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Natural Heritage Sites In India: Unesco की लिस्ट में भी शामिल हैं भारत की ये पांच अनजानी जगहें

UNESCO World Heritage Sites

क्या आपको पता है कि यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों (UNESCO World Heritage Sites) की सूची में सिर्फ ऐतिहासिक स्थलों को ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय उद्यान और रेलवे मार्गों को भी शामिल किया गया है? कुछ समय पहले ही यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की 2021 की अस्थायी सूची जारी की गयी थी, जिसमें भारत की छह Natural Heritage Sites का नाम शामिल है। इस सूची में बनारस का गंगा घाट भी शामिल है। आज हम आपको इस सूची में शामिल उन पांच जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है (lesser known heritage sites in India)।

क्या है ‘यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल’

यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल ऐसे विशेष स्थानों (जैसे वन क्षेत्र, पर्वत, झील, मरुस्थल, स्मारक, भवन, या शहर इत्यादि) को कहा जाता है, जो विश्व धरोहर स्थल समिति द्वारा चयनित होते हैं और यही समिति इन स्थलों की देखरेख यूनेस्को के तत्वाधान में करती है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य विश्व के ऐसे स्थलों को चयनित एवं संरक्षित करना होता है जो विश्व संस्कृति की दृष्टि से मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ खास परिस्थितियों में ऐसे स्थलों को इस समिति द्वारा आर्थिक सहायता भी दी जाती है। प्रत्येक विरासत स्थल उस देश विशेष की संपत्ति होती है, जिस देश में वह स्थल स्थित हो लेकिन इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का हित भी इसी में होता है कि वे आनेवाली पीढियों के लिए और मानवता के हित के लिए इनका संरक्षण करें। 

अब तक भारत के 38 स्थलों को इस सूची में शामिल किया जा चुका है। इनमें 30 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और एक मिश्रित स्थल शामिल है। इस सूची में विश्व विश्व प्रसिद्ध ताज महल, अजंता गुफाओं से लेकर पहाड़ों में बनी भारतीय रेलवे लाइन और सुंदरवन जैसी जगहें भी शामिल हैं। हालांकि, ताज महल, लाल किला, सूर्य मंदिर, क़ुतुब मीनार जैसी जगहों के बारे में ज्यादातर लोगों को पता है। लेकिन आज हम आपको ऐसे कुछ स्थानों के बारे में बता रहे हैं, जो विश्व धरोहर स्थलों में अपनी जगह बना चुके हैं। लेकिन लोगों के इनके बारे में कम ही जानकारी है। 

1. चंडीगढ़ कैपिटल कॉम्प्लेक्स (Chandigarh Capitol Complex)

Chandigarh Capitol Complex (Source)

क्या आपको पता है कि चडीगढ़ शहर के सेक्टर एक  स्थित कैपिटल कॉम्प्लेक्स भी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल है। इस कैपिटल कॉम्प्लेक्स की कहानी उतनी ही पुरानी है जितना कि खुद चंडीगढ़ शहर। इस जगह को ली कार्बूजियर (Le Corbusier) द्वारा डिजाइन किया गया है। वह एक स्विस-फ़्रांसीसी आर्किटेक्ट थे। 

देश की स्वतंत्रता के समय जब अंग्रेजों ने भारत और पाकिस्तान को बांटा तो तत्कालीन पंजाब भी दो हिस्सों में बंट गया। उस समय लाहौर पंजाब की राजधानी थी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पंजाब को एक नया शहर और नयी राजधानी देने का फैसला किया। इसी सोच के साथ चंडीगढ़ शहर का जन्म हुआ। नेहरू के इस सपने को मशहूर आर्किटेक्ट ली कार्बूजियर ने उड़ान दी। बताया जाता है कि 1950 में पंजाब के तत्कालीन चीफ इंजीनियर पीएल वर्मा ने नयी राजधानी के लिए जगह का चुनाव किया था। 

आज आर्किटेक्ट ली कार्बूजियर के कारण चंडीगढ़ की पहचान वैश्विक स्तर पर है और दुनिया भर के आर्किटेक्ट्स के लिए इस शहर में सीखने को बहुत कुछ है। ली कार्बूजियर के लिए चंडीगढ़ शहर एक जीवंत कृति थी। उनके मुताबिक कैपिटल कॉम्प्लेक्स इस शहर का सिर है, अलग-अलग सेक्टर्स इसका धड़, सिटी सेंटर दिल, शिक्षा बांया हाथ तो उद्योग दाहिना हाथ है। कैपिटल कॉम्प्लेक्स लगभग 100 एकड़ में फैला हुआ है और यह चंडीगढ़ की वास्तुकला की एक महान अभिव्यक्ति है। इसमें तीन इमारतें, तीन स्मारक और एक झील है, जिनमें विधान सभा, सचिवालय, उच्च न्यायालय, मुक्त हस्त स्मारक, ज्यामितीय पहाड़ी और टॉवर ऑफ शैडोज़ शामिल हैं।

