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महाराष्ट्र के चंद्रपुर के अलौकिक इतिहास को संभाल रहे है अशोक सिंह ठाकुर !

हमारे देश में न जाने कितने ऐतेहासिक महत्व की धरोहरे है, जिनके बारे में हम उनके आस पास रहकर भी नहीं जानते। महाराष्ट्र के नागपुर से सटे चंद्रपुर जिल्हे में भी एक ऐसा ही इतिहास बसता है, जिन्हें यहाँ रहने वाले भी नहीं जानते। पर इस धरोहर के संरक्षण की, तथा इनके बारे में लोगो में जागरूकता फैलाने का जिम्मा उठाया श्री. अशोक सिंह ठाकुर ने!

सन १९४३ में बनारस के निवासी श्री जयराज सिंह ठाकुर, एक फारेस्ट कांट्रेक्टर के तौर पर, चंद्रपुर आये। उन्हें ये शहर इतना अच्छा लगा कि वे बनारस छोडकर यहाँ बस गये।

श्री जयराज सिह के चार पुत्रो में से दुसरे पुत्र, अशोक सिंह का जन्म चंद्रपुर में ही हुआ। अशोक के लिए चंद्रपुर ही उनकी मातृभूमि थी, उनका अपना शहर था। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इस शहर पर उनका दुसरे किसी भी मराठी भाषी मित्र से कम अधिकार है।

पर एक दिन स्कूल में उनके एक शिक्षक ने उन्हें पूरी कक्षा के सामने ‘परदेसी’ कहके संबोधित किया। जब नन्हे अशोक ने शिक्षक से उन्हें परदेसी कहने का कारण पूछा तो उन्हें बताया गया कि उनका परिवार महाराष्ट्र का नहीं है बल्कि किसी और राज्य से है।
इस बात से आहात, अशोक रोते हुये अपने पिता के पास गये और सारी बात बताई। इस पर हँसते हुए उनके पिता ने उन्हें समझाया कि वे  बनारस से आकर यहाँ बसे थे, इसलिये लोग उन्हें परदेसी कहते है।  और इसमें बुरा मानने वाली या रोने वाली कोई बात नहीं है।

पर इस बात का अशोक के बाल मन पर बेहद गहरा असर हुआ। महाराष्ट्र तथा यहा रहने वाले लोगो का इतिहास जानने में उनकी दिलचस्पी बढने लगी।

श्री. अशोक सिंह ठाकुर

अपने घर का व्यवसाय सँभालते हुये अशोक इतिहास पढने में और पुराने सिक्के एकत्रित करने में दिलचस्पी लेने लगे। उन्होंने सन १९८४ में चंद्रपुर जिल्हे में सभी वोटर्स के वोटर्स कार्ड बनाने का काम हाथ में लिया। इस काम को पूरा करने के लिये उन्हें चंद्रपुर जिल्हे के सभी शेहरो तथा गाँवों में जाने का मौका मिला। उन्हे ग्याज़ेटर (Gazetteer) के बारे में भी पता चला जिसमे इस जिल्हे से जुड़े सभी लोगो की और जगहो की जानकारी थी।

ग्याज़ेटर (Gazetteer) से ही उन्हें यह भी पता चला कि ठाकुर समुदाय के लोग चंद्रपुर में १२ वी शताब्दी से रहते है। यहाँ तक कि चंद्रपुर  शहर के फोर्ट की डिजाईन तेल सिंह ठाकुर नामक एक व्यक्ति ने की थी। बचपन से ही अपने परदेसी होने के सवालो से अशोक परेशान रहते थे, पर अबी जाकर उन्हें जवाब मिला था। यहाँ से चंद्रपुर के इतिहास के बार में जानने का उनका सफ़र शुरू हुआ।

इस सफ़र में उन्हें शहर का खोया हुआ इतिहास ही नहीं बल्कि उन ऐतिहासिक स्थलों के बारे में भी पता चला जिसके बारे में स्थानीय लोगो और सरकार को तक जानकारी नही थी।

अशोक, अभी तक चंद्रपुर के इतिहास पर चार किताबे और कई आर्टिकल्स लिख चुके है, जिन्हें वे मुफ्त में बाटते है ताकि लोगो को अपने पूर्वजो के इतिहास के बारे में पता चले।

चंद्रपुर के दार्श्नीय स्थलों पर लिखे लीफलेट जिन्हें अशोक मुफ्त में बांटते है

Indian National Trust for Art and Cultural Heritage (INTACH) और  Archaeological Survey of India (ASI), की मदद से अशोक ने शहर के बहुत सारे ऐतिहासिक स्थलों को सरंक्षित किया है।

अशोक सिंह ने अपनी एक किताब में इस शहर के निर्माण की कहानी भी लिखी है। जो कुछ इस प्रकार है-

