उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर में हर साल साउथ कोरिया देश के लोग अपने देश की महाराणी हुर ह्वांग-ओके को याद करने के लिये आते है। शादी से पहले महाराणी अयोध्या की राजकुमारी हुआ करती थी और उनका नाम सूरीरत्ना था। उनकी शादी करक वंश के राजा किम सुरो के साथ सन ४८ ईसवी सन पश्चात में हुयी। ऐसा कहा जाता है कि वो कोरिया एक जहाज पर सवार होकर गयी और गेमग्वान गया के राजा सुरो की राणी बनी। सिर्फ १६ साल की उम्र में शादी करके वो गया साम्राज्य की पहली महाराणी बनी थी।
करक वंश के ६० लाख लोग अयोध्या को ही महाराणी का मायका समझते है इसलिये हर साल महाराणी के स्मारक के दर्शन करने अयोध्या आते है। स्मारक का उद्घाटन सन २००१ में हुआ जिसमे इतिहास प्रेमी और सरकारी प्रतिनिधि भी शामिल थे। इतना ही नहीं नोर्थ कोरिया के राजदूत भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे। किम्हे किम वंश, हुर वंश और इंचेऑन यी वंश के ७० लाख लोगो ने अपने पूर्वजो का इतिहास खोज निकाला और अयोध्या के साथ एक रिश्ता जोड़ा।
साउथ कोरिया में महाराणी का मकबरा किम्हे में है और उसके सामने पगोडा पत्थर भी रखा है। ऐसा माना जाता है कि महाराणी पगोडा पत्थर अयोध्या से अपने साथ लायी थी।
स्तोत्र: विकीमीडिया
मान्यता के अनुसार, महाराणी के माता-पिता को सपने में उनके भगवान संगे जे ने दर्शन दिये और कहा कि साउथ कोरिया के राजा की अब तक शादी नहीं हुयी है इसलिये उन्हें अपनी बेटी को वहाँ पर भेजना चाहिये। १५७ की उम्र में महाराणी की मृत्यु हो गयी।
पिछले साल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साउथ कोरिया गये थे, तब दोनों देशो ने अयोध्या में महाराणी का एक बड़ा स्मारक बनाने के प्रस्ताव पर सहमती दर्शायी। हाल ही में कोरिया के प्रतिनिधि मंडल के साथ हुयी बैठक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा कि महाराणी का स्मारक कोरीअन स्थापत्य के हिसाब से बनाया जायेंगा। उन्होंने सेंट्रल करक वंश सोसाइटी के अध्यक्ष किम की-जे से अनुरोध किया है कि वो जल्दी ही डिजाईन भेज दे ताकि स्मारक का काम शुरू हो सके।
मूल लेख तान्या सिंग द्वारा लिखित।