इसलिए अगली बार चंड़ीगढ़ शहर से गुजरें तो एक बार कैपिटल कॉम्प्लेक्स की सैर करके एक महान आर्किटेक्ट की कला का आनंद जरूर लें। 

2. भारत की पर्वतीय रेलवे (Mountain Railways of India)

भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में बनी रेलवे लाइन्स को ‘पर्वतीय रेलवे’ के नाम से जाना जाता है। इनमें दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, नीलगिरि पर्वतीय रेलवे, और शिमला-कालका रेलवे शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन तीनों को ही यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया है। 

The slow mountain railway offers a pleasant view of the verdant Nilgiri (Source)

दार्जिलिंग हिमालयन रेल को ‘टॉय ट्रेन’ भी कहा जाता है। क्या आप जानते हैं कि यह दो फीट चौड़ी पटरी पर चलती है। यह जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग तक चलती है और इसे 1879 से 1881 के बीच अंग्रेजों ने बनाया था। उस समय अंग्रेजों के लिए दार्जिलिंग छुट्टी मनाने का एक बहुत अच्छा ठिकाना हुआ करता था। यह भारत की पहली पर्वतीय रेलवे है। यह रेलवे रूट 88 किलोमीटर लंबी है। 

नीलगिरि पर्वतीय रेलवे का निर्माण 1899 में शुरू हुआ था। सबसे पहले इसे मेट्टुपालयम से कूनूर तक बनाया गया था और फिर 1908 में ओटाकामुंड तक फैलाया गया है। यह 46 किलोमीटर (29 मील) लंबा मीटर एक सिंगल ट्रैक है जो मेट्टुपालयम शहर को उटकमंडलम (ओटाकामुंड) शहर से जोड़ता है। इस 46 किलोमीटर के सफ़र में 208 मोड़, 16 टनल और 250 ब्रिज पड़ते हैं। इस मार्ग पर चढ़ाई की यात्रा लगभग 290 मिनट (4.8 घंटे) में पूरी होती है, जबकि डाउनहिल यात्रा में केवल 215 मिनट (3.6 घंटे) लगते हैं।

9 नवंबर, 1903 को कालका-शिमला रेलमार्ग की शुरुआत हुई थी। यह रेलमार्ग कालका स्टेशन 656 (मीटर) से शिमला (2,076) मीटर तक जाता है। 96 किमी लंबे रेलमार्ग पर 18 स्टेशन है। कालका-शिमला रेलमार्ग को केएसआर के नाम से भी जाना जाता है। कालका-शिमला रेललाइन पर 103 सुरंगें सफर को रोमांचक बनाती हैं। बड़ोग रेलवे स्टेशन पर 33 नंबर बड़ोग सुरंग सबसे लंबी है। इसकी लंबाई 1143.61 मीटर है। यह सुरंग क्रॉस करने में यह ट्रेन ढाई मिनट का समय लेती है। इस रेलमार्ग पर 869 छोटे-बड़े पुल हैं। पूरे रेलमार्ग में 919 घुमाव आते हैं।

3. आगरा का किला (Agra Fort)

Agra Fort (Source)

बात आगरा की हो तो बस ताजमहल की याद आती है। लेकिन एक और स्मारक इस शहर को खास बनाता है और वह है आगरा का किला। लाल बलुआ पत्थरों से बने इस किले के अंदर कई ऐतिहासिक स्थल हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि मूल रूप से यह स्मारक बादलगढ़ किले के नाम से जाना जाता था क्योंकि यहां पर कभी हिन्दू-सिकरवार राजपूत राजा बादल सिंह का राज हुआ करता था। लेकिन फिर समय-समय पर हुए युद्धों के कारण इसके मालिक बदलते रहे। 

सिकंदर लोधी ने दिल्ली से अपनी राजधानी आगरा बनाई तो वह इस किले में ही रहे। कहते हैं कि जब मुगलों का राज आया तो यह स्मारक जर्जर हालत में था ऐसे में अकबर ने इसका फिर से विकास कराया। किले को बनाने में 4000 कारीगरों का योगदान है। इस किले के परिसर में नौ महल हैं, जिनमें जहांगीर महल, शाहजहानी महल, मच्ची भवन, खास महल, दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम, शीश महल, मोती मस्जिद आदि शामिल हैं। इस किले के परिसर में दो मुख्य द्वार बनाये गए हैं, जिनमें से एक को दिल्ली गेट और दूसरे को लाहौर गेट के नाम से जाना जाता है। 