एक बार खांडक्य राजा अंचलेश्वर और महांकाली मंदिर में पूजा करने के बाद महल की ओर वापस आ रहे थे, तब उन्होंने देखा की एक खरगोश जान बुझकर कुछ कुत्तो पर कूदने लगा। ऐसा करने पर कुदरतन कुत्ते उसका पीछा करने लगे और खरगोश उन्हें अपने पीछे दौडाता रहा। इसके बाद, खरगोश भाग कर उसी जगह पर वापस आया जहा से उसने दौड़ना शुरू किया था। और आखिर कुत्तो ने खरगोश को मार डाला। राजा खांडक्य और रानी हिरातनी यह सब देखकर चकित रह गए। रानी का मानन था कि हो न हो यह कोई अलौकिक घटना है।  इसलिए जिस जगह खरगोश घूम कर वापस आया उस जगह पर राजा-रानी ने ४ दरवाजे और ५ खिडकिया बनाने की ठान ली और तेल सिंग ठाकुर को डिजाईन बनाने के लिये कहा। और इसी तरह से इन ४ दरवाजो के भीतर चंद्रपुर शहर का निर्माण हुआ।

“गोंडकालीन चंद्रपुर” अशोक सिंह की सबसे बेहतरीन कृतियों में से एक है। इस किताब मे गोंड समाज (जो अभी लुप्त हो रहा है) के चंद्रपुर पर शाषण के बारे में लिखा है। इस समाज ने सन १२४७ से १७५१ याने ५०० साल तक यहाँ राज किया है। गोंड शासन के दौरान चंद्रपुर में बने सभी इमारते और मंदिर अब तक उनके इतिहास की गवाही देते है।
आईये देखे इस शहर में बसे दार्शनिक स्थलो की एक झलक तथा उनका इतिहास!

जल महल (जुनोना)

जल-महल छायाचित्रकार – अभिषेक येरगुड़े

राजा खांडक्य बल्लाडशाह ने यहाँ सन १४७२ से १४९७ तक राज किया। बचपन से उन्हें कुश्तरोग था। उनकी पत्नी रानी हिरातनी एक अध्यात्मिक और अच्छी महिला  होने के साथ साथ एक होशियार शाषणकर्ता भी थी। वह राजा और अपने प्रजा की देखभाल अच्छी तरह से करती थी।
रानी हिरातनी, बीमार रजा खान्द्क्य के आराम के लिए, चंद्रपुर से थोडी ही दूर जुनोना में तालाब के नजदीक जल महल का निर्माण किया जिसमे राजा विश्राम किया करते थे।

अंचलेश्वर मंदिर

अंचलेश्वर मंदिर :छायाचित्र – KP Fotografie

.रानी हिरातनी ने राजा खांडक्य को खुली हवा लेने के लिये शिकार पर जाने को प्रोत्साहित किया। एक बार जब राजा अपने सैनिको के साथ जंगल में गया तो उनके पास का पानी ख़त्म हो गया। तब उन्हें झरपट नदी के बारे में पता चला जिसमें पानी नहीं था पर उसके किनारे गाय के पंजे के आकार का एक छोटा तालाब दिखाई दिया। राजा ने उस पानी से शरीर स्वछ किया और अपनी प्यास भी बुझायी। उस पानी से राजा की त्वचा की बीमारी दूर हो गयी। जब रानी हिरातनी को इसके बारे में पता चला तब उन्होंने वहा अंचलेश्वर मंदिर का निर्माण किया।

बाद मे, रानी हिराई( १७०४ – १७१९) ने लाइम स्टोन से इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया।इस  मंदिर के बाहरी दीवारों पर रामायण और महाभारत की कहानिया अंकित की गयी है।

महाकाली मंदिर

महाकाली मंदिर और महाकाली देवी जी की मूर्ति स्त्रोत : : www.shrimahakalidevasthan.org

अंचलेश्वर मंदिर का जब निर्माण हो रहा था तब महाकाली देवी की एक बड़ी मूर्ति वहा झरपट नदी के पास की गुफा में मिली। रानी हिरातनी ने उस जगह महाकाली मंदिर का निर्माण किया। १८ वी शताब्दी में रानी हिराई ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया। मंदिर के मुख्य द्वार पर रंगीत पेंटिंग होने वाला ये एक ही मंदिर भारत में है। पेंटिंग का रंग ३०० साल के बाद भी चमक रहा है।

बीरशाह की समाधी

बीरशाह की समाधी :छायाचित्र – श्री अशोक सिंग ठाकुर

एक शहंशाह के अपनी रानी की याद में बनाये, दुनिया भर में मशहूर ताज महल को तो हम सभी जानते है। पर एक रानी द्वारा अपने राजा की याद में बनाये प्रेम की धरोहर को शायद ही हममे से कोई जानता होगा। अंचलेश्वर मंदिर के परिसर में रानी हिराई ने अपने पति राजा वीर (बीर) शाह की याद में १८ वी शताब्दी में एक समाधी बनवायीं, जो महाराष्ट्र में अब तक की सबसे बड़ी, और किसी भी रानी द्वारा अपने  राजा की याद में बनायीं एकमात्र समाधी है।

