भारत सांस्कृतिक सम्पदा से सम्पन्न देश है। यहाँ के लगभग हर मोहल्ले, हर गली में कोई कहानी छुपी है। “हमारी धरोहर” द बेटर इंडिया की एक ऐसी श्रंखला है, जहाँ हम उन इमारतों, स्मारकों या विरासत स्थलों की सैर करते हैं, जहाँ अनूठी और दिलचस्प कहानियों का अम्बार छुपा हुआ है और जिन्हें सामने लाने की आवश्यकता है।
अनंतपुर मंदिर कासरगोड, केरला में स्थित एकमात्र झील मंदिर है, और ‘बबिआ ‘ नाम के एक दिव्य मगरमच्छ की किंवदंती से प्रख्यात है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह मंदिर की रक्षा करता है। लोग यह भी कहते हैं कि जब झील में एक मगरमच्छ की मृत्य होती है तो रहस्यपूर्ण ढंग से एक दूसरा मगरमच्छ प्रकट हो जाता है! यह मंदिर भगवान अनंतपद्मनाभस्वामी (भगवान विष्णु) को समर्पित है। २ एकड़ की बड़ी झील के बीचों बीच समाया यह प्राकृतिक छटा एवं परिदृश्य का साक्षी है।
मंदिर प्रांगण की मूल मूर्तियां धातु औऱ पथ्थर की नहीं बनीं, बल्कि 70 से भी अधिक औषधीय सामग्रियों के समावेश से निर्मित हैं, जिसे ‘कादु – शर्करा – योगं ‘ के नाम से जाना जाता है। १९७२ में इन मूर्तियों को पंचलौहधातु से निर्मित मूर्तियों से बदल दिया गया था। आजकल इन्हें ‘कादु – शर्करा – योगं ‘ से निर्मित मूर्तियों से बदलने के प्रयास जारी हैं। अनंतपुर झील मंदिर तिरुवनंतपुरम के अनंतपद्मनाभस्वामी का मूल स्थान है। यहाँ के पीठासीन देवता भगवान अनंतपद्मनाभ, सर्प देवता आदिशेष के ऊपर विराजते हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास है की भगवान मूलतः यहीं आकर स्थापित हुए थे।
मंदिर की दीवारें चित्रों से घिरी हुई हैं और यहाँ एक गुफा है जिसका मुख एक ऐसे तालाब की ओर खुलता है जहां का जलस्तर मौसम से अप्रभावित रहते हुए हमेशा समान रहता है। माना जाता है कि मंदिर की रक्षा करने वाला मगरमच्छ इस तालाब में करीब ६० साल विद्यमान है। देवता की पूजा के पश्चात, श्रद्धालुओं से मिला प्रसाद ‘बबिआ’ को खिलाया जाता है जो उसे सिर्फ मंदिर के प्रबंधन मण्डली के द्वारा अर्पण करने पर ही स्वीकार करता है। किसी हाथी की तरह बबिआ को भी को भी खाना उस के मुंह में डालकर खिलाया जाता है। यह भी मान्यता है कि यह मगरमच्छ शाकाहारी है और किसी को भी नुक्सान नहीं पहुंचाता, चाहे वो झील की अन्य प्रजातियां ही क्यों न हों।
कहते हैं वर्ष १९४५ में एक अँग्रेज़ सिपाही ने मगरमच्छ को गोली से मार डाला था। वो सिपाही कुछ ही दिनों में सांप के काटने से मर गया। लोग इसे सर्प देवता अनंत का प्रतिशोध मानते हैं। जल्द ही एक नया मगरमच्छ तालाब में अवतरित हो गया, और यदि आप भाग्यशाली रहे तो अब भी आप उसे देख सकते हैं। मंदिर के ट्रस्टी श्री रामचन्द्रभट्टजी कहते हैं, “हमारा दृढ़ विश्वास है कि ये मगरमच्छ ईश्वर का दूत है और जब भी मंदिर प्राँगण में या उसके आसपास कुछ भी अनुचित होने जा रहा होता है तो यह मगरमच्छ हमें सूचित कर देता है”।
अनंतपुर मंदिर कैसे पहुंचा जाये ?
यदि आप ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं तो आप कासरगोड में उतर के एक रिक्शा या टॅक्सी लेकर मंदिर तक आ सकते हैं। मंदिर कासरगोड से १८ किलोमीटर दूर है। यदि आप हवाई जहाज़ से आते हैं तो मैंगलोर सबसे निकटतम हवाई अड्डा है। वहां से मंदिर लगभग ५० किलोमीटर दूर है। वहां से आप बस या ट्रेन पकड़ कर यहाँ पहुँच सकते हैं। ज़्यादा जानकारी के लिए उनकी वेबसाइट, Facebook या Twitter पर संपर्क करें।
मूल लेख: श्रेया पारीक
रूपांतरण: जीवन्तिका सत्यार्थि