लाहौर गेट को अमर सिंह गेट के नाम से भी जाना जाता है, जो एक राजपूत ठाकुर के नाम पर रखा गया था। क्योंकि अमर सिंह शाहजहां के दरबार के दरबारी थे और इन्हें सम्मान देने के लिए लाहौर गेट का नाम अमर सिंह गेट रखा गया था। दिलचस्प बात यह है कि फिल्म मुगल-ए-आजम के कई दृश्य इस किले में फिल्माए गए हैं। प्रसिद्ध गाना ‘प्यार किया तो डरना क्या’ की शूटिंग भी इस किले में की गयी थी। 

4. रानी की वाव (Rani Ki Vav)

Rani ki Vav (Source)

क्या 100 रुपए के नोट के पीछे छपी तस्वीर को आप पहचानते हैं? या फिर आपने कभी कोशिश की है यह जानने की कि यह किस जगह की तस्वीर है? आपको जानकर ख़ुशी होगी कि यह तस्वीर गुजरात के पाटन में स्थित ‘रानी की वाव‘ की है। रानी की वाव का इतिहास सदियों पुराना है। इसे रानी की बावड़ी भी कहा जाता है। 11वीं शताब्दी (सन 1063) में सोलंकी वंश के राजा भीमदेव-प्रथम की याद में उनकी पत्नी, रानी उदयमती ने इस बावड़ी को बनवाया था। पाटन सोलंकी साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। 

यह बावड़ी 64 मीटर लम्बी, 20 मीटर चौड़ी और 27 मीटर गहरी है। सात मंजिला इस बावड़ी को मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली में बेहद खूबसूरती से बनाया गया है। इसका चौथा तल सबसे गहरा है, जो एक 9.5 मीटर लंबे, 9.4 मीटर चौड़े और 23 मीटर गहरे एक टैंक तक जाता है। रानी की वाव में 500 से ज्यादा बड़ी मूर्तियां और एक हजार से ज्यादा छोटी मूर्तियां पत्थरों पर उकेरी गई हैं। यहां के दीवारों और स्तंभों की शिल्पकारी और नक्काशी देखते ही बनती है। 

विश्व धरोहर की सूची में शामिल यह अनूठी बावड़ी में भारतीय महिला के परंपरागत सोलह श्रृंगार को मूर्तियों के जरिए बेहद शानदार तरीके से प्रदर्शित किया गया है।

5. कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान, सिक्किम (The Khangchendzonga National Park, Sikkim)

The Khangchendzonga National Park (Source)

सिक्किम के कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत से पहली मिश्रित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। साल 2016 में इसे लिस्ट में शामिल किया गया था। इस पार्क की स्थापना साल 1977 में की गई थी। सिक्किम में यह सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है और सिक्किम के उत्तरी जिले में 850 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है।

यह उद्यान बर्फीले इलाके में पाए जाने वाले तेंदुए, लाल पांडा, तिब्बती भेड़, कस्तूरी मृग जैसे शानदार वन्य जीवन के लिए जाना जाता है। इस राष्ट्रीय उद्यान में आप हिमालय में पाए जाने वाला बर्फ़ीला मुर्ग, काली गर्दन वाली क्रेन, भूरे रंग के मोर-तीतर,लाल तीतर, हिमालयी मोनाल, आदि जैसे आकर्षक पक्षी भी देख सकते हैं। इस उद्यान में 18 ग्लेशियर पाए जाते हैं, जिनमें से बड़े पैमाने में फैला ग्लेशियर और 17 अल्पाइन झीलें सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। यहां से आपको पर्वत की अनेक चोटियों का विहंगम दृश्य देखने को मिलेगा, जिनमें कंचनजंगा पर्वत भी शामिल है।

तो यदि आप कहीं घूमने-फिरने का प्लान बना रहे हैं तो इन जगहों को अपने लिस्ट में जरूर शामिल करिए ताकि आप भी जान सकें कि आखिर यूनेस्को ने अपने विश्व धरोहर स्थलों की सूची में इन जगहों को क्यों शामिल किया है। यकीन मानिए ये सभी ऐसी जगहें हैं, जिन पर हम सभी को गर्व करना चाहिए।

संपादन- जी एन झा

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