अपूर्ण देवालय

गणपति – अपूर्ण देवालय की एक मूर्ति (छाया चित्र – अशोक सिंह ठाकुर)
शिवलिंग– अपूर्ण देवालय की एक मूर्ति
दशावतार दुर्गा – अपूर्ण देवालय का एक भाग

१७ वी शताब्दी के शुरुआत में राजा धुन्द्या रामशाह के वक्त राजप्पा कोमटी ने मंदिर निर्माण का कार्य शुरू किया पर उनकी अचानक मौत से भगवान् की मुर्तिया अपूर्ण रह गयी। अगर वो मंदिर बन जाता तो अब तक का सबसे बड़ा मंदिर होता ।

जटपुरा गेट

जटपुरा गेट – स्त्रोत – www.mycitychanda.com
जटपुरा गेट की आज की स्थिति – स्त्रोत : wikimapia.org

इस गेट का निर्माण गोंड राजा हिरशाह (१४९७-१५२२) ने किया था।

ताडोबा- टाइगर रिज़र्व फारेस्ट

टाइगर रिज़र्व फारेस्ट – स्त्रोत : www.mycitychanda.com
अभिषेक येरगुड़े द्वारा खिची हुयी ये फोटो अवार्ड प्राप्त है – स्त्रोत : अभिषेक येरगुड़े

ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान और अंधारी अभयारण्य मिलाकर ताडोबा-अंधारी बाघ प्रकल्प का निर्माण हुआ है। वहा रहने वाले गोड तारु जमात से राष्ट्रीय उद्यान को नाम मिला और अंधारी नदी के नाम की वजह से अभयारण्य को लोग जानने लगे। ब्रिटिश अधिकारियो ने १९ वी शताब्दी में स्तम्भ का निर्माण किया जो पुराने चंद्रपुर-नागपुर रोड पर है।
INTACH की मदत से अशोक सिंह ठाकुर ने ऊपर बताये गये अलौकिक ऐतेहासिक स्थलों का संरक्षण तो किया ही साथ ही में इस क्षेत्र में लुप्त और भी कई ऐतिहासिक जगहो को भी खोज निकाला । इनमे से कुछ निम्नलिखित है।

चंदनखेडा

अशोक सिंह चंदनखेडा में काम करते हुये
चंदनखेडा में मिला हुआ एक विशाल घड़ा (छायाचित्र – श्री अशोक सिंह ठाकुर)

INTACH, चंद्रपुर चाप्टर के अशोक सिंह ठाकुर और सुरेन्द्र सिंह गौतम ने चंद्रपुर जिल्हे में भद्रावती तालुका के पास चंदनखेडा गाव में इस ऐतिहासिक जगह की खोज की है जहा पर पुरानी मानव संस्कृति का अभ्यास किया जा सकता है।

डोलमेन (मेगालिथिक स्ट्रक्चर)

डोलमेन (हीरापुर) छायाचित्र – श्री अशोक सिंग ठाकुर

डोलमेन एक ऐसी वास्तु है जो मेगालिथिक ज़माने से है और आशिया खंड में १०००० वर्ष पुरानी है।

विजासन गुफाए

विजासन गुफाए (छायाचित्र – श्री अशोक सिंग ठाकुर)

सत्व हंस राज्य के राजा विजय सत्कारणी द्वारा पहली शताब्दी में निर्माण की हुयी बौध्ध गुफाए विजासन में है जो विदर्भ में सबसे बड़ी गुफाए है।  जनरल अलेक्सांदर कन्निन्ग्हम  अपने किताब “Tour in the Central Provinces” में इस गुफाओ का उल्लेख करते है।

अशोक सिंह ठाकुर कहते है

“गांव के लोग इन गुफाओ का इस्तेमाल जानवर के लिये करते थे। इस जगह का ऐतिहासिक महत्व हमने गांव के लोगो को समझाया और उनसे विनंती की, कि वो इस जगह का संरक्षण करे। हर बार आप सरकार पर निर्भर नहीं रह सकते है। अगर हमारे आसपास कोई ऐतिहासिक स्थल है तो उसे साफ़ रखने और संरक्षण करने की जिम्मेदारी हमारी है। ”

अशोक सिंह को जब भी ऐसी जगह पता चलता  है तो वे उस गाँव के लोगो को उस जगह के बारे में बताते है और विद्यार्थीयो को उससे संबधित सभी जानकारी देते है।

अशोक सिंह का मानना है –

“बच्चे ऐसी जगहों से बहुत से प्रभावित होते है। जब उन्हें पता चलता है के ये सब जगहे उनके पूर्वजो ने बनायीं है और वे  इनके वारिस है, तब सभी जगहों के प्रति उन्हें जिम्मेदारी का अहसास होता है।”

श्री अशोक सिंह ठाकुर विद्यार्थीयो को ऐतिहासिक जगह का महत्व बताते हुये।

अगर आप चंद्रपुर शहर के बारे में अधिक जानना चाहते है या भेट देना चाहते है तो आप श्री अशोक सिंह ठाकुर से  ashoksinght@yahoo.com पर इमेल करके संपर्क कर सकते है ।

मूल लेख- मानबी कटोच

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