर कभी आपने सोचा है की हमारी ही तरह हाड़ माँस के शरीर वाले, हमारी ही तरह सोच विचार करने वाले और हमारी ही तरह हँसने बोलने वाले ये लोग आज़ादी के इतने सालो बाद भी इसी तरह जीने को क्यों बाधित है?
क्यों ‘पारस‘ एक अध्यापक नहीं बन सकते?
क्यों ‘माधुरी’ वकील बनकर अपने माँ बाप का नाम रौशन नहीं कर सकते?
क्यों नहीं ‘उर्मि’ भी हवाई सुंदरी बनकर अपने सपनो की उड़ान भर सकते है?
और क्यों ‘रानी’ को मौका नहीं दिया गया एक पुलिस अफसर बनने का?
पर अब और नहीं! देश के सर्वोच्च न्यायलय ने हिजड़ो को तीसरे लिंग की मान्यता देकर इनके सपनो को पर लगा दिए है। अब ये भी आज़ाद है वो सब बनके दिखाने को जिनके ये काबिल है।
यर्थाथ पिक्चर्स द्वारा बनायी गयी इस वीडियो में ७ ऐसे ही अब तक आज़ादी से वंचित हिजड़े राष्ट्रगीत गाते हुए आज़ादी को एक नयी परिभाषा देते है।
६८ साल पहले यदि इन्हें भी आगे बढ़ने की आज़ादी मिली होती तो शायद ये भी हमारी ही भाँति डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या पायलट बनकर देश का नाम रौशन करते।